दिल्ली की आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार ने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का दरवाजा खटखटाया है और कहा है कि उच्चतम न्यायालय के आदेश के बावजूद केंद्र सरकार, ट्रांसफर पोस्टिंग से जुड़ा उसका फैसला नहीं मान रही है। 11 मई को सुप्रीम कोर्ट की चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने बहुमत से फैसला दिया था कि ट्रांसफर-पोस्टिंग पर दिल्ली सरकार का अधिकार होगा। सुप्रीम कोर्ट AAP सरकार की याचिका पर सुनवाई करने के लिए तैयार हो गई है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि वह अगले सप्ताह बेंच का गठन करेंगे।

दोबारा कहां से शुरू हुआ विवाद?

11 मई को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के कुछ घंटों के भीतर ही दिल्ली सरकार ने राज्य के सर्विसेज डिपार्टमेंट के सेक्रेटरी आशीष मोरे (Ashish More) का तबादला कर दिया था। लेकिन विभाग के अतिरिक्त सचिव ने जवाब दिया कि दिल्ली सरकार के पास खुद अधिकारियों को स्थानांतरित करने या पोस्टिंग देने की शक्ति नहीं है। क्योंकि अभी गृह मंत्रालय का वो आदेश प्रभावी है, जिसके अनुसार ट्रांसफर-पोस्टिंग का शक्ति दिल्ली एलजी के पास है। MHA ने अपना पहले का आदेश न तो रद्द किया और न ही वापस लिया है। ऐसे में दिल्ली सरकार को तब तक ट्रांसफर-पोस्टिंग में दखल नहीं देना चाहिए, जब तक कि केंद्र कोई फैसला नहीं ले लेती।

कौन हैं आशीष मोरे?

आशीष माधवराव मोरे 2005 बैच के आईएएस अफसर हैं। वर्तमान में मोरे दिल्ली सरकार के सर्विसेज डिपार्टमेंट के सचिव हैं। दिल्ली सरकार ने 11 मई को मोरे की जगह 1995 बैच के एजीएमयूटी कैडर के आईएएस अफसर अनिल कुमार सिंह को पोस्टिंग दी थी, लेकिन इस आदेश पर अमल नहीं हुआ।

इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में आम आदमी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि पिछले एक-डेढ़ साल से राज्य में अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग सीधे सर्विसेज डिपार्टमेंट के सेक्रेटरी के जरिए होती थी। वहां से फाइल चीफ सेक्रेटरी को जाती थी और फिर एलजी को। ट्रांसफर-पोस्टिंग में राज्य सरकार कहीं लूप में थी ही नहीं। राज्य सरकार को पता ही नहीं लग पाता था कि कौन अफसर कहां पोस्टेड है। जब ट्रांसफर या नई तैनाती हो जाती थी, तब इसकी जानकारी मिलती थी।

लेकिन क्या इतना आसान है?

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि दिल्ली सरकार, प्रशासनिक अफसरों का ट्रांसफर पोस्टिंग कर सकती है। लेकिन जमीन, कानून और पुलिस में उसका दखल नहीं होगा। इसके अलावा उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार के सभी आदेश मानना होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ-साफ सीमा रेखा भी खींची है। मसलन प्रशासनिक अफसरों की ट्रांसफर पोस्टिंग का अधिकार तो दिल्ली सरकार के पास होगा, लेकिन राष्ट्रीय राजधानी में किस IAS ऑफिसर की पोस्टिंग होगी और कितने समय तक होगी यह फैसला अभी भी केंद्र के हाथों में होगा।

इसके अलावा कुछ महत्वपूर्ण विभागों जैसे गृह या डीडीए के वाइस चेयरपर्सन, एमसीडी कमिश्नर और एनडीएमसी के चेयरपर्सन को लेकर भी रेखा खींची गई है।

असली पावर किसके हाथ में?

इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में एक पूर्व नौकरशाह कहते हैं कि चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि जमीन और कानून से जुड़े मसले चुनी गई सरकार के दायरे से बाहर हैं और इस पर एलजी का प्रशासनिक अधिकार है। इसलिए गृह विभाग के सचिव की नियुक्ति या जीडीए के वीसी की नियुक्ति अभी भी केंद्र के हाथ में होगी। जो बहुत अहम पद हैं।

केंद्र ही करेगा चीफ सेक्रेटरी की नियुक्ति

इसी तरह, ट्रांजेक्शन ऑफ बिजनेस रूल्स के मुताबिक चीफ सेक्रेटरी की नियुक्ति का अधिकार केंद्र के पास ही होगा। केंद्र सरकार सूबे के मुख्यमंत्री की सलाह से चीफ सेक्रेटरी की नियुक्ति करेगी। जो एक तरीके से औपचारिकता ही है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इस पर कोई असर नहीं होगा। आपको बता दें कि चीफ सेक्रेटरी सरकार में सबसे सीनियर नौकरशाह होता है और सिविल एडमिनिस्ट्रेशन का मुखिया होने के अलावा एलजी और सीएम के बीच लिंक का भी काम करता है। साल 2015 में इस मसले पर भी दिल्ली सरकार-एलजी के बीच घमासान मच चुका है।