Bangladesh Political Crisis: बांग्लादेश की पूर्व पीएम शेख हसीना सोमवार को अराजकता के माहौल के बीच अपने देश से चली गईं और भारत पहुंची। इतना ही नहीं उन्हें अपने पद से इस्तीफा भी देना पड़ा। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि वह जल्द ही लंदन जा सकती है। यहां पर उनके परिवार के कुछ सदस्य रहते हैं। उनकी स्थिति और ढाका में उनके आवास पर की गई लूटपाट बिल्कुल 2022 में श्रीलंका में हुई घटना से मिलती जुलती हैं।
श्रीलंका में जब बड़ा आर्थिक संकट आया था तो कोलंबो में लोगों का गुस्सा विरोध प्रदर्शनों में बदल गया। राजपक्षे बंधु, तत्कालीन राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने श्रीलंका को छोड़ दिया। इससे एक साल पहले अफगानिस्तान में भी ऐसे ही हालात देखने को मिले थे। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी तालिबान के कब्जे के बाद भाग गए थे। दक्षिण एशिया के देशों में ऐसे हालात के कुछ उदाहरण के बारे में हम विस्तार से चर्चा करेंगे।
बांग्लादेश
कई हफ्तों तक बांग्लादेश में छात्र आंदोलन चलता रहा। 5 जून को बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट के हाई कोर्ट डिवीजन ने फैसला सुनाया कि बांग्लादेश के स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए सरकारी नौकरियों में 30 फीसदी आरक्षण बहाल किया जाएगा। इससे युवाओं में गुस्सा पैदा हुआ, खासकर कोविड-19 महामारी के बाद हाल ही में आर्थिक मंदी और नौकरी के अवसरों की कमी को देखते हुए। बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट के अपीलीय डिवीजन द्वारा जुलाई में कोटा काफी कम करने की बात कहने के बाद भी विरोध-प्रदर्शन जारी ही रहा।
आंदोलन में 300 से ज्यादा लोगों की मौत और प्रदर्शनकारियों के बारे में हसीना की टिप्पणियों के बाद आंदोलन शेख हसीना के खिलाफ होता चला गया। उन्होंने 2009 से देश का नेतृत्व किया था और उन्हें स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव न कराने और विपक्षी नेताओं को जेल में डालने के लिए कई सालों तक सत्तावादी कहा जाता रहा। इस बीच, हसीना ने बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी, जमात-ए-इस्लामी और उनके छात्र समूहों जैसे विपक्षी दलों पर प्रदर्शनकारियों को भड़काने का आरोप लगाया। इसके बाद जनता की भावना पूरी तरह से उनके खिलाफ हो गई। इसके बाद हसीना ने देश को छोड़ दिया। सेना ने कहा है कि वह आगे आकर जिम्मेदारी लेगी, लेकिन देश का भविष्य क्या होगा वह किसी को नहीं पता है। हसीना यूरोप में राजनीतिक शरण ले सकती हैं। संबंधित खबर के लिए यहां क्लिक करें…
श्रीलंका
बांग्लादेश की तरह श्रीलंका में भी बड़ा राजनीतिक उथल-पुथल देखने को मिला था। आर्थिक दिवालियेपन का शिकार यह देश चीन के कर्ज के जाल में फंसा हुआ है। यहां पर विदेशी मुद्रा में कमी आ गई थी। यहां पर जरूरी चीजों को आयात करने में भी परेशानी का सामना करना पड़ा। रोजाना के इस्तेमाल की वस्तुएं और खाने-पीने की कीमतों में भारी उछाल आ गया। साथ ही लंबे समय तक बिजली में भी कटौती हुई। अरागालया सरकार विरोधी आंदोलन का नाम बन गया दशकों से श्रीलंका की राजनीति में प्रमुख खिलाड़ी रहे राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को इस्तीफे की मांग का सामना करना पड़ा।
प्रदर्शनकारियों ने आधिकारिक राष्ट्रपति आवास में एंट्री की, स्वीमिंग पूल में नहाए और राष्ट्रपति का सामान भी छीन लिया। गोटबाया मालदीव चले गए और फिर सिंगापुर पहुंच गए। इसके तुरंत बाद उन्होंने अपना इस्तीफा दे दिया। वे कुछ समय के लिए थाईलैंड में भी रहे और फिर करीब दो महीने बाद श्रीलंका लौट आए। रॉयटर्स ने तब बताया था कि श्रीलंका के अधिकारियों ने उनके भाई और पूर्व वित्त मंत्री बेसिल राजपक्षे को बाहर जाने से रोक दिया था।
पूर्व प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने 2022 में कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में सत्ता संभाली। उन्हें श्रीलंका की संसद द्वारा राष्ट्रपति के रूप में चुना जाएगा। दो सालों में देश ने आईएमएफ और भारत और चीन जैसे देशों के साथ कर्ज के सौदे करने की कोशिश की है। हाल ही में, इस साल सितंबर में राष्ट्रपति चुनाव कराने की घोषणा की गई थी। 2023 में विक्रमसिंघे के ऑफिस ने राष्ट्रपति के घर से सामान की लूट पर एक बयान जारी किया था। इसमें कहा गया कि तमाम तरह की चीजें गायब हो गई हैं। इसमें श्रीलंका के पूर्व राज्यपालों और राष्ट्रपतियों से जुड़े हथियारों के कोट भी शामिल हैं। इतना ही नहीं उन्होंने लोगों से इसे वापस करने की अपील भी की।
अफगानिस्तान
वहीं बात अब अगर अफगानिस्तान की करें तो साल 2021 में अमेरिका की सेना और नाटो सेना दो दशकों की सैन्य मौजूदगी के बाद अफगानिस्तान से वापस चली गई और तालिबान ने कब्जा कर लिया। इस घटना ने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया। भले ही इस्लामी आतंकवादी समूह 15 अगस्त को काबुल पर कंट्रोल करने से पहले दूसरे शहरों की तरफ तेजी से बढ़ रहा था। लोकतंत्र और आर्थिक विकास के लिए संस्थाओं का निर्माण करने की कोशिशों का अफगानिस्तान को कोई भी फायदा नहीं मिला।
इस बीच तालिबान फिर से उठ खड़ा हुआ। जैसे ही काबुल पर कब्जा पूरा होता दिखा वीडियो में कई लोग देश से बाहर जाने वाले विमानों में सवार होने की बेताब कोशिश में राजधानी के एयरपोर्ट पर बैरिकेड्स को पार करते हुए नजर आए। कुछ तो विमान के पंखों और पूंछ से चिपक गए और गिरकर मर गए। जबकि अफगानिस्तान में आर्थिक स्थिति काफी मुश्किल थी। साल 1996 और 2001 के बीच पिछले तालिबान शासन की वापसी के विचार को एक बड़ा कदम पीछे माना गया।
राष्ट्रपति अशरफ गनी भी चले गए और तस्वीरों में तालिबान नेताओं को राष्ट्रपति भवन के अंदर हथियार ले जाते हुए दिखाया गया। गनी की अफगानिस्तान को एक अहम मोड़ पर छोड़ने के लिए आलोचना की गई थी, लेकिन बाद में उन्होंने दावा किया कि उन्हें अपनी जिंदगी पर काफी खतरा महसूस किया। बाद में यूएई के विदेश मामलों के मंत्रालय ने पुष्टि की कि गनी और उनके परिवार का स्वागत किया गया था।