विनय ओसवाल
हाथरस सुरक्षित संसदीय क्षेत्र है जिसमें पांच विधानसभा क्षेत्र – हाथरस सु., सादाबाद , सिकंदराराऊ (जिला हाथरस में) और शेष दो इगलास और छर्रा अलीगढ़ जिले में हैं। 1997 में हाथरस के जिला बनने से पहले सादाबाद विधानसभा क्षेत्र मथुरा जिले में था। 2008 में निर्वाचन क्षेत्रों का नए सिरे से परिसीमन होने से पूर्व विधानसभा हाथरस सामान्य और सासनी सुरक्षित हुआ करती थी। 2008 के बाद सुरक्षित विधानसभा क्षेत्र सासनी के गांव अन्य पड़ोसी विधानसभा क्षेत्रों में शामिल कर दिए गए। इसके स्थान पर हाथरस को सुरक्षित क्षेत्र बना दिया गया। इस परिसीमन के बाद बहुत से प्रत्याशियों के लिए बदले हुए जातिगत आंकड़ों ने उनकी जीत-हार को संदिग्ध बना दिया।
बीजेपी के जिम्मेदार जिला पदाधिकारी, जो टिकटाथिर्यों के नामों को ऊपर भेजने लखनऊ, दिल्ली तक पैरोकारी करने आदि से जुड़े रहे हैं, के अनुसार हाथरस ऊपरवालों के लिए ‘सी’ कैटेगरी का जिला है। वजह, हाथरस जिले में पार्टी के उम्मीदवारों पर बगावती तेवर अपनाने या दोबार जीत दर्ज कराने में नाकाम रहने का इतिहास रहा है। सासनी से लगातार तीन बार विधायक रहे हरिशंकर माहौर ने 2002 और 2007 में टिकट न मिलने पर पार्टी के अधिकृत प्रत्याशियों का विरोध किया। राजनैतिक हलकों में ये चर्चा खास है कि इस बार पार्टी के पास उनसे बेहतर कोई और दूसरा चेहरा ही नहीं था। सो उनके गुनाहों माफ कर एक तरह से गुनाहों के लिए पुरस्कृत करते हुए उन्हें टिकट थमा दिया गया।
2002 और 2007 में सिकंदराराऊ से दो बार विधायक रहे यशपालसिंह चौहान सिर्फ आरएसएस के स्वयंसेवक ही नहीं रहे, पूरा जीवन अविवाहित रह के गुजारा है। बीजेपी में राजनाथ सिंह व अन्य बड़े नेताओं से निजी संबंधों के चलते इस बार उन्हें बीजेपी टिकट थमा सकती है। चौहान राजनाथ सिंह सरीखे नेताओं से संबंधों को निजी करार देते हैं, ‘जो भी मुलाकातें हुई हैं वे व्यक्तिगत ही रही हैं।’ इस बार वह 2012 की तरह सपा से ही मैदान में हैं।
सादाबाद में बीएसपी के रामवीर उपाध्याय के सामने बीजेपी की प्रीति चौधरी, आरएलडी के डॉ अनिल चौधरी और सपा के वर्तमान विधायक देवेंद्र अग्रवाल उर्फ लाला हैं। लाला और उपाध्याय के बीच जिले में वर्चस्व को लेकर एक लंबे अरसे से टकराव रहा है। अग्रवाल पेट्रोलियम पदार्थों के बड़े कारोबारी है। वे एक दूसरे पर बखत बखत पर कई आरोप मढ़ते रहे हैं।
सादाबाद से ही एक और जाट नेता प्रताप चौधरी कोल्ड और चिलर प्लांट आदि का कारोबार करते हैं। इस बार बीजेपी से टिकट के मजबूत दावेदार थे। परंतु बीजेपी से उन्हें टिकट न मिलने की घोषणा के साथ ही डॉ अनिल चौधरी ने तुरत फुरत उनसे संपर्क साध लिया और फिर दोनों ने खुशी-खुशी एक दूसरे से विदा ली।प्रीती चौधरी के बारे में कहा जाता है कि वे साफसुथरी छवि वाली, राजनैतिक छल फरेबों से दूर साधारण महिला हैं। पार्टी ने उन्हें टिकट देकर विश्वहिंदू परिषद में उनकी व उनके पिता की निष्ठापूर्ण सेवाओं का पुरस्कार दिया है। इस जाट बहुल क्षेत्र में उनके पक्षों में जाटों को लामबंद करने का काम किया जा रहा है। साफ-सुथरी छवि वाले आरएलडी के डॉ अनिल चौधरी भी पूर्व में विधायक रह चुके हैं। देखना दिलचस्प होगा कि प्रताप चौधरी क्या बीजेपी को धता बता डॉ अनिल चौधरी का साथ देंगे और उनका साथ देना डॉ अनिल के लिए कितना लाभदायक होगा।
तमाम विरोधों के बावजूद भाजपा सांसद दिवाकर सिकंदराराऊ से अपने चहेते वीरेंद्र सिंह राणा को टिकट दिलाने में कामयाब रहे। बताते हैं कि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मौर्य और दिवाकर सांसद होने के नाते एक दूसरे के घनिष्ट हैं। वीरेंद्र सिंह राणा को टिकट दिलाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। राणा के बारे में क्षेत्र में चर्चा है कि वे पड़ोसी राज्यों से तस्करी कर लाई जाने वाली विदेशी शराब के कारोबारियों को संरक्षण देते हैं। हालांकि वह इससे इनकार करते हैं। वह बताते हैं कि उनका अतीत छत्तीसगढ़ में शराब की फैक्ट्री में लगभग 20 वर्षों तक मामूली से कर्मचारी से अधिकारी के स्तर तक सेवा देने का रहा है। इस दौरान छत्तीसगढ़ में उन्होंने आरएसएस के वनवासी कल्याण जैसे अनुषांगिक संगठन में 20 वर्ष तक सक्रिय सेवाएं दी हैं। सिकंदराराऊ से बसपा के बनीसिंह बघेल के अलावा सपा के विद्रोही डॉ राकेश सिंह राणा भी चुनाव मैदान में हैं।
दो बार भाजपा से गद्दारी करने वाले हरीशंकर माहौर को टिकट दिए जाने से क्षेत्र के कार्यकर्ता घोर नाराज हैं। उनके विश्वसनीय साथी बताते हैं कि जमीन जायदाद की तिजारत के बलबूते पार्टी में भी छोटे बड़े नेताओं से माहौर के रिश्ते प्रगाढ़ हो गए। उनकी जीत को अप्रत्याशित ही माना जा रहा है। बसपा के ब्रजमोहन राही, माहौर को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार आरएलडी के चौधरी गेंदालाल (वर्तमान विधायक बसपा), सपा -कांग्रेस गठबंधन में कांग्रेस से राजेश राज जीवन तीसरे और चौथे स्थान की दौड़ में हैं। बहन मायावती ने उन्हें पार्टी से छ: साल के लिए निष्काषित कर दिया। बाद में चौधरी ने टिकट पाने की आशा में बीजेपी का दामन थामा परंतु टिकट न मिलने पर उसे धता बता अब आरएलडी से चुनाव मैदान में है।
जिले में बीजेपी का बेसिर पैर का टिकट वितरण विरोधी बसपा के लिए लाभकारी साबित हो सकता है। सिकंदराराऊ जिले की एक मात्र सीट है जहां सपा संघर्ष करती दिख रही है। इस संघर्ष में भी बसपा के बनी सिंह बघेल के बाजी मार ले जाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। लगता है सादाबाद से सपा के प्रत्याशी और वतर्मान विधायक देवेंद्र अग्रवाल उर्फ़ लाला को अपनी हार का एहसास हो गया है। उनके कट्टर समर्थक ही दबी जुबान में खर्च से हाथ पीछे खींचने की बातें करने लगे हैं। यहां एक रोचक तथ्य गौरतलब है और वह ये कि इस क्षेत्र का लगभग 60 फीसद मुसलमान बसपा को वोट करेगा। जबकि सपा संगठन की बागडोर चौधरी भाजुद्दीन के हाथों में है। क्षेत्र में जन चर्चाओं में यदि कुछ दम है तो चौधरी भाजुद्दीन की खिचड़ी भीतर ही भीतर रामबीर उपाध्याय के साथ पक रही है। हालांकि दोनों ऐसी किसी संभावना से इनकार करते हैं।
