Cancer Screening and Early Detection: कैंसर की प्रारंभिक जांच के जरिए रोगियों में पनप रही कैंसर बीमारी का जल्द से जल्द पता लगाने में मदद मिलती है ताकि रोगी को सही उपचार के लिए पर्याप्त समय मिल सके। गुरुग्राम स्थित मेदांता कैंसर इंस्टीट्यूट के मेडिकल और हेमेटो ऑन्कोलॉजी के अध्यक्ष डॉ अशोक कुमार वैद इंडियन एक्सप्रेस से बताया कि यदि कैंसर के उपचार में देरी या जटिलता होती है, तो पीड़ित व्यक्ति के जीवित रहने की संभावना कम हो जाती है। आइए जानते हैं कि कैंसर की जांच किस उम्र में और क्यों करानी चाहिए-
कैंसर की जांच क्यों जरूरी है?
स्क्रीनिंग का प्राथमिक लक्ष्य प्रारंभिक अवस्था में कैंसर का पता लगाना है, खासकर जब व्यक्ति में किसी भी प्रकार का कोई लक्षण न दिखाई दे रहा हो। यदि कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी का जल्दी पता चल जाता है, तो उसके ठीक होने की संभवना अधिक होती है साथ ही उपचार अत्यधिक महंगा भी नहीं होता है। इसके अलावा कैंसर से पीड़ित लोगों की मृत्युदर को भी कम किया जा सकता है। कैंसर को लेकर अभी भी लोगों में जागरूकता की कमी है, जिसके कारण इस बीमारी से बचने के लिए लोग समय रहते उचित कदम नहीं उठा पाते हैं।
कैंसर का जल्द पता लगाने के लिए एक सुनियोजित राष्ट्रीय रणनीति की आवश्यकता है। जिसमें कैंसर स्क्रीनिंग नीतियां, गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) के साथ मिलकर पहल करने की आवश्यकता है। नीति निर्माताओं, सरकार, स्वास्थ्य सेवा समुदाय, गैर-सरकारी संगठनों और शैक्षणिक संस्थानों को पूरे देश में कैंसर के मामलों को कम करने के लिए उनकी शीघ्र पहचान कर उनके गुणात्मक उपचार के लिए एक साथ काम करना चाहिए।
क्या कैंसर की जांच कराने की कोई विशेष उम्र होती है?
कैंसर का पता किसी भी उम्र में लगाया जा सकता है। कैंसर के प्रकार और जोखिम के कारकों से उम्र निर्धारित होती है। उदाहरण के लिए कोलोरेक्टल कैंसर के लिए औसत उम्र 45 वर्ष के लोगों को नियमित रूप से जांच करानी चाहिए। यदि ब्रेस्ट कैंसर का पारिवारिक इतिहास है तो 25 वर्ष की उम्र में महिलाओं को स्क्रीनिंग शुरू कर देनी चाहिए। इसी तरह प्रत्येक कैंसर, जैसे गर्भाशय कैंसर, सर्वाइकल कैंसर, ओरल कैंसर, लंग्स कैंसर के लिए स्क्रीनिंग उनके जोखिम कारकों और विशिष्ट उम्र में होने के आधार पर निर्धारित किया जाता है।
आपको कौन से कैंसर की जांच करानी चाहिए?
ब्रेस्ट कैंसर : राष्ट्रीय कैंसर संस्थान के अनुसार 40 से 74 वर्ष की आयु की महिलाओं में स्तन कैंसर से होने वाली मौतों को कम करने के लिए मैमोग्राफी टेस्ट जरूर कराना चाहिए। आमतौर पर डॉक्टर 50 से 69 वर्ष की आयु की महिलाओं को स्क्रीनिंग शुरू करने की सलाह देते हैं।
सर्वाइकल कैंसर : सर्वाइकल कैंसर स्क्रीनिंग के लिए ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) टेस्ट और पैप टेस्ट की सलाह दी जाती है। ये परीक्षण कैंसर बनने से पहले असामान्य कोशिकाओं का पता लगाकर और उनका इलाज करके बीमारी को रोकने में मदद करते हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक 21 साल की उम्र से स्क्रीनिंग शुरू होनी चाहिए और 65 साल की उम्र तक जारी रहना चाहिए।
कोलोरेक्टल कैंसर : कोलोरेक्टल कैंसर के लिए कई प्रकार के स्क्रीनिंग टेस्ट मौजूद हैं, जिनमें कॉलोनोस्कोपी, सिग्मोइडोस्कोपी और स्टूल टेस्ट शामिल हैं। डॉक्टर सलाह देते हैं कि जिन लोगों को कोलोरेक्टल कैंसर का औसत जोखिम होता है, उन्हें इनमें से एक परीक्षण 45 से 50 और 75 की उम्र के बीच करवाना चाहिए।
फेफड़ों के कैंसर : फेफड़ों के कैंसर के लिए एक सीटी स्कैन की सलाह दी जाती है, जिसके जरिए लंग्स कैंसर का जल्दी पता लगाने में मदद मिली है। अधिक धूम्रपान करने वालों में फेफड़ों के कैंसर से होने की अधिक संभावना रहती है। इसलिए डॉक्टर 50 और 80 वर्ष की आयु के उन लोगों की जांच करने की सलाह देते हैं जो अधिक धूम्रपान करते हैं या कर चुके हैं।