पिछले हफ्ते सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने एक कार्यक्रम में कहा था कि जो लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी को हराना चाहते हैं, उन्हें बड़ा दिल दिखाना चाहिए और यूपी में सपा को सपोर्ट करना चाहिए। उनके इस बयान के बाद से यह कयास लगाए जा रहे हैं कि सपा लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस से गठबंधन करने के लिए तैयार है अगर सीट शेयरिंग उसके हिसाब से हो।
इससे कुछ हफ्ते पहले सपा प्रमुख ने कहा था कि वो कांग्रेस से गठबंधन के इच्छुक नहीं हैं। सपा ने अमेठी में अपनी पार्टी का प्रत्याशी उतारने के लिए तैयारियां भी शुरू कर दीं। सपा कांग्रेस का गढ़ है, जहां से पिछले तीन चुनावों में राहुल गांधी ने अपनी किस्मत आजमाई है। यहां सपा आमतौर पर अपना प्रत्याशी नहीं उतारती है। 2019 में बावजूद इसके राहुल गांधी चुनाव हार गए थे।
सूत्रों की मानें तो सपा पर कांग्रेस से गठबंधन के लिए RLD की तरफ से प्रेशर डाला जा रहा है। RLD की मानना है कि यूपी में एंटी बीजेपी फ्रंट बिना कांग्रेस के सफल नहीं हो सकता है।
रालोद के यूपी के अध्यश्र रामाशीष राय ने कहा कि 2024 लोकसभा चुनाव से पहले यूपी के मुसलमान कांग्रेस की तरफ देख रहे हैं। इसलिए कांग्रेस को यूपी में विपक्ष के फ्रंट में शामिल होने चाहिए। पश्चिमी यूपी में बीजेपी के खिलाफ मुसलमानों, जाटों और गुर्जर साथ आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि पश्चिमी यूपी की 22 लोकसभा सीटों पर मुस्लिमों की संख्या 38 से 51 फीसदी है जबकि जाट 6 से 12 फीसदी हैं और अब बदले हुए माहौल में कांग्रेस विपक्षी गठबंधन की मदद कर सकती है।
पश्चिमी यूपी में चंद्र शेखर आजाद की पार्टी- आजाद समाज पार्टी दलितों और मुस्लिमों के बीच काम कर रही है। हालांकि सपा के एक नेता ने बताया कि कांग्रेस को यह विश्वास है कि अगर विपक्षी गठबंधन सत्ता में आता है तो उसके सबसे अलग-अलग राज्यों में सबसे ज्यादा सांसद होंगे और इसलिए प्रधानमंत्री भी कांग्रेस से होंगे। इसीलिए कांग्रेस सपा के साथ यूपी में सीट शेयरिंग को लेकर किसी भी तरह का समझौता करने को राजी नहीं है। यहां 2017 विधानसभा चुनाव में दोनों का गठबंधन बुरी तरह नाकार दिया गया था। उन्होंने कहा कि कांग्रेस को याद रखना चाहिए कि यूपी में 2019 में उसे सिर्फ 1 सीट पर जीत मिली थी।
एक अन्य सपा नेता ने कहा कि हो सकता है अखिलेश यादव इस तरह की टिप्पणियों के जरिए सपा के पक्ष में एंटी बीजेपी वोटर्स को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हों। अगर अन्य दल यूपी में सपा के नेतृत्व में विपक्ष के गठबंधन में शामिल नहीं होते हैं तो अखिलेश यादव के पास यह संदेश देने का अवसर होगा कि केवल सपा ही भाजपा को हराना चाहती है।
यूपी में कांग्रेस के प्रवक्ता अशोक सिंह ने कहा कि सिर्फ यूपी के नतीजों के जरिए केंद्र में सरकार नहीं बनेगी। कांग्रेस केंद्र में बीजेपी को हराएगी और राहुल गांधी के नेतृत्व में अगली सरकार बनाएगी। कांग्रेस यूपी में हर सीट पर तैयारी कर रही है। अखिलेश यादव को यह तय करना है कि वो किस विचारधारा के साथ हैं। जो भी बीजेपी को हराना चाहता है उसे कांग्रेस का समर्थन करना चाहिए।
अखिलेश इस बात पर दे रहे जोर
अखिलेश यादव इस बात पर जोर दे रहे हैं कि विपक्षी पार्टियों को राज्य में बीजेपी के खिलाफ सबसे ताकतवर पार्टी का समर्थन करना चाहिए। सपा का मनना है कि पिछले विधानसभा परिणाम को देखते हुए यह माना जाना चाहिए कि यूपी में सपा बीजेपी का मुकाबला करने के लिए सबसे ताकतवर है।
RLD मानती है कि सपा के साथ उसका गठबंधन जारी रहेगा। रालोद के एक नेता ने कहा कि भविष्य के बारे में कुछ निश्चित नहीं है। हाल ही में हुए स्थानीय निकाय चुनाव में पश्चिमी यूपी की कई सीटों पर सपा और रालोद के प्रत्याशी एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे थे।
बीएसपी पहले ही यह स्पष्ट कर चुकी है कि वो 2024 के चुनाव में किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करेगी। मायावती ने साल 2019 में सपा और रालोद के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था लेकिन बावजूद इसके सपा-बसपा मिलकर 80 में से 15 सीटें ही जीत पाए थे और बीजेपी ने यूपी के साथ-साथ लगातार दूसरा लोकसभा चुनाव जीत लिया था।
मायावती लगातार सपा पर प्रहार कर रही हैं और मुस्लिम समुदाय से अपनी पार्टी का समर्थन करने की अपील कर रही हैं। हाल ही में जब अखिलेश यादव की तरफ से बीजेपी को हराने के लिए PDA की बात कही गई तो मायावती ने कहा कि सपा के PDA का मतलब परिवार, दल और गठबंधन है।
सपा के सीनियर नेता सुधीर पंवार ने कहा कि समाजवादी आइकन राममनोहर लोहिया “एक पार्टी के शासन या डबल इंजन की सरकार” के खिलाफ थे। उन्होंने कहा कि लोहिया ने अम्बेडकर को गठबंधन के लिए आमंत्रित किया लेकिन अम्बेडकर के आकस्मिक निधन की वजह से यह अमल में नहीं आ सका। उनके प्रयासों की वजह से 1967 के बाद विभिन्न राज्यों और केंद्र में गठबंधन सरकारें बनीं।
उन्होंने कहा कि साल 1993 में मुलायम सिंह यादव और कांशीराम ने गठबंधन कर बीजेपी को उस समय हराया जब वह पीक पर थी। साल 2017 से अखिलेश यादव कांग्रेस, बसपा और छोटे दलों से गठबंधन कर चुके हैं। 2017 में उन्होंने कांग्रेस को जरूरत से ज्यादा सीटें देकर उससे गठबंधन किया। उन्होंने 2019 में मायावती के साथ गठबंधन किया और उन्हें जीतने वाली ज्यादा सीटें दीं। जब मायावती ने अजीत सिंह के साथ गठबंधन करने के लिए मना कर दिया तो अखिलेश ने रालोद को अपने कोटे से सीटें दीं।
उन्होंने कहा कि सपा ने 2022 के विधानसभा चुनावों के लिए “सामाजिक न्याय के लिए लड़ने” के लिए छोटे दलों के साथ गठबंधन किया और रालोद प्रमुख जयंत चौधरी को राज्यसभा के लिए निर्वाचित होने में भी मदद की। अखिलेश ने हमेशा बड़े दिल के साथ गठबंधन किया है जिससे सपा के साथियों को ज्यादा फायदा हुआ है। उन्होंने कहा कि यह कांग्रेस पर निर्भर करेगा कि वह केंद्रीय स्तर पर भाजपा से लड़ना चाहेगी या राज्यों में अपने भविष्य की संभावनाओं के लिए क्षेत्रीय दलों से टकराएगी।