दिवंगत पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला (Sidhu Moosewala) के माता-पिता एक बार फिर पैरेंट्स बनने वाले हैं। सिद्धू की मां चरण कौर प्रेग्नेंट हैं और जल्द ही वे बच्चे को जन्म देने वाली हैं। इस बात की जानकारी खुद सिंगर के चाचा चमकौर सिंह ने दी है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सिद्धू की मां की उम्र 58 और पिता की उम्र 60 साल है। चरण कौर ने आईवीएफ (IVF) के जरिए दूसरे बच्चे को कन्सीव किया है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या 50 से अधिक उम्र की महिलाएं या मेनोपॉज के बाद भी महिलाएं बच्चे को जन्म दे सकती हैं? आइए जानते हैं हेल्थ एक्सपर्ट्स से-
इससे पहले जान लेते हैं कि आखिर IVF होता क्या है?
इसे लेकर सीके बिड़ला अस्पताल, गुरुग्राम की ऑब्सटेट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजी निदेशक डॉ. अरुणा कालरा ने इंडियन एक्सप्रेस संग हुई एक खास बातचीत के दौरान बताया, ‘आईवीएफ का मतलब होता है इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (In vitro fertilization)। पिछले कुछ समय में ये तकनीक बेहद आम हो गई है। दरअसल, जब कोई कपल कंसीव नहीं कर पाता है, तब वे मां-बाप बनने का सुख पाने के लिए IVF का सहारा लेते हैं। इस प्रोसेस के दौरान महिला की ओवरी से अंडे को बाहर निकालकर लैब में स्पर्म के साथ फर्टिलाइज कराया जाता है। बाद में इसे फर्टिलाइस्ड एग को फिर महिला के गर्भ में ट्रांसफर कर दिया जाता है। हालांकि, उम्र बढ़ने के साथ-साथ महिला के अंडों की संख्या और गुणवत्ता दोनों में ही कमी आने लगती है।’
क्या 50 की उम्र के बाद भी काम करती है IVF तकनीक?
डॉ. कालरा बताती हैं, ‘खासकर 35 साल की उम्र के बाद आईवीएफ के सफल होने की संभावना कम हो जाती है, जबकि 50 वर्ष की आयु तक पहुंचते-पहुंचते महिला को डोनर की जरूरत पड़ती है। आसान भाषा में कहें, तो 50 की उम्र के बाद मां बनने के सपने को पूरा करने के लिए महिलाएं किसी युवा एग डोनर के अंडे को अपने साथी के शुक्राणु यानी स्पर्म से फर्टिलाइज कराने के विकल्प को चुनती हैं। ये तरीका सफल गर्भावस्था की संभावना को काफी बढ़ा देता है।’
हालांकि, डॉ. कालरा के मुताबिक 50 की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते गर्भाशय (Uterus) भी प्रभावित हो सकता है। दरअसल, जैसे-जैसे महिला की उम्र बढ़ती है, गर्भाशय की परत में बदलाव हो सकते हैं जो आईवीएफ के दौरान सफल भ्रूण प्रत्यारोपण (Embryo Implantation) की संभावनाओं को प्रभावित कर सकते हैं।
एक सफल गर्भावस्था के लिए एंडोमेट्रियल या आंतरिक गर्भाशय अस्तर (Inner Uterine Lining) की मोटाई बेहद जरूरी है, क्योंकि यह भ्रूण को विकसित करने के लिए एक पोषक वातावरण देती है लेकिन बढ़ती उम्र के साथ-साथ महिलाओं में, एंडोमेट्रियल पतला होता चला जाता है, जिससे संभावित रूप से जटिलताएं हो सकती हैं। ऐसे में सही मेडिकल हेल्प और हार्मोनल सपोर्ट के साथ, गर्भावस्था की संभावना को बढ़ाया जाता है।
अब, क्योंकि मेनोपॉज के बाद नेचुरल ओव्यूलेशन नहीं हो पाता है, ऐसे में भ्रूण प्रत्यारोपण के लिए आमतौर पर हार्मोन थेरेपी की जाती है। इस दौरान मासिक धर्म चक्र को अनुकरण करने और एंडोमेट्रियल अस्तर की मोटाई को बढ़ाने के लिए एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन का प्रबंध किया जाता है। सुरक्षित गर्भावस्था सुनिश्चित करने के लिए हेल्थ एक्सपर्ट्स लगातार महिला के ब्लड प्रेशर, ब्लड शुगर लेवल और हृदय स्वास्थ्य जैसे कारकों की बारीकी से निगरानी करते हैं। इस तरह तमाम बातों पर बारीकी से नजर रखने के बाद IFV तकनीक को पूरा किया जाता है।
Disclaimer: आर्टिकल में लिखी गई सलाह और सुझाव सिर्फ सामान्य जानकारी है। किसी भी प्रकार की समस्या या सवाल के लिए डॉक्टर से जरूर परामर्श करें।