दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने एक गैर सरकारी संस्था (NGO) की तरफ से जारी मानहानि मामले पर सुनवाई करते हुए बीबीसी (BBC) को नोटिस जारी किया है। एनजीओ ने अपनी याचिका में आरोप लगाया है कि बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री की वजह से भारत, देश की न्यायपालिका और देश के प्रधानमंत्री की गरिमा पर चोट पहुंची। बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री ‘इंडिया द मोदी क्वेश्चन’ (India: the Modi Question) इसी साल जनवरी में रिलीज हुई थी।

किसने किया है मुकदमा?

गुजरात बेस्ड गैर सरकारी संस्था ‘जस्टिस ऑन ट्रायल’ ने बीबीसी से 10,000 करोड़ रुपये का हर्जाना मांगा है। संस्था ने अपनी याचिका में ‘इंडीजेंट पर्सन’ (निर्धन शख़्स) के तौर पर वाद दाखिल करने की अनुमति मांगी है। ‘जस्टिस ऑन ट्रायल’ सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट के अंतर्गत रजिस्टर्ड संस्था है। यह बॉम्बे पब्लिक ट्रस्ट्स एक्ट, 1950 के तहत भी रजिस्टर है। संस्था ने अपनी याचिका में कोड ऑफ सिविल प्रोसीजर (CPC) के ऑर्डर नंबर 33 का हवाला देते हुए ‘इंडीजेंट पर्सन’ के तौर पर वाद दायर करने की अनुमति मांगी है।

कौन होता है ‘इंडीजेंट पर्सन’?

ब्लैक लॉ डिक्शनरी के मुताबिक ‘इंडीजेंट पर्सन’, ऐसा व्यक्ति होता है जो जरूरतमंद या गरीब है, जीवन-यापन के लिए कोई संसाधन नहीं है और उसकी देखभाल के लिए भी कोई नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट आदर्श तिवारी Jansatta.com से कहते हैं कि ‘इंडीजेंट पर्सन’ (Indigent Person) एक तरीके से गरीब की सबसे लोअर कैटेगरी होती है। ‘इंडीजेंट पर्सन’ अथवा निर्धन शख़्स वो होता है जिसके पास केस फाइल करने अथवा जीवन-यापन के लिए कोई संसाधन नहीं है।

एडवोकेट आदर्श कहते हैं कि जिला न्यायालय से लेकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में लीगल ऐड सर्विसेज हैं, जहां लोअर व मिडिल इन्कम ग्रुप के लिए सर्विसेज उपलब्ध हैं। इन लोगों को कोर्ट फीस देनी होती है। लेकिन इंडीजेंट पर्सन को कोर्ट फीस भी नहीं देना होती। इस केस में जब आप याचिका दाखिला करते हैं, तभी इसका जिक्र करना होता है कि आप ‘इंडीजेंट पर्सन’ के तौर पर याचिका दाखिल कर रहे हैं।

क्या कहते हैं नियम?

सिविल प्रोसीजर कोड 1908 के ऑर्डर नंबर 33 में ‘इंडीजेंट पर्सन’ के रूप में याचिका दायर करने का जिक्र है। इसके रूल नंबर 1 में कहा गया है कि इंडीजेंट पर्सन ऐसा व्यक्ति है जिसके पास फीस भुगतान के लिए कोई जरिया नहीं है। ऐसा व्यक्ति मुकदमा दायर करने की अनुमति के साथ एक आवेदन भरता है। जांच के बाद रूल नंबर 5 के अनुसार ऐसा आवेदन स्वीकार किया जाता है। जबकि रूल नंबर 18 के तहत राज्य सरकार, निर्धन व्यक्ति को निशुल्क कानूनी सेवा प्रदान कर सकती है।

‘इंडीजेंट पर्सन’ के तौर पर अनुमति नहीं मिली तो?

ऑर्डर नंबर 33 के रूल नंबर 5 में ऐसे ग्राउंड दिए गए हैं, जिसके आधार पर ‘इंडीजेंट पर्सन’ के तौर पर दायर मुकदमा खारिज किया जा सकता है। जैसे-

  • ऑर्डर नंबर 33 के रूल नंबर दो और तीन के फॉर्मेट के अनुसार वाद दाखिल नहीं किया है।
  • याचिकाकर्ता वास्तव में इंडीजेंट पर्सन नहीं है।
  • याचिका का कोई ठोस आधार नहीं है।
  • याचिका दायर करने से 2 महीने पहले धोखाधड़ी से किसी प्रॉपर्टी का निपटान किया है
  • याचिकाकर्ता ने किसी अन्य के साथ मुकदमा के लिए पैसा लिया या कोई आर्थिक समझौता किया है

कौन उठाता है मुकदमे का खर्च?

रूल नंबर 10 में कहा गया है कि यदि याचिकाकर्ता की अर्जी ‘इंडीजेंट पर्सन’ के तौर पर स्वीकार कर ली जाती है तो राज्य सरकार को कोर्ट फीस का भुगतान करना होता है। इसी तरह रूल नंबर 11 में कहा गया है कि यदि याचिकाकर्ता को इंडीजेंट पर्सन के तौर पर अनुमति नहीं मिलती है या अनुमति विथड्रॉ कर ली जाती है तो उसे खुद कोर्ट फीस भरनी होगी।