Gandhi Jayanti: 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी का जन्मदिन होता है और पूरे देश में इस दिन को गांधी जयंती के रूप में मनाया जाता है। गांधी जी को प्यार से लोग ‘बापू’ कहकर भी बुलाते थे। वह एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे, जिनके जीवन पर कई किताबें लिखी गई है। सिर्फ इतना ही नहीं, फिल्मी पर्दे पर भी उनकी लाइफ की कई झलकियां लोगों को देखने को मिलती रही हैं। साल 2006 में एक फिल्म आई थी, जिसमें ‘गांधीगिरी’ को लेकर दिखाया गया।
इस फिल्म ने लोगों के जीवन पर काफी असर डाला था। अभी तक तो आप समझ ही गए होंगे कि हम संजय दत्त और अरशद वारसी की फिल्म ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ की बात कर रहे हैं। राजकुमार हिरानी के निर्देशन में बनी इस फिल्म ने लोगों को गांधी जी की फिलॉसफी याद दिला दी थी।
क्या थी फिल्म की कहानी
लगे रहो मुन्ना भाई साल 2003 में आई फिल्म ‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’ का दूसरा पार्ट था। पहले पार्ट के हिट होने के तीन साल बाद मेकर्स इसका दूसरा पार्ट लेकर आए। फिल्म में देखने को मिला कि मुन्नाभाई यानी संजय दत्त और सर्किट यानी अरशद वारसी, बिल्डर लकी सिंह (बोमन ईरानी) के लिए काम करते हैं। वहीं, मुन्नाभाई को एक रेडियो जॉकी जाह्नवी (विद्या बालन) की आवाज से बहुत प्यार होता है।
फिर जाह्नवी अपने रेडियो स्टेशन में गांधी जयंती यानी 2 अक्टूबर के खास मौके पर एक कंपटीशन रखती है, जिसमें आने वाले शख्स को बापू से जुड़ी चीजें पूछी जाती है। साथ ही विनर को जाह्नवी से भी मिलने का मौका मिलेगा। वहीं, मुन्ना भाई कैसे भी करके यह कंपटीशन जीत जाता है और आरजे को इम्प्रेस करने के लिए खुद को प्रोफेसर बताता है। फिर मुन्ना भाई की लाइफ में बापू की एंट्री होती है, जिसे सिर्फ मुन्ना भाई ही देख और सुन सकते हैं। इसके बाद ‘बापू’ मुन्ना भाई को हर बार अहिंसा के रास्ते पर चलाकर उसकी लाइफ बदल देते हैं।
लोगों पर पड़ा था काफी असर
उस समय यह फिल्म लोगों को काफी पसंद आई थी। यहां तक कि उस दौरान यह खबरें भी आई कि कई लोगों ने फिल्म देखने के बाद बापू की फिलॉसफी को अपनाया और मुश्किल से मुश्किल काम को अहिंसा के रास्ते पर चलकर लोगों ने पूरा किया। वहीं, लोगों को फूल देकर सद्भावना बिखेरने वाला प्रयोग हर गली-मोहल्ले में करते हुए भी देखा गया।
संयुक्त राष्ट्र में प्रदर्शित होने वाली पहली हिंदी फिल्म
बता दें कि इस मूवी को चार नेशनल अवॉर्ड से नवाजा गया था और यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बेहद सफल भी हुई थी। यह मूवी संयुक्त राष्ट्र में प्रदर्शित होने वाली पहली हिंदी फिल्म भी थी।