लोकसभा चुनाव में उम्मीदवारों के नामों की घोषणा के बीच राजनीतिक माहौल जम चुका है। देश के कई हिस्से, कई सीटें ऐसी हैं जिनका लंबा राजनीतिक इतिहास रहा है। ऐसी ही एक सीट उत्तर प्रदेश की मेरठ लोकसभा है। वजह है इस सीट से पहले सांसद चुनकर आए जनरल शाहनवाज खान का होना। वह हिन्दू-मुस्लिम एकता की एक मिसाल थे।
जब पहला चुनाव लड़ा तो फिर लगातार चार बार तक कोई हरा नहीं सका। 1952 से 1971 तक वह लगातार चार बार मेरठ के सांसद रहे। खास बाद यह थी कि उनकी पैदाइश 1914 में रावलपिंडी में हुई। रावलपिंडी फिलहाल पाकिस्तान में है।
‘सब भूल गए’
अमर उजाला की एक खबर के मुताबिक जनरल शाहनवाज़ खान का परिवार कहता है कि जिन गलियों में कभी उनका नाम गूंजा करता था। आज वहां कोई उन्हें जानता तक नहीं है। उनका परिवार बताता है कि सरकार से कई बार उनके स्मारक बनाने की अपील की गई है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। उनके परिवार ने खुद एक मेमोरियल का गठन किया है।
कैसा रहा उनके राजनीतिक सफर?
जनरल शाहनवाज़ ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारतीय राष्ट्रीय सेना (आईएनए) में एक अधिकारी के तौर पर काम किया था। वह सुभाष चंद्र बोस के भाषणों से गहराई से प्रभावित थे। युद्ध के बाद, उन पर मुकदमा चलाया गया, राजद्रोह का दोषी ठहराया गया और ब्रिटिश भारतीय सेना द्वारा किए गए सार्वजनिक कोर्ट-मार्शल में मौत की सजा सुनाई गई। वह 1951, 1957, 1962 और 1971 में मेरठ निर्वाचन क्षेत्र से चार बार लोकसभा के लिए चुने गए। वह 1967 और 1977 में मेरठ से लोकसभा चुनाव हार गए थे।
ऐसा कहा जाता है कि वह बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख खान के पिता मीर ताज मोहम्मद खान के चचेरे भाई थे, हालांकि शाहरुख खान के मुताबिक उनके दादा, मीर जान मुहम्मद खान, अफगानिस्तान के एक पश्तून (पठान) थे।