अलका ‘सोनी’
भारत में महिलाओं में खून की कमी वैश्विक औसत से बीस फीसद ज्यादा है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के आंकड़ों के अनुसार देश में खासतौर से गर्भवती महिलाओं में खून की कमी ज्यादा देखी गई है।
अक्सर महिलाओं के अधिकारों, उनकी पुरुषों से समानता और शिक्षा की बातें की जाती हैं। नारी शक्ति के नित नए नारे दिए जाते हैं। मगर यह भी सच है कि कोई भी इंसान या तबका तभी अपने अधिकारों के लिए लड़ सकता है, जब वह शारीरिक रूप से भी सक्षम हो। यह बात महिलाओं पर अक्षरश: लागू होती है।
हमारे देश में लड़कों की परवरिश पर तो ध्यान दिया जाता है, लेकिन लड़कियों के स्वास्थ्य पर उस तरह ध्यान नहीं दिया जाता है। हमारे देश में ऐसी मानसिकता की प्रधानता है, जिसमें लड़कियों के साज-शृंगार की ओर ज्यादा झुकाव पाया जाता है। उनके परवरिश में शुरू से उनके सौष्ठव और सुंदरता पर ध्यान दिया जाता है, जिसके कारण उनका शारीरिक विकास उतना नहीं हो पाता।
वे अपने आगे के जीवन के लिए शारीरिक रूप से तैयार नहीं हो पातीं। उनमें अपने खानपान को लेकर जागरूकता का अभाव होता है। साथ ही, किशोरियों में मासिक धर्म के कारण खून की लगातार क्षति होती रहती है। फिर विवाह के बाद गर्भवती होने और बच्चों के जन्म के समय उनमें रक्त की कमी होने का भय बना रहता है। इसका अगर ध्यान न रखा जाए तो आगे चल कर एनीमिया यानी रक्ताल्पता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जो कि बहुत खतरनाक होती है।
रक्ताल्पता में रक्त में मौजूद लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या या हीमोग्लोबिन की मात्रा सामान्य से कम हो जाती है। गौरतलब है कि शरीर में आक्सीजन प्रवाह के लिए हीमोग्लोबिन की आवश्यकता होती है। ऐसे में अगर शरीर में लाल रक्त कोशिकाएं और पर्याप्त हीमोग्लोबिन नहीं है, तो उसकी वजह से शरीर के ऊतकों तक आक्सीजन ले जाने के लिए रक्त की क्षमता कम हो जाती है। इसके कारण थकान, कमजोरी, चक्कर आना और सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्याएं हो सकती हैं। कई मामलों में तो यह कमी जानलेवा भी हो सकती है।
भारत में 15 से 49 वर्ष की आयु की करीब 53.1 फीसद महिलाएं और युवतियां खून की कमी और एनीमिया का शिकार हैं। भारत में महिलाओं में रक्ताल्पता वैश्विक औसत से बीस फीसद ज्यादा है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के आंकड़ों के अनुसार देश में खासतौर से गर्भवती महिलाओं में खून की कमी ज्यादा देखी गई है।
गर्भावस्था के दौरान बच्चे के समुचित विकास के लिए महिला को ज्यादा लौह तत्त्व यानी आयरन की आवश्यकता होती है। सामान्य दिनों के मुकाबले गर्भावस्था में एक महिला को पचास प्रतिशत ज्यादा (प्रति दिन सामान्य 18 मिलीग्राम के बजाय 27 मिलीग्राम प्रतिदिन) आयरन की आवश्कता होती है। प्रसव के दौरान खून बहने के कारण भी महिला में रक्ताल्पता की संभावना बनी रहती है। रक्ताल्पता के कारण गर्भावस्था के दौरान मृत्यु होने का भी खतरा बना रहता है। इससे बच्चे में विकलांगता और कमजोर मानसिक स्वास्थ्य होने का खतरा भी बना रहता है।
शरीर में लौह तत्त्व की कमी होना रक्ताल्पता यानी एनीमिया का सबसे सामान्य लक्षण है। इसके साथ ही फोलेट, विटामिन बी12 और विटामिन ए की कमी, दीर्घकालिक सूजन तथा जलन, परजीवी संक्रमण तथा आनुवंशिक विकार भी रक्ताल्पता के कारण हो सकते हैं। शोध के मुताबिक शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में रक्ताल्पता का प्रसार कहीं ज्यादा है। राज्यों में भी जहां नगालैंड में 15 से 49 वर्ष की 22.6 फीसद महिलाएं और युवतियां रक्ताल्पता से ग्रस्त थीं, वहीं झारखंड में यह आंकड़ा 64.4 फीसद तक दर्ज किया गया।
ऐसे में विचारणीय है कि ऐसा क्या है, जो इतनी बड़ी संख्या में देश की महिलाएं खून की कमी से जूझ रही हैं, जो उनके जीवन के लिए गंभीर खतरा बन सकता है। भारत में खानपान में पोषण की कमी इसकी एक वजह है, लेकिन देश में बढ़ता वायु प्रदूषण भी इस समस्या को और बढ़ा रहा है। हाल ही में इस पर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) दिल्ली के शोधकर्ताओं की अगुआई में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि वायु प्रदूषण और उसमें मौजूद प्रदूषण के महीन कण, जिन्हें हम पीएम 2.5 के नाम से जानते हैं, उनके संपर्क में लंबे समय तक रहने से रक्ताल्पता का खतरा बढ़ सकता है।
शोधकर्ताओं के विश्लेषण के अनुसार अगर भारत विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी वायु गुणवत्ता मानक 5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के लक्ष्य को हासिल कर ले, तो देश में रक्ताल्पता का प्रसार 53 फीसद से घटकर 39.5 फीसद हो जाएगा। मतलब, देश की वायु गुणवत्ता में सुधार करके रक्ताल्पता का प्रसार 14 फीसद तक कम किया जा सकता है। शोध में यह भी सामने आया है कि इसकी वजह से देश में करीब 186 जिले रक्ताल्पता के लिए 35 फीसदी के राष्ट्रीय लक्ष्य को हासिल कर लेंगे।
‘नेचर सस्टेनेबिलिटी’ शोध पत्रिका में प्रकाशित इस अध्यन से यह भी पता चला है कि वायु प्रदूषण के रूप में कार्बनिक और धूल कणों की तुलना में सल्फेट और ब्लैक कार्बन रक्ताल्पता के प्रसार के लिए कहीं ज्यादा जिम्मेवार हैं। शोध के मुताबिक देश में बढ़ते पीएम 2.5 के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेवार उद्योग हैं।
बिजली, असंगठित क्षेत्रों और घरों से फैल रहा प्रदूषण, सड़कों की धूल, कृषि अपशिष्ट जलाने और परिवहन के कारण भी देश में पीएम 2.5 का स्तर बढ़ रहा है।शोधकर्ताओं के मुताबिक देश में वायु प्रदूषण में कटौती और स्वच्छ ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देने से ‘एनीमिया मुक्त’ मिशन के लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में तेजी आएगी।
राष्ट्रीय कार्यक्रमों के कार्यान्वयन सहित स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं को मजबूत करने की प्राथमिक जिम्मेदारी संबंधित राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों की है। हालांकि, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान कर रहा है।
2018 में भारत सरकार ने जीवन चक्र दृष्टिकोण में महिलाओं, बच्चों और किशोरों में रक्ताल्पता कम करने के लक्ष्य के साथ एनीमिया मुक्त भारत (एएमबी) रणनीति शुरू की। रक्ताल्पता के मामलों से निपटने के लिए राजस्थान, मध्यप्रदेश, हरियाणा, झारखंड और बिहार सहित एनीमिया मुक्त भारत (एएमबी) के तहत गर्भवती महिलाओं के लिए कुछ कदम उठाए गए हैं।
इसमें किशोरियों (10-19 वर्ष) के बीच रोगनिरोधी आयरन और फोलिक एसिड अनुपूरण, डिजिटल तरीकों और देखभाल उपचार के बिंदु का उपयोग करके एनीमिया का परीक्षण, मलेरिया, हीमोग्लोबिनोपैथी और फ्लोरोसिस पर विशेष ध्यान देने के साथ एनीमिया के गैर-पोषण संबंधी कारणों की पहचान करना, आयरन सुक्रोज द्वारा गर्भवती महिलाओं में गंभीर रक्ताल्पता का प्रबंधन करना आदि शामिल हैं।
नए मातृ स्वास्थ्य और एनीमिया मुक्त भारत दिशानिर्देशों पर चिकित्सा अधिकारियों और अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण और उन्मुखीकरण गर्भवती महिलाओं में रक्ताल्पता पर केंद्रित सामुदायिक एकजुटता गतिविधियों और आइईसी और बीसीसी गतिविधियों के माध्यम से आशा द्वारा क्षेत्र स्तर पर जागरूकता फैलाई जा रही है।
एनीमिया मुक्त भारत अभियान के तहत छह माह से 19 वर्ष तक के बच्चों तथा गर्भवती और शिशुवती महिलाओं को आयरन फोलिक एसिड पूरक यानी आइएफए की खुराक दी जाती है। साथ ही स्कूलों में बच्चों को आइएफए की दवाई दी जाती है। आमतौर पर देखा जाता है कि पूरे घर की देखभाल और चिंता करने वाली महिलाएं अपने पोषण का उचित ध्यान नहीं रख पातीं, जिसके चलते उनमें रक्ताल्पता की समस्या गंभीर रूप ले लेती है। खानपान में सजगता और थोड़ी जानकारी से रक्ताल्पता से बचाव संभव है। महिलाओं को पूरे घर के साथ-साथ स्वयं पर भी उतना ही ध्यान देने की आवश्यकता है, क्योंकि वे ही पूरे घर की धुरी होती हैं, इसलिए उनका स्वस्थ होना परिवार के बेहतर भविष्य के लिए बेहद आवश्यक है।