हेल्दी और फिट शरीर के लिए विटामिन, मिनरल और कई प्रकार के पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। इसी में आयरन एक ऐसा महत्वपूर्ण खनिज है, जो स्वस्थ रक्त बनाए रखने में मदद करता है। आयरन सिर्फ खून बढ़ाने के लिए ही जरूरी नहीं है, बल्कि यह आंखों के स्वास्थ्य के लिए भी उतना ही अहम है। यह शरीर में हीमोग्लोबिन का निर्माण करता है, जो ऑक्सीजन को पूरे शरीर और आंखों तक पहुंचाता है। जब आंखों को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिलती, तो धुंधला दिखना, आंखों में थकान और सूखापन जैसी समस्याएं शुरू हो जाती हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, आयरन की कमी आंखों की कई गंभीर बीमारियों जैसे कैटरेक्ट, मैक्युलर डिजनरेशन और ड्राई आई डिजीज का कारण भी बन सकती है।
आयरन की कमी का आंखों पर कैसे पड़ता है असर
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) की एक स्टडी के अनुसार, आयरन की कमी रेटिना की कोशिकाओं की ऊर्जा प्रक्रिया को प्रभावित करती है। इससे आंखों की कोशिकाओं की मरम्मत धीमी हो जाती है और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस बढ़ जाता है, जो धीरे-धीरे रेटिना को नुकसान पहुंचाता है। यह स्थिति आगे चलकर मोतियाबिंद, ग्लूकोमा, डायबिटिक रेटिनोपैथी, रेटिनल डिटैचमेंट और एनीमिक रेटिनोपैथी जैसी आंखों की बीमारियों का कारण बन सकती है।
आंखों की थकान
कम आयरन के कारण शरीर और आंखों तक ऑक्सीजन की आपूर्ति घट जाती है। इससे आंखों को फोकस करने में कठिनाई होती है और लंबे समय तक पढ़ने या कंप्यूटर पर काम करने के बाद आंखों में भारीपन, दर्द या धुंधलापन महसूस होता है।
सूखी आंखें
आयरन की कमी से टीयर प्रोडक्शन यानी आंसू बनना प्रभावित होता है, जिससे आंखें सूखी और जलन महसूस होती हैं। ऐसे में आंखों में खुजली, लालपन या किरकिरापन हो सकता है। लंबे समय तक ड्राईनेस रहने पर संक्रमण और सूजन का खतरा बढ़ जाता है।
धुंधला दिखाई देना
अगर, आयरन की कमी गंभीर हो, तो आंखों तक पहुंचने वाली ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की कमी से दृष्टि धुंधली हो सकती है। यह स्थिति समय के साथ स्थायी नुकसान में बदल सकती है।
आंखों के सफेद हिस्से का फीका पड़ना
कंजक्टाइवा यानी आंखों की झिल्ली, का फीका या सफेद पड़ना एनीमिया का स्पष्ट संकेत है। यह दर्शाता है कि आंखों तक पर्याप्त लाल रक्त कोशिकाएं और ऑक्सीजन नहीं पहुंच रही हैं।
बार-बार आंखों में संक्रमण
आयरन इम्यून सिस्टम को मजबूत रखता है। इसकी कमी से शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्यूनिटी घट जाती है, जिससे कंजंक्टिवाइटिस यानी पिंक आई या कॉर्नियल इंफ्लेमेशन जैसे संक्रमण बार-बार हो सकते हैं।
वहीं, गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट डॉ. सौरभ सेठी ने टॉप 10 गट-फ्रेंडली स्नैक्स शेयर किए हैं। उन्होंने बताया कि ये हेल्दी स्नैक्स पेट को हल्का रखते हैं, डाइजेशन को सपोर्ट करते हैं और एनर्जी लेवल को स्टेबल बनाए रखते हैं।