लद्दाख की सुदूर गलवान घाटी में हुए संघर्ष को दो साल बीत चुके हैं। संघर्ष के दौरान 20 भारतीय सैनिकों की जान गयी थी। गलवान संघर्ष ने भारत-चीन संबंधों को दशकों के सबसे निचले स्तर पर गिरा दिया था। दोनों पक्ष कई मायनों में संबंधों को सामान्य करने की कोशिश कर रहे हैं। भारतीय पक्ष “लाल आंख” वाली बयानबाजियों को किनारे रख व्यावहारिकता का प्रदर्शन कर रहा है।

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अब कैसा है भारत-चीन संबंध?

भले ही भारत लद्दाख के LAC (वास्तविक नियंत्रण रेखा) वाले कुछ हिस्सों को खाली कराने या यथास्थिति को वापस सुनिश्चित करने में सफल नहीं हुआ है (जैसी स्थिति अप्रैल 2020 में थी) लेकिन दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार बढ़ा है और फिलहाल अपने उच्चतम स्तर पर है जैसा कि पहली तिमाही के आंकड़ें बताते हैं। साल 2021 में चीन के साथ भारत का व्यापार 125 बिलियन डॉलर का था, जो उसके पिछले वर्ष (2020) की तुलना में अधिक है। महामारी के पहले और लद्दाख गतिरोध के पहले भी दोनों देश के बीच इतना व्यापार नहीं हुआ था।

चीन से आयात 97.5 अरब डॉलर तक पहुंच गया, जबकि निर्यात पहली बार 20 अरब डॉलर को पार कर गया। दिलचस्प ये है कि भारत-चीन के बीच रिकॉर्ड व्यापार का ये सिलसिला भारत द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था में चीनी भागीदारी पर प्रतिबंध लगाने और भारत में लोकप्रिय कई चाइनीज ऐप्स पर प्रतिबंध लगाने के बाद भी हो रहा है। टेक-एंटरटेनमेंट की दिग्गज चाइनीज कंपनी Tencent ने हाल ही में फ्लिपकार्ट में हिस्सेदारी खरीदी है, जबकि इससे जुड़े कई ऐप जैसे टिक-टॉक भारत में प्रतिबंधित हैं।

दूसरी तरफ राजनीतिक संपर्क पूरी का पूरी तरफ से शुरू होना बाकी है, कुछ महत्वपूर्ण बातचीत हुई है। चीनी विदेश मंत्री वांग यी मार्च में दिल्ली आए थे। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने बहुपक्षीय शंघाई सहयोग संगठन की बैठकों में भाग लिया। बुधवार को चीनी समकक्ष यांग जेइची द्वारा आयोजित ब्रिक्स सुरक्षा अधिकारियों की बैठक में डोभाल शामिल हुए। अगले सप्ताह चीन की ओर से आयोजित होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्चुअली शामिल हो सकते हैं।

सैन्य गतिरोध

संसद में पीएम के इस दावे के बावजूद कि भारतीय क्षेत्र में कोई घुसपैठ नहीं हुई है, भारत और चीनी के वरिष्ठ सैन्य कमांडरों के बीच पूर्वी लद्दाख में गतिरोध के समाधान के लिए 15 दौर की वार्ता हो चुकी है। ये वार्ता प्रधानमंत्री के दावे से अलग संकेत देती है। बातचीत के कारण दोनों पक्षों ने गलवान, पैंगोंग झील और गोगरा/पैट्रोलिंग पॉइंट 17A से सैनिकों को वापस लिया है। हालांकि इन क्षेत्रों में अभी तक पहले जैसी स्थिति नहीं हुई है। तीन अन्य क्षेत्र हैं – देपसांग मैदान, हॉट स्प्रिंग्स और डेमचॉक – जहां चीनी सैनिक भारतीय सैनिकों को उन क्षेत्रों में प्रवेश करने से रोकते हैं जहां वे पहले गश्त कर रहे थे।

विदेश मंत्रालय का कहना है, दोनों पक्षों ने पश्चिमी क्षेत्र में एलएसी की स्थिति पर समीक्षा की है। जल्द से जल्द वरिष्ठ सैन्य कमांडरों के 16वें दौर की वार्ता हो सकती है। सैनिकों की वापसी या उन्हें कम करने जैसे मामलों को आंशिक रूप से डी-एस्केलेशन का प्रस्ताव माना जाता है। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ है। चीन एलएसी के किनारे सैन्य बुनियादी ढांचों का निर्माण तेजी से कर रहा है। प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी सेना के कमांडिंग जनरल जनरल चार्ल्स ए फ्लिन ने हाल ही में दिल्ली की यात्रा के दौरान कहा कि यह बिल्ड-अप खतरनाक है। चीन की ओर से कराया जा रहा निर्माण और अन्य गतिविधियां आंखें खोलने वाली हैं।

चीन एलएसी के विभिन्न हिस्सों में सड़कों, रिहायशी इलाकों और पूरे गांवों का निर्माण कर रहा है। लद्दाख में चीन द्वारा किए जा रहे निर्माण में 11 मीटर चौड़ा एक पुल भी शामिल है जो खुर्नक किले में पैंगोंग झील के सबसे संकरे हिस्से में फैला है। ये एलएसी पर चाइना के साइड पड़ता है लेकिन भारत इसपर दावा करता रहा है। ब्रिगेडियर राहुल भोंसले (सेवानिवृत्त) ने अपने पोर्टल Security Risks Asia पर लिखा है, यह पुल चाइना को रुडोग बेस से आगे के क्षेत्रों में सैनिकों की त्वरित तैनाती में सुविधा प्रदान करेगा। हालांकि भारत भी अपनी तरफ सड़क का निर्माण कर रहा है।

क्या हुआ था गलवान में?

चाइनीज पीपल लिबरेशन आर्मी ने एलएसी पर भारत की तरफ टेंट और निगरानी के लिए एक पोस्ट बनाया था। जून की शुरुआत में गलवान सेक्टर से अपने-अपने सैनिक पीछे हटाने को लेकर सहमती बनी थी। लेकिन चीनी सैनिकों की निरंतर उपस्थिति पर असहमति के कारण 15 जून की रात 1975 के बाद का सबसे खूनी संघर्ष हुआ। उस वक्त की रिपोर्ट के मुताबिक, 16 बिहार के कमांडर कर्नल सुरेश बाबू ने गलवान में तैनात चीनी सैनिकों को जाने के लिए कहा। चीनी सैनिकों ने उनके साथ धक्का-मुक्की की। इसके बाद पांच घंटे तक दोनों तरफ के 600 सैनिकों के भयंकर टकराव हुआ। धक्का लगने से कर्नल सुरेश बाबू बर्फ जीतनी ठंडी नदी में गिर गए। उनकी मौत हो गई। चीनी सैनिकों के पास कील लगे डंडे थे। भारतीय सैनिकों के पास फाइबर ग्लास के डंडे थे। दोनों तरफ से पत्थरबाजी भी हुई। कई भारतीय सैनिकों की नदी में गिरने या उसमें धकेले जाने से मौत हो गई।

दो मेजर, दो कैप्टन और छह जवानों सहित दस भारतीय सैनिकों को चीनियों ने तीन दिनों तक हिरासत में रखा। कई दौर की बातचीत के बाद ये सैनिक वापस आ सके। कई अपुष्ट रिपोर्ट्स के अनुसार, गलवान संघर्ष में भारतीय सैनिकों से ज्यादा चीनी सैनिकों की जान गई। लेकिन पीएलए ने अब तक सिर्फ चार सैनिकों की मौत को ही स्वीकार किया है। इस साल फरवरी में एक ऑस्ट्रेलियाई वेबसाइट क्लैक्सन ने बताया है कि गलवान संघर्ष के दौरान कम से कम 38 पीएलए सैनिक नदी में डूब गए थे।

1975 के बाद गलवान संघर्ष पहली घटना थी जिसमें भारतीय सैनिक मारे गए। 1975 में अरुणाचल प्रदेश के तुलुंग ला में चीनियों ने घात लगाकर असल राइफल्स के चार सैनिकों को मार दिया था।