World Diabetes Day 2024: कामकाज और भागदौड़ भरे लाइफस्टाइल में हम अक्सर अपने खानपान का सही से ध्यान नहीं रख पाते और कई बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। इसी तरह डायबिटीज यानी शुगर (मधुमेह) बहुत तेजी से लोगों को अपना शिकार बना रहा है। दुनिया भर में डायबिटीज (Sugar) के मामले बड़े पैमाने पर बढ़ रहे हैं। ऐसे में दुनिया भर में 14 नवंबर को विश्व डायबिटीज डे (World Diabetes Day) मनाया जाता है। डायबिटीज के कारण नसों, दिल और आंखों पर असर तो पड़ता ही है। इसके साथ ही हड्डियों, मस्कुलोस्केलेटल सिस्टम और खासकर ऑस्टियोपोरोसिस पर भी प्रभाव पड़ता है। रिसर्च बताती है कि टाइप 1 और टाइप 2 दोनों प्रकार की डायबिटीज से हड्डियों से जुड़ी समस्याओं जैसे ऑस्टियोपोरोसिस और फ्रैक्चर का खतरा बढ़ जाता है। हालांकि, शुगर एक बहुत पुरानी बीमारी है, जिसे अपने खानपान और लाइफस्टाइल के बदलाव से कंट्रोल में रखा जा सकता है।

डॉ. सचिन, कंसल्टेंट- इंटरनल मेडिसिन, स्पर्श हॉस्पिटल, येलहंका के मुताबिक, शुगर की सही तरह से देखभाल नहीं की जाए तो यह बहुत ही घातक हो सकती है। मधुमेह यानी शुगर के लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि आपका ब्लड शुगर कितना हाई है। हमारे शरीर में शुगर के बढ़ने से हड्डियों पर भी काफी प्रभाव पड़ता है। चलिए आपको बताते हैं कि शरीर में शुगर का स्तर बढ़ने से हड्डियां कैसे प्रभावित होती हैं और इससे कैसे बचा जा सकता है।

हड्डियों में प्रोटीन का ग्लाइकेशन

लंबे समय तक ब्लड शुगर बढ़ने से हड्डियों में एडवांस ग्लाइकेशन एंड प्रोडक्ट्स (AGEs) बढ़ जाते हैं। ये कोलाजन की गुणवत्ता को खराब कर हड्डियों को कमजोर बनाते हैं, जिससे फ्रैक्चर का खतरा बढ़ता है। इसे ‘हड्डी की कमजोरी’ भी कहा जाता है, जो बोन मिनरल डेंसिटी सामान्य होने पर भी हो सकती है।

हाइपरग्लाइसीमिया के कारण ओस्टियोब्लास्ट फंक्शन में कमी

ओस्टियोब्लास्ट वे सेल्स होते हैं जो नई हड्डी बनाने का काम करते हैं। डायबिटीज में हाई ब्लड शुगर की वजह से ओस्टियोब्लास्ट के विकास को नुकसान होता है, जिससे हड्डियों का निर्माण और नष्ट होने का संतुलन बिगड़ जाता है। परिणामस्वरूप हड्डियों का निर्माण धीमा हो जाता है और गुणवत्ता कम होती है।

इंसुलिन और हड्डी का मेटाबॉलिज्म

इंसुलिन एक अनाबोलिक हार्मोन है जो हड्डियों के निर्माण में मदद करता है। टाइप 1 डायबिटीज में इंसुलिन की कमी के कारण हड्डियों का विकास और घनत्व कम हो जाता है। टाइप 2 डायबिटीज में इंसुलिन प्रतिरोध के कारण हड्डियों पर इंसुलिन का प्रभाव घट जाता है।

इन्फ्लेमेशन और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस

डायबिटीज में क्रोनिक इन्फ्लेमेशन और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस बढ़ जाता है, जो हड्डियों के दोबारा निर्माण की प्रक्रिया में रुकावट पैदा करता है। डायबिटीज में इन्फ्लेमेटरी साइटोकाइन, जैसे इंटरल्यूकिन्स और TNF-α, हड्डियों के दोबारा निर्माण के चक्र में रुकावट डालते हैं।

न्यूरोपैथी और गिरने का खतरा

लगभग 50 प्रतिशत डायबिटीज के मरीजों में न्यूरोपैथी होती है, जो पैरों में संवेदनशीलता कम करती है और गिरने एवं फ्रैक्चर का खतरा बढ़ाती है। इसके अलावा, डायबिटीज से दृष्टि प्रभावित होने के कारण भी गिरने का खतरा अधिक होता है।

रोकथाम के उपाय और हड्डियों की देखभाल के तरीके

ब्लड शुगर नियंत्रण

हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए ब्लड शुगर को नियंत्रित रखना महत्वपूर्ण है। रिसर्च बताती है कि स्टेबल ग्लूकोज लेवल, एडवांस ग्लाइकेशन एंड प्रोडक्ट्स (AGEs) को बनने से रोकते हैं और इन्फ्लेमेशन को कम करते हैं, जिससे हड्डियों की गुणवत्ता बनी रहती है।

नियमित बोन डेंसिटी टेस्ट जरूरी

खासकर 50 साल से अधिक उम्र के या लंबे समय से डायबिटीज से ग्रसित लोगों को हर साल बोन मिनरल डेंसिटी का टेस्ट कराना चाहिए। DEXA स्कैन हड्डियों का घनत्व मापने का मानक तरीका है और डायबिटीज मरीजों के लिए इसे रूटीन जांच में शामिल करना चाहिए।

कैल्शियम और विटामिन D के स्तर को बढ़ाना

हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए कैल्शियम और विटामिन D जरूरी है। डायबिटीज के मरीजों को ज्यादा विटामिन D की जरूरत हो सकती है, क्योंकि डायबिटीज के कारण इन पोषक तत्वों के अवशोषण में समस्या हो सकती है। इसके लिए फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थ, सप्लीमेंट का सेवन करें और सुबह सूरज की रोशनी लें।

वजन उठाने वाले व्यायाम

नियमित शारीरिक गतिविधि, जिसमें वजन उठाने वाले व्यायाम शामिल हों, हड्डियों के घनत्व और मांसपेशियों की ताकत को बढ़ा सकते हैं, जिससे गिरने का खतरा कम होता है। इसमें चलना, स्ट्रेंथ ट्रेनिंग और रेजिस्टेंस बैंड्स जैसे सरल व्यायाम शामिल हो सकते हैं।