सुप्रीम कोर्ट ने 21 अप्रैल को आदेश का पालन न करने पर उत्तर प्रदेश सरकार पर कड़ी नाराजगी जाहिर की। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने यहां तक कह दिया कि अब पानी सिर से ऊपर जा चुका है। हमें डीजीपी को तलब करने पर मजबूर ना करें। दरअसल, उच्चतम न्यायालय ने सितंबर 2022 में अपने एक आदेश में उत्तर प्रदेश सरकार को कहा था कि अर्हता पूरी करने वाले कैदियों को समय पूर्व रिहाई का लाभ दिया जाए।
शुक्रवार (21 अप्रैल को) चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) और जस्टिस पीएस नरसिंम्हा की बेंच उत्तर प्रदेश की जेल में बंद 3 कैदियों की अवमानना याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इन कैदियों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए समय पूर्व रिहा करने की मांग की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इनमें से कुछ कैदी 20-22 साल से जेल में बंद हैं और अब अवमानना का मामला दाखिल कर रहे हैं। उन्हें (राज्य सरकार) को हमारा आदेश मानना होगा। अगर अगली बार इस तरह का कोई मामला हमारे सामने आया तो हम राज्य के डीजीपी को समन करेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने तल्खी दिखाते हुए कहा कि हमने खुद कहा है कि व्यक्तिगत पेशी से छूट है, लेकिन यही चलता रहा तो अगली बार हम व्यक्तिगत तौर पर कोर्ट में बुलाएंगे। हम नहीं चाहते कि अधिकारियों को कोर्ट में आना पड़े, क्योंकि उनके पास सरकार और जनहित के तमाम महत्वपूर्ण काम होते हैं, लेकिन यही रवैया रहा तो उन्हें समन करना होगा।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने जाहिर की तल्खी
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने उत्तर प्रदेश की एडिशनल एडवोकेट जनरल गरिमा प्रसाद को अवमानना कार्यवाही की कॉपी सौंपने को कहा और टिप्पणी की कि हर बार जब मैं इस तरह के मामले को देखता हूं, तो सोचता हूं कि डीजीपी को कोर्ट में समन करूंगा।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने यूपी के 2 आईएएस अफसरों को इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के बाद हिरासत में लिए जाने के मामले का जिक्र करते हुए कहा कि, ‘एक तरफ तो हम इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिकारियों के समन करने वाले आदेश पर स्टे लगा रहे हैं, दूसरी तरफ ऐसी चीजें हैं। हम भी इस तरह की चीजें नहीं करना चाहते हैं’।
AAG से बोले- डीजीपी को हमारी नाराजगी के बारे में बता दें
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने उत्तर प्रदेश की एडिशनल एडवोकेट जनरल को यहां तक कहा कि डीजीपी से हमारी तल्खी के बारे में बता दीजिए। अगर सब कुछ ठीक नहीं किया तो हम उन्हें समन करेंगे। उनसे बात करिए और बताइए…। अन्यथा भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली बेंच के लिए डीजीपी को तलब करना कोई छोटा मामला नहीं है।
सितंबर में कोर्ट ने क्या कहा था?
इससे पहले सितंबर 2022 में समय पूर्व रिहाई से जुड़ी याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यदि कोई बंदी समय पूर्व रिहाई की एलिजबिलिटी पूरी करता है तो बिना एप्लीकेशन की भी उसकी रिहाई पर विचार किया जाए। साथ ही जिन कैदियों के आवेदन मिले हैं, उन पर तेजी से काम किया जाए। कोर्ट ने DLSA (District Level Services Authority ) को निर्देश दिया था कि जेल अथॉरिटीज़ के साथ मिलकर सभी एलिजिबल प्रिजनर के लिये एक स्टेटस रिपोर्ट तैयार करें।
बाद में इस साल की शुरुआत में भी सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के डीजी (जेल) को आदेश दिया था कि वह एफिडेविट फाइल कर बताएं कि कोर्ट के 2022 के आदेश के अनुपालन में क्या कदम उठाए गए।
क्या है मानवाधिकार आयोग की गाइडलाइन?
आजीवन कारावास की सजा काट रहे कैदियों की समय पूर्व रिहाई को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) भी समय-समय पर गाइडलाइन जारी करता रहा है और इन गाइडलाइंस में संशोधन भी करता रहा है। NHRC की गाइडलाइन मुताबिक ऐसे महिला या पुरुष कैदी, जो आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं और सीआरपीसी के सेक्शन 433A के दायरे में आते हैं वह 14 साल के कारावास के बाद प्रीमेच्योर रिलीज के लिए एलिजिबल होंगे।

हालांकि एनएचआरसी ने अपनी गाइडलाइन में साफ कहा है कि इसका मतलब यह नहीं है कि 14 साल की रिहाई के तुरंत बाद ऐसे कैदी रिहाई के योग्य हो जाएंगे, बल्कि इसका निर्णय सेंटेंस रिव्यू बोर्ड करेगा, जिसमें कई पहलू और फैक्टर्स ध्यान में रखनें होंगे।
समय पूर्व रिहाई के लिए क्या फैक्टर्स हैं?
- 14 साल के कारावास के दौरान कैदी का व्यवहार कैसा रहा है
- क्या उसके अंदर से आपराधिक प्रवृत्ति खत्म हो गई है
- क्या संबंधित कैदी समाज में सामान्य मानवी की तरह दोबारा रहने योग्य है और इससे समाज को कोई खतरा नहीं है
- कैदी की सामाजिक और आर्थिक स्थिति कैसी है
उत्तर प्रदेश में क्या नियम हैं?
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट आदर्श कुमार तिवारी jansatta.com से बताते हैं कि जेल (Prision) एक स्टेट सब्जेक्ट है, इसलिए प्रीमेच्योर रिलीज के मसले पर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नियम हैं। इस पर कोई यूनिफॉर्मिटी नहीं है। हां, मानवाधिकार आयोग जरूर कहता रहा है कि एक समान नियम होने चाहिए।
एडवोकेट आदर्श कहते हैं कि समय पूर्व रिहाई अथवा प्रीमेच्योर रिलीज के मसले पर उत्तर प्रदेश सरकार ने जनवरी 2018 में Standing Policy regarding premature release of prisoners sentenced to life imprisonment जारी किया था। पिछले साल 27 मई को इसमें संशोधन किए गए। संशोधन में 60 साल की उम्र वाली क्राइटेरिया को हटा दिया गया है। अर्थात कोई कैदी, जो उम्र कैद की सजा काट रहा है तो 60 साल से पहले भी रिमिशन (remission) अथवा छूट दी जा सकती है, यदि वह पॉलिसी के तहत आता है तो।
पॉलिसी में क़ैदियों की अलग-अलग कैटेगरी बनाई गई है। बहुत सारे क़ैदी जो प्रोहिबिटेड कैटेगरी में आते है, उनको रिलीज़ करने का समय 25 से 30 साल रखा गया है। जो प्रोहिबिटेड कैटेगरी में नहीं आते, उनके लिए यह समय 16-20 साल है।