25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा देश पर थोपे गए आपातकाल को भाजपा ‘काला दिवस’ के रूप में मनाती है। भाजपा-आरएसएस नेता लगातार यह दावा करते हैं कि उनके संगठन ने आपातकाल के खिलाफ कठोर लड़ाई लड़ी।

हालांकि, इतिहास के पन्नों में दर्ज तथ्यों से पता चलता है कि पूरा संघ परिवार आपातकाल का विरोध नहीं कर रहा था। संघ में इस मुद्दे पर मतभेद था। कई ऐसे नेता थे जो पाकिस्तान को तोड़ बांग्लादेश बनाने के लिए इंदिरा गांधी के आभारी थे। वहीं कुछ संजय गांधी के कृत्यों की सराहना कर रहे थे।

एक तरफ आरएसएस नेता नानाजी देशमुख आपातकाल विरोधी आन्दोलन में जेपी के साथ लाठी खा रहे थे, वहीं दूसरी तरफ तत्कालीन सरसंघचालक मधुकर दत्तात्रेय देवरस उर्फ बाला साहब देवरस इंदिरा गांधी को चिट्ठी लिखकर RSS को आपातकाल विरोधी आंदोलन से अलग बता रहे थे।

आपातकाल लागू होने के पांच दिन बाद 30 जून 1975 को देवरस को गिरफ्तार कर महाराष्ट्र की यरवदा जेल भेज दिया गया था। 4 जुलाई 1975 को इंदिरा गांधी सरकार ने राष्‍ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगा गया था।

इंदिरा से मिलना चाहते थे देवरस

इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) के पूर्व निदेशक टी वी राजेश्वर अपनी किताब ‘इंडिया: द क्रूसियल इयर्स’ में लिखत हैं कि ”आपातकाल के मद्देनजर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को प्रतिबंधित कर दिया गया था। लेकिन इसके प्रमुख बालासाहेब देवरस ने चुपचाप प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आवास से संपर्क स्थापित कर लिया था। उन्होंने तत्कालीन पीएम द्वारा उठाए गए कई कदमों का जोरदार समर्थन भी किया था। विशेष रूप से मुसलमानों के बीच परिवार नियोजन को लागू करने के संजय गांधी के ठोस अभियान की देवरस ने प्रशंसा की थी।”

किताब में यह भी दावा किया गया है कि देवरस इंदिरा गांधी और संजय से मिलने के इच्छुक थे, लेकिन यह संभव नहीं था क्योंकि इंदिरा नहीं चाहती थीं कि उन्हें आरएसएस का हमदर्द कहा जाए। बता दें कि राजेश्वर  1980 और 1990 के दशक में कई राज्यों के राज्यपाल भी रह चुके हैं। उनके इस पुस्तक का विमोचन तत्कालीन उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने किया था।

आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी से मिलने की देवरस की इच्छा का जिक्र उनकी खुद की किताब में भी मिलता है। देवरस की पुस्तक ‘हिंदू संगठन और सत्तावादी राजनीति’ से पता चलता है कि जेल जाने के बाद उन्होंने इंदिरा गांधी को कई पत्र लिखे थे।

यरवदा जेल पहुंचने के करीब दो माह बाद देवरस ने इंदिरा गांधी को अपना पहला पत्र लिखा था। 22 अगस्त 1975 को लिखे इस पत्र शुरुआत कुछ इस तरह होती है, ”15 अगस्त 1975 को दिल्ली के लाल किले से राष्ट्र को संबोधित करते हुए, जो भाषण आपने किया, उसे मैंने आकाशवाणी से, यहां कारागार में गौर से सुना, आपका भाषण समयोचित और संतुलित हुआ। और इसलिए मैंने आपको यह पत्र लिखने का फैसला किया।”

इसी पत्र में आगे देवरस इंदिरा गांधी को लगभग संघ की लगाम सौंपते हुए लिखते हैं, ”… जो आपने अपने 15 अगस्त के भाषण में सारे समाज का आह्वान किया वह समयोचित था। आरएसएस का कार्य पूरे देश में फैला हुआ है। उसमें समाज के सभी वर्गों, स्तरों के लोग हैं। अनेक त्यागी कार्यकर्ता संघ में हैं। संघ का सारा कार्य निस्वार्थ भावना पर आधारित है। संघ की ऐसी शक्ति का योजनापूर्वक उपयोग देश के उत्थान के लिए होना जरूरी है।” संघ से प्रतिबंध हाटने का निवेदन करते हुए देवरस अपने अपने पत्र के आखिर में लिखते हैं, ”आपको उचित जान पड़े, तो आपसे मिलने में मुझे आनंद ही होगा।”

इंदिरा ने पत्रों का नहीं दिया जवाब

इंदिरा गांधी ने देवरस के पत्र का जवाब नहीं दिया। फिर देवरस ने अगला पत्र 10 नवंबर 1975 को लिखा। तब तक इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा गांधी के चुनाव को वैध करार दे दिया था। देवरस अपने पत्र की शुरुआत ही इंदिरा को बधाई देते हुए करते हैं, ”उच्चतम न्यायालय के पांचों न्यायाधीशों ने आपका चुनाव वैध ठहराया, इसके लिए आपका हार्दिक अभिनंदन।” जबकि आपातकाल के बीच आए इस फैसले को ज्यादातर विपक्षी दलों ने कांग्रेस सरकार के दबाव में दिया गया फैसला माना था।

इस पत्र में आगे देवरस संघ को आपातकाल विरोधी जेपी आन्दोलन से अलग बताते हैं, ”जयप्रकाश नारायण जी के आन्दोलन के संदर्भ में संघ का नाम लिया गया है। गुजरात आंदोलन, बिहार आन्दोलन, जिनके संबंध में सरकार की ओर से संघ का नाम बार-बार बिना कारण जोड़ा गया, अत: मेरा उसके बारे में कुछ कहना क्रमप्राप्त था। इन आंदोलनों से संघ का कुछ भी संबंध नहीं…” पत्र में आगे देवरस इंदिरा को सफाई देते हुए बताते हैं कि आन्दोलन स्वस्फूर्त और जनता के असंतोष के कारण भड़का है।

जब इंदिरा से पत्रों का जवाब नहीं मिला तब देवरस ने आपातकाल को ‘अनुशासन पर्व’ की संज्ञा देने वाले विनोबा भावे से संपर्क साधने की कोशिश की। 12 जनवरी 1976 को लिखे अपने पत्र में देवरस विनोबा भावे से आग्रह करते हैं कि ”मेरी आपसे प्रार्थना है कि आप प्रधानमंत्री की संघ के विषय में जो गलत धारणा है, उसे दूर करने का प्रयास करें। उसके फलस्वरूप संघ के स्वयंसेवक कारागृह से मुक्त हों, और आज देश में जो सभी क्षेत्रों में उन्नति की योजनाएं प्रधानमंत्री के नेतृत्व में चल रही हैं, उसमें संघ और संघ के सेवक भी अपना योगदान दे सकें, ऐसी स्थिति का निर्माण हो।