इन दिनों सुप्रीम कोर्ट में चल रहा 26 हफ्ते की प्रेग्नेंसी (26 Week Pregnancy Termination Case) से जुड़ा एक मामला पूरे देश का ध्यान खींच रहा है। दरअसल, बीते कुछ दिनों पहले एक 26 हफ्ते की प्रेग्नेंट शादीशुदा महिला ने अपने अबॉर्शन की इजाजत मांगने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। महिला का कहना था कि इस बच्चे को पालने के लिए उनकी मानसिक, शारीरिक, आर्थिक और भावनात्मक स्थिति ठीक नहीं है। वे पहले से ही दो बच्चों की मां हैं, जिसमें उनके बड़े बेटे की उम्र करीब 4 साल है, तो दूसरा बच्चा अभी एक साल का भी नहीं हुआ है। अदालत में अर्जी लगाते हुए महिला ने कहा, ‘अपने दूसरे बच्चे के जन्म के बाद से मैं पोस्टपार्टम साइकोसिस से गुजर रही हूं, साथ ही इस बीमारी को ठीक करने के लिए मैं जो दवाएं ले रही हूं, वो मेरे होने वाले बच्चे के लिए सही नहीं है ना ही इस बच्चे का स्वागत करने के लिए मेरी मानसिक स्थिति ठीक है। पोस्टपार्टम साइकोसिस से पीड़ित होने के बाद भी अगर मैं इस बच्चे को जन्म देती हूं, तो ये मेरे और इस बच्चे, दोनों के लिए ही खतरनाक साबित हो सकता है।’

मामले में अगली सुनवाई सोमवार को होनी है। हालांकि, इस तरह के मामले के सामने आने के बाद से ही पोस्टपार्टम साइकोसिस से जुड़े कई सवाल लोगों के मन में घर कर रहे हैं। ऐसे में आइए जानते हैं क्या है ये बीमारी, पोस्टपार्टम डिप्रेशन से किस तरह अलग है ये और इसके लक्षण क्या हैं।

क्या है पोस्टपार्टम साइकोसिस?

मां बनने के बाद महिलाएं बेहद नाजुक स्थिति से गुजरती हैं। ऐसे में कई मानसिक रोग उन्हें घेर सकते हैं। पोस्टपार्टम साइकोसिस और पोस्टपार्टम डिप्रेशन इन्हीं घातक बीमारियों में से एक हैं। पोस्टपार्टम डिप्रेशन में महिला को सामान्य डिप्रेशन जैसे लक्षणों का सामना करना पड़ता है। यानी वे अक्सर उदास रहने लगती हैं, किसी काम काज में अधिक ध्यान नहीं लगा पाती हैं, लोगों से दूर-दूर रहने लगती हैं, आदि। वहीं, पोस्टपार्टम साइकोसिस बेहद घातक रोग है। इससे पीड़ित होने पर मां आत्महत्या तक का प्रयास कर सकती है। यहां तक की मामला अधिक गंभीर होने पर अपने खुद के बच्चे तक को नुकसान पहुंचा सकती है।

किसे है अधिक खतरा?

हेल्थ एक्सपर्ट्स के मुताबिक, पोस्टपार्टम साइकोसिस के ज्यादातर मामले उन महिलाओं में देखने को मिलते हैं, जिन्हें पहले भी किसी प्रकार का मानसिक रोग रहा हो। इससे अलग गर्भावस्था या प्रसव के दौरान किसी प्रकार की दिक्कत होने या प्रेगनेंसी के दौरान न्यूट्रीशन पूरा ना मिलने के चलते भी कोई महिला इस तरह की स्थिति का सामना कर सकती है।

क्या हैं लक्षण?

  • हैलुसिनेशन होना, यानी अपने आसपास अजीब-अजीब सी चीजें दिखाई देना
  • किसी चीज को लेकर मन में डर बैठ जाना
  • बहुत अधिक नींद आना या हर समय नशे जैसी स्थिति में रहना
  • आसपास अजीब गंध महसूस करना
  • वास्तविकता से दूर भ्रम की दुनिया में रहना
  • पागलपन की स्थिति
  • हर चीज को शक की निगाह से देखना
  • ज्यादा बात करने लगना
  • बहुत अधिक गुस्सा या चिड़चिड़ापन महसूस करना
  • बिना बात पर अधिक चीखना-चिल्लाना
  • मन में खुद को नुकसान पहुंचाने के ख्याल आना

किन बातों का रखें ध्यान?

पोस्टपार्टम साइकोसिस के इन लक्षणों के नजर आते ही बिना देरी किए मनोरोग विशेषज्ञ से संपर्क करें। बता दें कि ऐसी स्थिति में पीड़ित को परिवार के साथ की सबसे अधिक जरूरत होती है। डिलीवरी के बाद का समय बच्चे के साथ-साथ मां के लिए बहुत ज्यादा संवेदनशील होता है। उस वक्त जितनी केयर और प्यार की जरूरत शिशु को होती है, उनती ही देखभाल मां के लिए भी जरूरी है। ऐसे में मां को अकेला न महसूस होने दें ना ही बच्चे को अकेला छोड़ें। इस स्थिति में मां बच्चे को क्षति पहुंचा सकती है। ऐसे में हर वक्त शिशु पर नजर रखें, साथ ही महिला से लगातार बातें करते रहें।

Disclaimer: आर्टिकल में लिखी गई सलाह और सुझाव सिर्फ सामान्य जानकारी है। किसी भी प्रकार की समस्या या सवाल के लिए डॉक्टर से जरूर परामर्श करें।