37 साल पहले पुणे में हुई छोटी सी सड़क दुर्घटना ने भारत के पूर्व थलसेना अध्यक्ष जनरल अरुण श्रीधर वैद्य की हत्या की गुत्थी सुलझा दी थी। दिलचस्प यह है कि हत्यारा का खालिस्तानी अलगाववादी आंदोलन से भी कनेक्शन था।
यह दुर्घटना 7 सितंबर 1986 को पुणे के पिंपरी-चिंचवड़ में हुई थी, जहां मोटरसाइकिल पर सवार दो लोग एक ट्रक से टकरा गए थे। कुछ ही मिनटों में उन लोगों की मदद के लिए इकट्ठा हुए दर्शक वहां का दृश्य देखकर सदमे में आ गए। उन्होंने हथियार और गोला-बारूद देखा जो उन लोगों के बैग से बाहर गिरे हुए थे।
इसके बाद उनमें से एक ने पिस्तौल उठाई, भीड़ पर गोली चलाने की धमकी दी और भाग गए। लेकिन पिंपरी पुलिस स्टेशन के तत्कालीन इंस्पेक्टर एआई पठान के नेतृत्व में पुलिस ने उनका पीछा किया।
पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, जब दोनों को एक जीप में ले जाया जा रहा था तो उन्होंने कथित तौर पर खालिस्तान समर्थक नारे लगाए और एक दहला देने वाला दावा भी किया। उन्होंने बताया कि उन लोगों ने ही जनरल (सेवानिवृत्त) वैद्य की हत्या की है, जो अमृतसर में स्वर्ण मंदिर परिसर में चलाए ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान भारतीय सेना प्रमुख थे।
कौन थे ये लोग?
वास्तव में, दोनों में से एक व्यक्ति सुखदेव सिंह उर्फ सुक्खा था, जिसने 10 अगस्त 1986 को पुणे में एक अन्य आतंकवादी हरजिंदर सिंह उर्फ जिंदा के साथ वैद्य को गोली मार दी थी। सड़क दुर्घटना के बाद पकड़ा गया दूसरा व्यक्ति सुक्खा का सहयोगी निर्मल सिंह था। एक साल बाद जिंदा को दिल्ली से पकड़ लिया गया।
पुणे में शुरू हुआ यह प्रकरण शहर की यरवदा जेल में समाप्त हुआ, जहां सुप्रीम कोर्ट द्वारा उनकी मौत की सजा बरकरार रखने के बाद 9 अक्टूबर 1992 को सुक्खा और जिंदा को फांसी दे दी गई।
कौन थे जनरल वैद्य?
जनरल वैद्य को पाकिस्तान के साथ 1965 और 1971 के युद्धों के लिए दो बार महावीर चक्र मिला था। उन्होंने ने ही ऑपरेशन ब्लू स्टार की योजना बनाई थी। बाद में उन्हें खालिस्तानी आतंकवादियों से मौत की कई धमकियां मिलीं। 31 अक्टूबर, 1984 को खालिस्तानी चरमपंथियों से जुड़े प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के दो अंगरक्षकों ने उनकी गोली माकर हत्या कर दी। इस घटना के करीब दो साल बाद 31 जनवरी, 1986 को वैद्य सेना से सेवानिवृत्त हो गए और अपनी पत्नी भानुमती के साथ पुणे में बस गए।
10 अगस्त 1986 की सुबह, वैद्य और उनकी पत्नी एक पुलिस गार्ड रामचन्द्र क्षीरसागर के साथ अपनी कार में खरीदारी करने गए। वैद्य कार चला रहे थे जबकि रिवॉल्वर से लैस क्षीरसागर पीछे बैठे थे। लगभग 11.30 बजे, जब वे लौट रहे थे, वैद्य ने गाड़ी धीमी की और राजेंद्र सिंहजी रोड पर टी-जंक्शन पर मुड़े, तभी मोटरसाइकिल सवार दो लोग रुके। कुछ सेकंड बाद, पीछे बैठे व्यक्ति ने पिस्तौल से वैद्य पर गोली चला दी।
वैद्य को गोली लगी, हमले में उनकी पत्नी भी घायल हो गईं और कार एक साइकिल से टकराने के कारण पलट गई। हमलावरों के भाग जाने के बाद क्षीरसागर ने पुलिस को बुलाया। वैद्य और उनकी पत्नी को कमांड अस्पताल ले जाया गया, जहां पूर्व सेना अध्यक्ष को मृत घोषित कर दिया गया। सभी को यह पहले से पता था कि जनरल वैद्य को जान का खतरा है। बावजूद उनके पास सिर्फ एक सशस्त्र सुरक्षाकर्मी था।
गिरफ्तारी, मुकदमा और सजा
पुणे की सड़क दुर्घटना में सुक्खा और निर्मल के पकड़े जाने के बाद, केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) के वो शीर्ष जांचकर्ता पुणे पहुंचे, जो वैद्य की हत्या के मामले की जांच कर रहे थे। इस बीच पुलिस ने मोटरसाइकिल जब्त कर ली थी, जिसके बारे में संदेह है कि यह वही वाहन है जिसका इस्तेमाल वैद्य की हत्या में किया गया था। इसके अलावा सुक्खा और निर्मल से एक रिवॉल्वर, पिस्तौल और कारतूस बरामद किए गए थे।
बाद में, जांचकर्ताओं ने अदालत को बताया कि सुक्खा ने ही पीछे की सीट से वैद्य पर गोली चलाई थी, जबकि जिंदा मोटरसाइकिल चला रहा था। पुलिस के अनुसार आरोपी आतंकी संगठन खालिस्तान कमांडो फोर्स (केसीएफ) के सदस्य थे, जो ऑपरेशन ब्लू स्टार का बदला लेना चाहते थे क्योंकि उसमें उनके नेता जरनैल सिंह भिंडरावाले की मौत हो गई थी।
पुलिस जांच में यह भी पता चला कि हत्या से कुछ महीने पहले आतंकवादियों ने पुणे के सालुंके विहार में एक अपार्टमेंट किराए पर लिया था और वैद्य की गतिविधियों और सुरक्षा पर कड़ी नजर रखी थी।
अगस्त 1987 में सीबीआई ने जिंदा, सुक्खा और निर्मल पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और आतंकवादी और टाडा अधिनियम की धाराओं के तहत आरोप पत्र दायर किया। कोर्ट में जिंदा और निर्मल का पक्ष रखने वाले वरिष्ठ वकील हर्षद निंबालकर बताते हैं, “मुकदमा पुणे में न्यायाधीश वीएन रुइकर की टाडा अदालत के समक्ष चलाया गया था। जिंदा, सुक्खा, निर्मल, अवतार सिंह रंधावा, यदविंदर सिंह (गिरफ्तार), और कुछ अन्य (वांटेड) को आरोपी के रूप में नामित किया गया था।”
निंबालकर आगे बताते हैं, “रंधावा और यदविंदर सिंह को बरी कर दिया गया क्योंकि उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला। अन्य तीन पर आरोपपत्र दायर किया गया। सीआरपीसी की धारा 313 के तहत दर्ज जिंदा और सुक्खा के बयानों को उनका कबूलनामा माना गया। कुल 169 गवाहों से पूछताछ की गई। और अक्टूबर 1989 में टाडा अदालत ने जिंदा और सुक्खा को जनरल वैद्य की हत्या और उनकी पत्नी भानुमति की हत्या के प्रयास का दोषी ठहराया और उन्हें मौत की सजा दी। निर्मल को बरी कर दिया गया।”
वकील बताते हैं, “अगला कदम मौत की सजा की पुष्टि के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करना था, जबकि सीबीआई ने निर्मल को बरी करने को चुनौती दी। 15 जुलाई 1992 को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एएम अहमदी और के रामास्वामी की बेंच ने सजा बरकरार रखी।”
इस पूरे मामले में एक घटना जो अक्सर याद आती है वह है जनरल वैद्य द्वारा अपने कर्मचारियों को मौत की धमकियों के बारे में दी गई चेतावनी का जवाब देना। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने जवाब दिया था: “दो युद्ध देखने के बाद, मैं खतरे से भाग नहीं सकता। अगर गोली मुझे लगनी तय है तो उस पर मेरा नाम लिखा होगा।”