जयप्रकाश भारती
समाजवादी पार्टी ने गाजीपुर सदर विधानसभा सीट पर साफ सुथरी छवि वाले वकील राजेश कुशवाहा को प्रत्याशी बनाकर उनके मुकाबले में खड़े प्रत्याशियों पर दबाव बना लिया है, जिसका फायदा चुनाव में मिल सकता है। गाजीपुर विधानसभा सीट पर कोई भी प्रत्याशी दो बार लगातार चुनाव नहीं जीत सका है। समाजवादी पार्टी के विजय मिश्रा पिछले चुनाव में इस सीट से जीते थे। वह पूरे समय सरकार में मंत्री भी रहे। इस बार पार्टी ने उनकी जगह राजेश कुशवाहा को मैदान में उतार दिया है। वह पार्टी के जिलाध्यक्ष भी हंै। उनका मुकाबला भारतीय जनता पार्टी की संगीता बलवंत और बहुजन समाज पार्टी के संतोष यादव से होना तय दिख रहा है। हालांकि यहा अंतिम चरण में 8 मार्च को वोट पड़ना है। इसलिए अभी बाद में ही चुनावी तस्वीर साफ होगी। गाजीपुर के बारे में भारतीय जनता पार्टी में यह बात चली आ रही है कि इस सीट पर पार्टी प्रत्याशी के जीतने पर प्रदेश में सरकार बनती है। इसलिए पार्टी वाले इस सीट के लिए सचेत रहते हैं। इस बार उन्होंने सपा प्रत्याशी की ही तरह पढ़ी लिखी अच्छे व्यवहार वाली कवि हृदय संगीता बलवंत को प्रत्याशी बनाया है। बसपा प्रत्याशी संतोष यादव एक साल से चुनाव प्रचार कर रहे है।
समाजवादी पार्टी ने सबसे पहले जिले की मुहम्मदाबाद सीट से राजेश कुशवाहा को प्रत्याशी बनाया था। जब बाहुबली मुख्तार अंसारी की पार्टी का समाजवादी पार्टी में विलय हुआ, तो उनका पत्ता साफ कर मुख्तार के भ्राता शिबगतुल्लाह अंसारी को प्रत्याशी बना दिया। पार्टी में घोर उतार-चढ़ाव के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने राजेश कुशवाहा को गाजीपुर सदर से प्रत्याशी बना कर मुहम्मदाबाद विधानसभा सीट कांग्रेस को समझौते में दे दी। हालांकि वहां मुख्य मुकाबला भाजपा से होगा।गाजीपुर में समाजवादी पार्टी के लिए समर्पित मतदाताओं की ही तरह ताकतवर मतदाता राजेश कुशवाहा के स्वजातीय है। उसी तरह बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती के समर्थक मतदाता पूरी एकजुटता के साथ जाकर मतदान करते हैं। जहां तक भाजपा का सवाल है उसके कोई समर्पित मतदाता नही हैं। गाजीपुर सदर सीट पर मुसलमान मतदाताओं की संख्या भी चुनाव परिणाम को प्रभावित करती आ रही है। इस समुदाय के मतदाता कभी इधर कभी उधर घड़ी की पेंडुलम की तरह डोलते रहे हैं। एक ओर उन्हें अखिलेश यादव तो दूसरी ओर उन्हें मुख्तार अंसारी का चेहरा दिख रहा है। इस समय अंसारी बंधू हाथी पर सवार हंै यानी बहुजन समाज पार्टी में हैं। इसलिए माना जा रहा हैं कि मुसलमान मतदान के पूर्व तय कर लेंगे कि उनका वोट सपा की ओर जाएगा या बसपा की ओर।
