हमारे शरीर की हड्डियां और जोड़ उसकी संरचनात्मक आधारशिला हैं, जो हर एक शारीरिक गतिविधि को चुपचाप सहारा और गति प्रदान करते हैं। इसलिए यह जरूरी है कि इनकी सेहत का ध्यान रखना हमारे स्वस्थ और दर्द-मुक्त जीवन के लिए प्राथमिकता हो। हालांकि, फिजिकल एक्टिविटी के बाद कभी-कभी दर्द और अकड़न महसूस होना आम बात है, लेकिन हड्डियों और जोड़ों की लगातार समस्याओं को नजरअंदाज करने से पुराना दर्द, गतिशीलता में कमी और स्थायी क्षति हो सकती है। पद्म श्री डॉ. मुकेश बत्रा, संस्थापक-अध्यक्ष एमेरिटस, डॉ. बत्रा’ज़ हेल्थकेयर के अनुसार, लाइफस्टाइल के साथ-साथ खानपान का ध्यान रखने से हड्डियों की कमजोरी को दूर किया जा सकता है।

डॉ. मुकेश बत्रा के मुताबिक, खासतौर पर महिलाओं को अपनी हेल्थ और हड्डियों की मजबूती का ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि 40 के अंत या 50 के दशक में प्रवेश के समय में महिलाओं में हार्मोनल परिवर्तन होता है। मेनोपॉज के समय एस्ट्रोजन के लेवल में गिरावट आती है, जो हड्डियों की मजबूती को गंभीर रूप से प्रभावित करता है और एस्ट्रोज हड्डियों को मजबूत बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जैसे ही इसका लेवल गिरने लगता है तो उसी तरह हड्डियां अधिक मात्रा में कैल्शियम खोने लगती हैं, जिससे वे भुरभुरी और फ्रैक्चर के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती हैं। इस स्थिति को ऑस्टियोपोरोसिस कहा जाता है, जो अक्सर चुपचाप विकसित होती है और गिरने या चोट लगने के बाद ही इसका पता चलता है।

हालांकि, सिर्फ हार्मोनल बदलाव ही इसका कारण नहीं है, बल्कि व्यायाम की कमी, असंतुलित खानपान, सूरज की रोशनी से दूरी और तनाव भी इस समस्या को बढ़ा देते हैं, जिससे हड्डियां और कमजोर हो जाती हैं। अनहेल्दी लाइफस्टाइल के चलते अब 30 के दशक के अंत में ही कई लोग जॉइंट स्टिफनेस, सूजन और दर्द का अनुभव कर रहे हैं, जो पहले वृद्धावस्था की समस्याएं मानी जाती थीं। लंबे समय तक बैठना, गलत मुद्रा में बैठना और बढ़ा हुआ वजन जोड़ों में विशेष रूप से घुटनों, कूल्हों और कमर पर ज्यादा दबाव डाल रहा है। ऐसे में होम्योपैथी से हड्डियों का इलाज किया जा सकता है।

  • Calcarea Phosphorica- फ्रैक्चर या भुरभुरी हड्डियों में मजबूती और उपचार के लिए उपयोगी।
  • Rhus Toxicodendron- जोड़ों की अकड़न और आराम के समय दर्द बढ़ने जैसी समस्याओं (जैसे शुरुआती ऑस्टियोआर्थराइटिस) में मददगार।
  • Symphytum- चोट के बाद हड्डियों के तेजी से उपचार में कारगर।

दरअसल, दर्द निवारक या स्टेरॉयड के मुकाबले होम्योपैथिक दवाओं के कोई साइड इफेक्ट नहीं होते और इन्हें लंबे समय तक भी लिया जा सकता है। ये शरीर की प्राकृतिक उपचार प्रणाली के साथ समन्वय में काम करती हैं और लाइफस्टाइल में सकारात्मक बदलावों के साथ मिलकर आगे हड्डियों की गिरावट को रोका जा सकता है। हालांकि, किसी भी प्रकार की दवा का सेवन करने से पहले होम्योपैथिक डॉक्टर से जरूर सलाह करें।

कैसे करें बचाव

हड्डियों की मजबूती के लिए खानपान का ध्यान रखना बहुत ही आवश्यक है। क्योंकि, इनसे हड्डियों को जरूरी पोषक तत्व मिलते हैं, जो मजबूती बढ़ाते हैं। पत्तेदार हरी सब्जियां, बादाम, तिल और डेयरी फूड्स आदि जैसे फूड्स हड्डियों के लिए फायदेमंद होते हैं। इसके अलावा हड्डियों के लिए विटामिन डी भी बहुत जरूरी होता है। विटामिन D के लिए हल्की धूप में रहना भी जरूरी है या फिर कुछ फूड्स के माध्यम से, क्योंकि यह कैल्शियम के अवशोषण के लिए आवश्यक होता है।

इसके अलावा हड्डियों की मजबूती के लिए नियमित व्यायाम, जैसे रोजाना 30 मिनट चलना बहुत लाभदायक हो सकता है। विशेष रूप से महिलाओं के लिए पेरिमेनोपॉज के समय हार्मोनल बदलावों के कारण हड्डियां कमजोर हो सकती हैं। नियमित रूप से फिजिकल एक्टिविटी जोड़ों और मांसपेशियों को हेल्दी बनाए रखने में मदद करती है। इसके अलावा आहार के माध्यम से कैल्शियम और विटामिन डी का पर्याप्त सेवन करने के साथ-साथ वजन कंट्रोल भी महत्वपूर्ण है।

वहीं, द लैंसेट पब्लिक हेल्थ जर्नल में प्रकाशित एक नए अध्ययन से पता चलता है कि रोजाना सिर्फ 7,000 कदम चलना भी स्वास्थ्य लाभ पाने के लिए काफी हो सकता है।