उम्र बढ़ने के साथ-साथ व्यक्ति के मस्तिष्क में भी कुछ बदलाव होते हैं। कभी-कभी कुछ बातों को याद करने में समस्याएं आ सकती हैं, लेकिन अल्जाइमर रोग तथा अन्य प्रकार के मनोभ्रंश यानी डिमेंशिया में स्मृतिलोप और कुछ अन्य लक्षण दिखाई होते हैं, जो डेली लाइफ में गंभीर कठिनाइयां पैदा करते हैं। दरअसल, अल्जाइमर रोग एक मस्तिष्क का विकार है, जो धीरे-धीरे याददाश्त, सोचने, तर्क करने और व्यवहार को प्रभावित करता है। यह डिमेंशिया यानी मनोभ्रंश का सबसे आम कारण है और मस्तिष्क की कोशिकाओं के नष्ट होने से होता है। अल्जाइमर का फिलहाल कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन कुछ दवाएं और उपचार इसके लक्षणों को धीमा कर सकते हैं।

अल्जाइमर के लक्षणों और इलाज को लेकर कई रिसर्च और स्टडी की जा रही है। जर्मनी के शोधकर्ताओं द्वारा अगस्त 2025 में प्रकाशित एक नई स्टडी ने साबित किया है कि इस बीमारी का शुरुआती संकेत स्मृति नहीं, बल्कि गंध की क्षमता कम होना है। यह खोज दुनिया भर के चिकित्सकों और शोधकर्ताओं के लिए एक महत्वपूर्ण सुराग है, क्योंकि शुरुआती पहचान से इस घातक बीमारी की प्रगति को धीमा किया जा सकता है।

क्या कहती है नई स्टडी?

अर्ली लोकस कोएर्यूलस नॉरएड्रेनर्जिक एक्सॉन लॉस ड्राइव्स ऑल्फैक्ट्री डिसफंक्शन इन अल्जाइमर डिजीज के नाम से की गई स्टडी के मुताबिक, मस्तिष्क की माइक्रोग्लिया नामक प्रतिरक्षा कोशिकाएं गलती से उन नर्व कनेक्शनों को नष्ट कर देती हैं, जो लॉकस कोरूलियस से निकलकर ओल्फैक्टरी बल्ब तक जाते हैं। यह ओल्फैक्टरी बल्ब गंध पहचानने के लिए जिम्मेदार होता है।

रिसर्च में यह भी सामने आया कि नर्व कोशिकाओं की झिल्ली में बदलाव होने से वे “Eat-Me Signal” नामक संदेश भेजने लगती हैं। इस संकेत को देखकर माइक्रोग्लिया समय से पहले ही इन नर्व कनेक्शनों को खत्म कर देती हैं। यह प्रक्रिया याददाश्त में कमी आने से पहले ही शुरू हो जाती है, यानी गंध पहचानने की क्षमता का घटना, अल्जाइमर का पहला लक्षण हो सकता है।

स्मेल और अल्जाइमर का संबंध

दरअसल, मस्तिष्क के वे हिस्से जो गंध यानी स्मेल की प्रोसेसिंग करते हैं, अल्जाइमर में सबसे पहले प्रभावित होते हैं। जब यह क्षति होती है, तो मरीज को गंध पहचानने में दिक्कत आती है। यही शुरुआती संकेत बताता है कि मस्तिष्क में न्यूरोडिजेनरेशन यानी तंत्रिका कोशिकाओं को नुकसान शुरू हो चुका है। एक्सपर्ट के मुताबिक, गंध खोने की क्षमता आगे चलकर डिमेंशिया और अल्जाइमर की प्रगति को बताने में मदद कर सकती है। स्मेल टेस्टिंग भविष्य में एक उपयोगी और सस्ती डायग्नोस्टिक तकनीक साबित हो सकती है।

डब्ल्यूएचओ (WHO) के मुताबिक, 2025 में दुनियाभर में 5.5 करोड़ (55 मिलियन) से ज्यादा लोग डिमेंशिया से पीड़ित हैं। हर 20 साल में यह संख्या दोगुनी हो रही है। 65 साल से अधिक उम्र के लगभग हर 9 में से 1 व्यक्ति को डिमेंशिया है। 75 साल की उम्र के बाद इसका जोखिम तेजी से बढ़ जाता है। महिलाओं में डिमेंशिया के मामले पुरुषों की तुलना में लगभग दोगुने पाए जाते हैं। 1991 में जहां करीब 1.9 करोड़ लोग प्रभावित थे, वहीं 2021 में यह आंकड़ा बढ़कर 4.9 करोड़ हो गया, यानी 160% की वृद्धि हुई है।

डिमेंशिया होने के कारण

  • हाई ब्लड प्रेशर</li>
  • ब्लड शुगर और मोटापा
  • धूम्रपान और अधिक शराब का सेवन
  • एक्सरसाइज और फिजिकल एक्टिविटी की कमी

कैसे कर सकते हैं बचाव

हालांकि, अल्जाइमर और डिमेंशिया का अभी तक कोई स्थायी इलाज उपलब्ध नहीं है, लेकिन शोध बताते हैं कि लाइफस्टाइल में बदलाव करके इसका खतरा काफी हद तक कम किया जा सकता है। रोजाना फिजिकल एक्टिविटी, संतुलित और पोषणयुक्त आहार लेना, धूम्रपान और शराब से दूरी, ब्लड प्रेशर और शुगर को कंट्रोल रखना आदि से इस समस्या से बचा जा सकता है।

वहीं, एम्स के पूर्व कंसल्टेंट और साओल हार्ट सेंटर के फाउंडर एंड डायरेक्टर डॉ. बिमल झाजर ने बताया अगर आपका कोलेस्ट्रॉल हाई है तो आप एनिमल फूड्स का सेवन करने से परहेज करें।