लिवर शरीर का दूसरा सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण अंग है। हेल्दी और स्वस्थ शरीर के लिए लिवर का सही ढंग से काम करना बेहद जरूरी है। यह न केवल शरीर को डिटॉक्स करने का काम करता है, बल्कि मेटाबॉलिज्म कंट्रोल करने और हार्मोन को संतुलित रखने में भी अहम भूमिका निभाता है। आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में प्रोसेस्ड फूड, शराब का सेवन और बैठे-बैठे रहने की आदतें लिवर पर ज्यादा दबाव डालती हैं, जिसके चलते फैटी लिवर की समस्या हो सकती है। हालांकि, लिवर में चर्बी जमा केवल शराब की वजह से नहीं होती, बल्कि कई अन्य कारणों से भी हो सकती है।

दरअसल, फैटी लिवर की समस्या को दो हिस्सों में बांटा गया है। अल्कोहॉलिक फैटी लिवर रोग (AFLD) और नॉन-अल्कोहॉलिक फैटी लिवर रोग (NAFLD)। हालांकि, दोनों सुनने में एक जैसे लगते हैं, दोनों ही लिवर को चुपचाप नुकसान पहुंचाते हैं और दोनों ही आगे चलकर सिरोसिस या लिवर कैंसर जैसी गंभीर बीमारी में बदल सकते हैं। ऐसे में ये जानना बहुत जरूरी है कि अल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज (AFLD) या नॉन-अल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज (NAFLD) दोनों में से कौन सा सबसे ज्यादा खतरनाक है।

शराब सबसे बड़ा विलेन

शराब लिवर को सबसे तेज और ज्यादा नुकसान पहुंचाती है। ज्यादा शराब पीने से लिवर की कोशिकाएं जल्दी खराब होती हैं और कुछ ही सालों में लिवर सख्त होकर सिरोसिस तक पहुंच सकता है। इसी वजह से लंबे समय तक AFLD को सबसे बड़ा खतरा माना गया।

रिसर्च के मुताबिक, अब NAFLD यानी बिना शराब वाला फैटी लिवर तेजी से दुनिया में बढ़ रहा है। विश्व की करीब 38% आबादी इस समस्या से जूझ रही है। भारत में मोटापा, डायबिटीज और बैठे-बैठे रहने की आदत इसे और भी तेजी से बढ़ा रही है।

अल्कोहॉलिक फैटी लिवर

जब शराब शरीर में जाती है, तो लिवर उसे तोड़ने में मेहनत करता है। इस प्रक्रिया में जहरीले तत्व बनते हैं, जो लिवर की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाते हैं और सूजन बढ़ाते हैं। धीरे-धीरे वसा जमा होती है, स्कारिंग होती है और लिवर कठोर होने लगता है। AFLD की सबसे बड़ी समस्या है, ज्यादा शराब पीना है। शराब पीने वालों में 8–10 साल में फैटी लिवर से सिरोसिस तक की स्थिति बन सकती है। हालांकि, शराब को अगर समय रहते इसे छोड़ दिया जाए तो लिवर में काफी हद तक सुधार संभव है। कई मरीज शराब पूरी तरह छोड़ने के बाद कुछ ही महीनों में लिवर को सामान्य अवस्था में लाते देखे गए हैं।

नॉन-अल्कोहॉलिक फैटी लिवर

AFLD के उलट, NAFLD का कोई एक सीधा कारण नहीं होता। यह मोटापा, इंसुलिन रेसिस्टेंस, डायबिटीज, हाई कोलेस्ट्रॉल और खराब आंत स्वास्थ्य से जुड़ा है।

इसकी सबसे बड़ी खतरनाक बात है लक्षणों का न होना। यह चुपचाप सालों तक मौजूद रहता है और जब थकान, पीलिया या अन्य लक्षण सामने आते हैं, तब तक लिवर में गंभीर स्कारिंग हो चुकी होती है। NAFLD को उलटना मुश्किल है, क्योंकि यहां कोई सिंपल उपाय जैसे शराब छोड़ना नहीं है।

कौन सा ज्यादा खतरनाक?

फैटी लिवर दोनों ही खतरनाक हैं, लेकिन अपने-अपने तरीके से। अल्कोहॉलिक फैटी लिवर रोग (AFLD) तेजी से लिवर को नुकसान पहुंचाता है, लेकिन समय रहते शराब छोड़ने पर सुधार संभव। वहीं, नॉन-अल्कोहॉलिक फैटी लिवर रोग (NAFLD) धीरे-धीरे बढ़ता है, लक्षण नहीं दिखाता और मोटापा व डायबिटीज से गहराई से जुड़ा है। यह दुनिया में तेजी से फैल रहा है और स्वास्थ्य पर ज्यादा असर डाल रहा है। अगर समय रहते इलाज और कंट्रोल न किया जाए, तो दोनों ही सिरोसिस, लिवर फेल्योर या लिवर कैंसर में बदल सकते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले समय में NAFLD का बोझ AFLD से ज्यादा गंभीर हो सकता है।

कैसे करें बचाव

फैटी लिवर की कहानी केवल शराब या बिना शराब की नहीं है। फैटी लिवर की समस्या से बचाव और सुरक्षा के लिए कुछ चीजों का ध्यान रखना चाहिए। जैसे संतुलित आहार लेना, वजन कंट्रोल में बनाए रखना, नियमित फिजिकल एक्टिविटी करना, शराब से दूर रहना, डायबिटीज और कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल करना और नियमित हेल्थ चेकअप करवाना आदि जरूरी है।

वहीं, NCBI में प्रकाशित एक शोध के मुताबिक, लिवर को हेल्दी रखने के लिए विटामिन ए और विटामिन डी की पर्याप्त मात्रा शरीर में जरूर होनी चाहिए।