बांग्लादेश के सेना प्रमुख ने देश की अंतरिम सरकार को पूरा समर्थन देने का वादा दिया है। वकार उज जमान ने कहा कि सभी जरूरी सुधारों को पूरा करते हुए अगले 18 महीनों के भीतर चुनाव हो सकें, इसके लिए सेना मोहम्मद यूनुस को सभी तरह से मदद करेगी।
न्यूज एजेंसी रॉयटर्स को दिये एक इंटरव्यू में सेना प्रमुख ने अंतरिम सरकार को सपोर्ट का वादा करते हुए कहा कि ‘चाहे जो हो जाए’ हम समर्थन करेंगे। उन्होंने ये उम्मीद भी जताई कि अगले 18 महीने में चुनाव हो जाएंगे और लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई नई सरकार देश की सत्ता संभाल लेगी।
जनरल ज़मान ने सोमवार को अपने ऑफिस में रॉयटर्स को बताया कि नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाले अंतरिम प्रशासन को उनका पूरा समर्थन था और उन्होंने सेना को राजनीतिक प्रभाव से मुक्त करने के लिए एक मार्ग की रूपरेखा तैयार की। ज़मान ने अंतरिम सरकार के प्रमुख यूनुस के बारे में कहा, “मैं उसके साथ खड़ा रहूंगा। चाहे कुछ भी हो जाए ताकि वह अपना मिशन पूरा कर सकें।”
बांग्लादेश में कब होंगे चुनाव?
ज़मान ने कहा कि लोकतंत्र में परिवर्तन एक साल से डेढ़ साल के बीच किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, “अगर आप मुझसे पूछें तो मैं कहूंगा कि यही वह समय सीमा होनी चाहिए जिसके अंदर हमें लोकतांत्रिक प्रक्रिया में प्रवेश करना चाहिए।”
बांग्लादेश की मुख्य दो राजनीतिक पार्टियों, हसीना की अवामी लीग और उसकी कट्टर प्रतिद्वंद्वी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने पहले अगस्त में अंतरिम सरकार के कार्यभार संभालने के तीन महीने के भीतर चुनाव कराने का आह्वान किया था। वहीं, मोहम्मद यूनुस ने न्यायपालिका, पुलिस और वित्तीय संस्थानों में आवश्यक सुधारों का वादा किया है जिससे देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव का मार्ग प्रशस्त होगा।
अंतरिम सरकार के कार्यभार संभालने के तीन महीने के भीतर चुनाव कराने का आह्वान
बीएनपी के महासचिव मिर्जा फखरुल इस्लाम आलमगीर ने मंगलवार को रॉयटर्स को बताया कि पार्टी जल्द से जल्द चुनाव कराना चाहेगी। उन्होंने कहा, ”मैं कोई विशेष समयावधि नहीं बता रहा हूं लेकिन मुझे लगता है कि जितनी जल्दी हो उतना बेहतर होगा। हम चुनाव के लिए तैयार हैं। भले ही चुनाव कल भी हों, हम तैयार हैं।”
शेख हसीना को देश छोड़कर भागना पड़ा था
गौरतलब है कि शेख हसीना को सत्ता से हटाने में सेना का भी एक अहम रोल रहा था। सेना के छात्रों के उग्र विरोध प्रदर्शन से दूर हो जाने पर शेख हसीना देश छोड़कर भागने को मजबूर हुई थीं। बांग्लादेश में जुलाई में सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरी में आरक्षण के खिलाफ एक आंदोलन के रूप में शुरू हुई झड़पों में 1000 से अधिक लोग मारे गए थे।