दिपावली बाद कई महानगरों और शहरों में वायु प्रदूषण बढ़ गया। हवा में धुआं और धूल कितना खतरनाक होता है, यह तब पता चलता है जब बड़ी संख्या में लोग सांस की बीमारियों और फेफड़े में रोग की वजह से अस्पताल पहुंचते हैं।
आंखों में जलन और सांस लेने में परेशानी सामान्य बात है। मगर सबसे गंभीर बात यह है कि इसका असर पूरे शरीर पर पड़ता है। नतीजा कई बार लोग घातक रोग के भी शिकार हो जाते हैं।
सबसे बड़ा खतरा
वायु प्रदूषण सबको अपनी चपेट में लेता है। मगर बच्चे और बुजुर्ग इसकी जद में पहले आते हैं। अधिक उम्र के लोगों के फेफड़े पर गंभीर असर पड़ता है। कई बार तो यह कैंसर के रूप में सामने आता है। दरअसल, प्रदूषण के दौरान वातावरण में मौजूद हानिकारक कण हमारे फेफड़े में आकर जमा हो जाते हैं और ये कैंसर कोशिकाओं को बढ़ावा देते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कई देशों में वायु प्रदूषण के कारण फेफड़े के कैंसर का जोखिम बढ़ रहा है। हालांकि यह खतरनाक स्थिति धूम्रपान से भी पैदा होती है। मगर चिंता की बात यह है कि जो धूम्रपान नहीं करते, वे भी कम जोखिम में नहीं रहते।
दिल को पहुंचाता है नुकसान
वायु प्रदूषण का असर फेफड़े और आंखों पर ही नहीं पड़ता, यह दिल की सेहत को भी खतरे में डाल देता है। वातावरण में मौजूद रासायनिक कण श्वास नली के माध्यम से हृदय को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इससे दिल का दौरा पड़ने का जोखिम बढ़ जाता है।
आकाश हेल्थकेयर सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल नई दिल्ली के हेड डॉ. अक्षय बुधराजा के मुताबिक,
जहरीली हवा में मौजूद पीएम 2.5 और पीएम10 का असर दिल के साथ मस्तिष्क पर भी असर डालता है। नतीजा ब्रेन स्ट्रोक का अंदेशा बढ़ जाता है। अगर कोई पहले से हृदय रोगी है, तो उन्हें सचेत हो जाना चाहिए।
प्रतिरोधक क्षमता पर असर
डॉ. अक्षय बुधराजा आगे कहते हैं कि वायु प्रदूषण बहुत खामोशी से पूरे शरीर की प्रणाली पर असर डालता है। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता भी घटने लगती है। प्रदूषित हवा के संपर्क में आने पर बच्चों और बुजुर्गों के फेफड़े की कार्यक्षमता घट जाती है। अगर कोई लंबे समय तक प्रदूषित वातावरण में रहता है, तो उसकी रोग से लड़ने की शक्ति कम होने लगती है। ऐसे में कई बीमारियां घेरने लगती हैं। तब कई लोग मौसम बदलने पर भी बीमार हो जाते हैं।
वायु प्रदूषण से घुटता है दम
वायु प्रदूषण का गंभीर असर श्वसन तंत्र पर पड़ता है। आम तौर पर सांस लेने की दिक्कत इसी समय शुरू होती है। क्योंकि प्रदूषण की वजह से फेफड़े तक जाने वाले वायु मार्ग में सूजन आ जाती है। सांस नलियों में संकुचन की वजह से पीड़ित व्यक्ति सांस लेने में दिक्कत महसूस करता है। ऐसे में ‘क्रोनिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज’ (सीओपीडी) की समस्या पैदा हो जाती है। यह वही सांस संबंधी रोग है, जिसका सबसे बड़ा कारण वायु प्रदूषण है।
शहरों और महानगरों में इसके मरीज लगातार बढ़ रहे हैं। चिंता का विषय यह है कि बड़ी संख्या में सीओपीडी रोगी अस्पतालों में पहुंच रहे हैं। यह बीमारी होने पर रोगी सीने में जकड़न महसूस करता है। कई बार वह दर्द की भी शिकायत करता है। प्राय: इस तरह के रोगियों में बलगम बनता है। उन्हें खांसी भी लगातार होती है।
वायु प्रदूषण से कैसे निपटें?
- वायु प्रदूषण से निपटना जहां एक बड़ी चुनौती है, वहीं इससे होने वाली बीमारियों से लड़ना और उसका उपचार कराना कोई आसान नहीं है। निरंतर बढ़ रहे प्रदूषण की वजह से हवा में घुलते जहर से बचने के लिए सभी लोगों को हरसंभव उपाय करना चाहिए। घर से जब भी निकलें, मास्क पहन कर निकलें। इससे प्रदूषक तत्त्वों को शरीर में जाने से पहले ही रोका जा सकता है।
- सड़कों पर निजी वाहनों से चलने के बजाय सार्वजनिक वाहनों का उपयोग करना चाहिए। इससे कमरे का वातावरण स्वच्छ रखा जा सकता है। धूल और धुएं से जितना हो सके, बचना चाहिए। बाहर से लौटने पर गर्म पानी का भांप लेने से फेफड़े को आराम मिलता है।
- डॉ. अक्षय बुधराजा के मुताबिक, बढ़ते वायु प्रदूषण के स्तर से निपटने के लिए सबसे पहले अपने घर की हवा को साफ रखना चाहिए। इसके लिए आप घर पर ही हवा को साफ करने वाले पौधे और एयर प्यूरीफायर लगा सकते हैं। वह आगे कहते हैं कि बीमार व्यक्ति के कमरे में एयर प्यूरीफायर जरूर लगाना चाहिए। इसके अलावा, वह N95 मास्क लगाने की भी सलाह देते हैं।
