एक रोग ऐसा है जो हमारी आंखों की रोशनी धीरे-धीरे चुरा लेता है। फिर एक दिन ऐसा आता है, जब साफ दिखना बंद हो जाता है। यह सब हमारी लापरवाही की वजह से होता है। एक तरफ प्रदूषण और तनाव, दूसरी ओर उम्र बढ़ने के साथ शरीर के अंदर आ रहे बदलाव इसके कारण हैं। यही नहीं, हम सामान्य लक्षणों को भी महीनों नजरअंदाज करते चले जाते हैं। ऐसे में नजर धुंधली होना पहली चेतावनी है। ग्लूकोमा ऐसा ही रोग है, जो आंखों का ख्याल न रखने की वजह से होता है। अगर समय पर इसका उपचार न हो, तो आंखों की रोशनी तक जा सकती है। दुनिया भर में लाखों लोग इस समस्या से पीड़ित होते हैं। ओजस मैक्सीविजन आई हॉस्पिटल्स, नेत्र रोग विशेषज्ञ, लेसिक और मोतियाबिंद सर्जन, डॉ. अंकिता मूलचंदानी ने बताया कि कैसे आंखों की हेल्थ को कैसे इंप्रूव कर सकते हैं।
ग्लूकोमा यानी काला मोतिया
ग्लूकोमा को आमतौर पर काला मोतिया कहा जाता है। इसके लक्षणों का शुरू में पता नहीं चलता। जिससे यह रोग उपेक्षित हो जाता है। नतीजा यह कि आंखों की ‘आप्टिक नर्व’ अर्थात नेत्र तंत्रिका पर धीरे-धीरे दबाव बढ़ता जाता है। परिणाम यह कि इससे आंखों को काफी नुकसान पहुंचता है। अंतत: आंखों की तंत्रिका को क्षति पहुंचती है।
चिकित्सा भाषा में इसे ‘इंट्रा आक्युलर प्रेशर’ कहा जाता है। आंखों के भीतर दबाव का बढ़ जाना। यह आप्टिक नर्व ही है, जो चीजों की पहचान कर दिमाग को बताता है। इसलिए इस तंत्रिका पर कोई भी दबाव उसे अपना कार्य करने में असमर्थ बना देता है। फिर आंखों की रोशनी धीरे-धीरे गुम होने लगती है। इसलिए सामान्य लक्षणों से थोड़ी भी शंका हो, तो चिकित्सक से तत्काल संपर्क करें। चालीस की उम्र पार करने के बाद सभी को सतर्क हो जाना चाहिए।
क्या हैं कारण
किसी भी व्यक्ति में काला मोतिया होने के कई कारण होते हैं। मुख्य रूप से ‘आप्टिक नर्व’ नुकसान पहुंचने पर ऐसा होता है। मगर यह रोग होने की बड़ी वजह बढ़ती उम्र है। काला मोतिया होने का पारिवारिक इतिहास रहा हो, तो भी इसकी संभावना बन जाती है। इसके अलावा ब्लड शुगर, हाई ब्लड प्रेशर और माइग्रेन भी काला मोतिया होने का कारण है। अगर आंखों की कोई शल्य क्रिया हुई हो, तो इससे भी काला मोतिया होने के आसार बढ़ जाते हैं। इन सारी परिस्थितियों में सजगता की जरूरत होती है।
लक्षणों की पहचान
यह सच है कि काला मोतिया जैसे ही बनना शुरू होता है, तो अमूमन इसका पता नहीं चलता। क्योंकि इसके शुरुआती लक्षण दिखाई नहीं देते। जब समस्या गंभीर होने लगती है, तब आंखों में ‘ब्लाइंड स्पाट’ बनने लगते हैं। मगर जब आप्टिक नर्व को क्षति पहुंचने लगती है, तो मरीज को सिर और आंखों में दर्द होने लगता है। रोशनी के चारों ओर घेरे दिखने लगते हैं। आंखों का लाल हो जाना भी लक्षणों में शामिल है। मरीज का जी मिचलाता है। उसे उल्टी होती है। ऐसे में सावधानी बरतनी चाहिए।
बचाव और उपचार
काला मोतिया से बचाव के लिए जरूरी है कि आंखों का विशेष ध्यान रखा जाए। पहले अगर कभी आंखों में गंभीर चोट लगी हो, तो काला मोतिया होने का अंदेशा बना रहता है। ऐसे में आंखों की नियमित जांच ही ऐसा उपाय है, जिससे इस रोग को बढ़ने से रोका जा सकता है। जांच के बाद चिकित्सक की हिदायतें और दवाइयां आंखों की रोशनी कम होने से रोक लेती हैं। अगर समय रहते उपचार हो, तो काला मोतिया को गंभीर होने से रोका जा सकता है।
ग्लूकोमा की जांच नेत्र विशेषज्ञ कई तरीके से करते हैं। जरूरत पड़ने पर ‘ग्लूकोमा फिल्टरिंग सर्जरी’ या ‘लेजर ट्रैबेक्यूलोप्लास्टी सर्जरी’ की जाती है। इन सब उपायों और सावधानियों के अलावा मरीजों को पोषक तत्त्वों से भरपूर आहार लेना फायदेमंद रहता है। विटामिन सी और ई भी कारगर मानी गई है। पत्तेदार सब्जियां और विटामिन ‘ए’ युक्त खाद्य पदार्थों को आहार में अवश्य शामिल करना चाहिए।
वहीं, फिटनेस ट्रेनर नवनीत रामप्रसाद के अनुसार, सिर्फ लंबी वॉक करना 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को मजबूत बनाने के बजाय और भी कमजोर कर सकता है।