आरती सक्सेना
हर कोई जावेद अली का गाया ‘तेरी झलक अशरफी श्रीवल्ली नैना मदक बरफी…’ गुनगुना रहा है। एक पैर को लगभग खींचने-सरकाने के दौरान पैर से हवाई चप्पल निकलना… उसे फिर से पैरों में फंसाना… बेतरतीब ढंग से बढ़ी दाढ़ी के नीचे गला चाक करने वाले अंदाज में हाथ घुमाना…पुष्पा’ के इस गाने को सोशल मीडिया ने हाथों हाथ लिया। श्रीवल्ली के मूल तेलुगु गायक सिड श्रीराम कहीं पीछे रह गए और हिंदी ‘श्रीवल्ली…’ ट्रेंड होने लगा, उस पर रील बनने लगीं। ‘मैं झुकेगा नहीं साला…’ संवाद पर मीम बन रहे हैं। बालीवुड हैरानी से ‘पुुष्पा’ की सफलता देख रहा है। ‘पुष्पा’ के पीछे उसे कई और दक्षिण भारतीय सितारे नजर आ रहे हैं, जिनकी फिल्में रिलीज के लिए तैयार हैं।
हिंदी डब ‘पुष्पा’ सौ करोड़ के क्लब में शामिल हो गई है और यह ऐसी स्थिति में हो रहा है, जब भारतीय सिनेमा की फ्लैगशिप इंडस्ट्री ‘बालीवुड’ लगभग ठप पड़ी है। आदित्य चोपड़ा, करण जौहर, टी सीरीज, साजिद नाडियाडवाला जैसे स्थापित निर्माता अपनी तैयार पड़ी फिल्मों को सिनेमाघरों में रिलीज करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं।
एक महीने से कोई नई हिंदी फिल्म रिलीज नहीं हुई है। शूटिंग की गतिविधियां भी शिथिल हैं। ऐसे दौर में आधुनिक तकनीक, तेवर और तरीके से देश की प्रादेशिक फिल्में देश-दुनिया में दस्तक देती नजर आ रही हैं। ‘पुष्पा’ प्रादेशिक सिनेमा का वह तूफान है, जो पांच भाषाओं में रिलीज 2000 करोड़ का कारोबार करने वाली ‘बाहुबली’ खड़ा नहीं कर पाई थी क्योंकि उसे संगीत का साथ नहीं मिला था। उसके गाने लोगों की जुबान पर नहीं चढ़े थे। ‘पुष्पा’ ने यह कमी दूर कर क्षेत्रीय सिनेमा की जो हुंकार भरी है उससे बालीवुड की नींद टूट जानी चाहिए, जो बरसों से सितारों के चेहरे और रीमेक फिल्मों के दम पर चलाया जा रहा है और सालों से जिसके किले के दरवाजे सिर्फ अंदर से ही खोले जा रहे हैं।
सितारों का दबदबा
‘श्रीवल्ली…’ की चल रही हवा क्या उस बालीवुड के लिए चुनौती है जिसे नए खून की सख्त जरूरत है क्योंकि उसके प्रमुख स्टार पचास साल की उम्र पार कर कुछ खास किस्म की भूमिकाओं के लिए ही फिट रह गए हैं। बालीवुड स्टार सिस्टम पर चलता है। हिंदी सिनेमा में देव आनंद, दिलीप कुमार, राज कपूर की तिकड़ी आज शाहरुख, सलमान और आमिर खान में बदल गई। ये स्टार अपनी फिल्में खुद बना रहे हैं। अक्षय कुमार, अजय देवगन, ऋत्विक रोशन, अनिल कपूर, सनी देओल जैसे सभी प्रमुख अभिनेता खुद निर्माता हैं। तमिल, तेलुगू, मराठी, पंजाबी, ओड़िया, भोजपुरी जैसी भाषाओं के सिनेमा में प्रतिभाओं की कमी नहीं है मगर बालीवुड में उनके लिए सीमित मौके ही हैं।
प्रादेशिक प्रतिभाओं की उपेक्षा
‘पुष्पा’ जैसी स्थिति 1991 में मणि रत्नम की रोजा या उससे पहले 1981 में भी बनी थी, जब कमल हासन और रति अग्निहोत्री की ‘एक दूजे के लिए’ के ‘सोलह बरस की बाली उमर को सलाम, और ‘हम बने तुम बने इक दूजे के लिए…’ गाने देश भर में गूंज रहे थे। फिर कमल हासन को बालीवुड में कितना काम मिला?
मेश सिप्पी की ‘सागर’ छोड़ दें तो किसी बड़े और स्थापित निर्माता ने कमल हासन को काम नहीं दिया। ‘चाची 420’, ‘हे राम’, ‘अभय’, ‘मुंबई एक्सप्रेस’, ‘विश्वरूप’ जैसी हिंदी फिल्में खुद कमल को अपने लिए बनानी पड़ीं। 1985 में ‘देखा प्यार तुम्हारा’ में कमल हासन ने बालीवुड निर्माता के लिए काम किया था। तब से आज तक 37 सालों में किसी बालीवुड निर्माता ने कमल को काम नहीं दिया। बीते 22 सालों से बालीवुड के किसी निर्माता ने लोकप्रियता की चोटी पर पहुंचे को रजनीकांत साइन नहीं किया। उनकी पिछली फिल्म ‘बुलंदी’ 2000 में रिलीज हुई थी।
दक्षिण का बढ़ता दबदबा
दक्षिण के कई सितारों ने बालीवुड में अपनी जगह बनाने की कोशिश की मगर उन्हें सफलता नहीं मिली। ‘रोजा’ और ‘बाम्बे’ से हिट हुए अरविंद स्वामी की तरह चिरंजीवी, मम्मूटी, नागार्जुन, माधवन, सिद्धार्थ लोकप्रियता के बावजूद हाशिए पर चले गए। आज प्रभास और अलु अर्जुन हिट हैं। अलु की लोकप्रियता शाहरुख, आमिर सलमान से कम नहीं है। ‘श्रीवल्ली’ के शंखनाद ने बालीवुड की नींद उड़ा दी है। आने वाले दिनों में जूनियर एनटीआर, रामचरन, विजय सेतुपति, विजय देवरकोंडा, कार्ति जैसे दक्षिण भारतीय सितारे हिंदी फिल्मों के जरिए अखिल भारतीय स्तर पर लोकप्रिय होने की तैयारी में हैं।
