सुनील मिश्र
2017 के विधानसभा चुनावों के प्रथम चरण के मतदान की तारीख के नजदीक आते-आते एटा और कासगंज जिले का सियासी तापमान बढ़ने लगा है। नतीजतन, सभी दलों के प्रत्याशी बड़े नेताओं को लाकर लड़ाई को अपने अनुकूल बनाने का प्रयास कर रहे है।एटा और कासगंज में दो दिन में सभी सातों सीटों पर प्रत्याशी के समर्थन में चुनाव प्रचार करने आए सपा मुखिया व प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव हों या बसपा प्रमुख मायावती की एटा, कासगंज व मैनपुरी के प्रत्याशियों के समर्थन में एटा में की जनसभा या माकपा पोलित ब्यूरो सदस्य सुभाषिनी अली की एटा जनसभा हो या शनिवार को हुई भाजपा नेता और केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह की जनसभा, सभी ने अपने उम्मीदवारों की जीत लिए तरकश में से सधे तीर निकाले। सभी नेताओं का मुख्य निशाना गुण्डागर्दी विरोधी, आरक्षण समर्थक और गरीब हितैषी होना ही था। हालांकि इस दौरान जातिवादी, सांप्रदायिक के तीर भी छोड़े गए।
एटा में सपा से दो सगे भाई लड़ रहे हैं। एटा से पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष जुगेन्द्रसिंह यादव तथा अलीगंज से दो बार सपा विधायक रहे रामेश्वरसिंह यादव भी मैदान में अपनी किस्मत आजमाकर जीत का दावा कर रहे हैं। वहीं उनके मुकाबले में खड़े 2012 में सपा के ही विधायक आशीष यादव लोकदल प्रत्याशी के रूप में चुनौती दे रहे हैं। आशीष की चुनौती इसलिए अधिक अहम है कि वे विधानपरिषद के सभापति तथा मुलायमसिंह यादव व शिवपाल सिंह यादव के अत्यन्त खास रहे रमेश यादव के इकलौते पुत्र हैं।
सपा के दोनों योद्धाओं के मध्य बाजी जीतने की फिराक में हैं भाजपा के विपिन वर्मा ‘डेविड’ तथा बसपा के गजेन्द्रसिंह चौहान। इनमें गजेन्द्र 2012 के चुनावों में दूसरे स्थान पर रहने के कारण इस बार उम्मीद लगाए हुए हैं तो डेविड अपने पिता की छह बार की विधायकी, अपने परिवार के प्रीतमसिंह की दो बार तथा अपने भाई प्रजापालन की 2007 की विजय की विरासत का दम भरते दिखाई दे रहे हैं। यादव बहुल एटा सीट पर इनके बहाने रामगोपाल व शिवपाल की प्रतिष्ठा दांव पर है।बसपा के पूर्व मंत्री अवधपाल सिंह के फिर से बसपा प्रत्याशी बनने से चर्चित हुई अलीगंज विधानसभा पर सपा के रामेश्वरसिंह यादव व उनके विरोधियों के बीच ही मुख्य मुकाबला है। भाजपा से यहां सत्यपालसिंह राठौर को क्षत्रिय मतों की आशा में उतारा गया है। किन्तु अलीगंज में लड़ाई का केन्द्र ‘ऊपर परमेश्वर नीचे रामेश्वरह्ण उक्ति को चरितार्थ करनेवाले रामेश्वर के समर्थन व विरोध का ही नजर आता है।
जिले की तीसरी विधानसभा मारहरा में लोधी मतों के बाहुल्य के कारण मुकाबला 2012 के चुनावों में दूसरे स्थान पर रहे भाजपा प्रत्याशी वीरेन्द्र लोधी व अन्य के मध्य प्रतीत हो रहा है। यहां सपा से विधायक अमित गौरव ‘टीटूह्ण तथा बसपा से अंतिम समय में रंजीत यादव को हटाकर प्रत्याशी बनाए गये शलभ माहेश्वरी मैदान में हैं। वहीं बसपा प्रत्याशी के रूप में खासी मेहनत करनेवाले रंजीत यादव भी अब लोकदल प्रत्याशी के रूप में ताल ठोंक रहे हैं।
जिले की चौथी विधानसभा जलेसर (सुरक्षित) है। सपा विधायक व सपा नेता रामजीलाल सुमन के पुत्र रणजीत सुमन जलेसर पालिका चेयरमैन मोहनसिंह हैप्पी के माध्यम से बसपा से तथा संजीव दिवाकर के माध्यम से भाजपा से मुकाबले में हैं।वहीं कासगंज जिले में कासगंज विधानसभा पर सपा मंत्री व मानपाल सिंह वर्मा के स्थान पर हसरत उल्ला शेरवानी को सपा और भाजपा के लारा देवेन्द्र लोधी के उम्मीदवार बनने से मुकाबला रोचक बन गया है। अमापुर से 2012 में बसपा विधायक के रूप में जीते ममतेश शाक्य को भाजपा की ओर से पटियाली भेज देने के बाद बसपा ने एक अन्य शाक्य देवप्रकाश देबू को उतारा है तो सपा ने पूर्व विधायक वीरेन्द्र सोलंकी तथा भाजपा ने पूर्व विधायक देवेन्द्र प्रताप सिंह को उतारा है। यहां भी सपा की ओर से पूर्व घोषित प्रत्याशी महिला आयोग की सदस्य अशोका पांडे के पुत्र राहुल पांडे का टिकट काटे जाने के बाद वे महान दल प्रत्याशी के रूप में मैदान में हैं।
जबकि पटियाली सीट पर विधायिका नजीबा खान ‘जीनतह्ण की पुत्री नाशीखान का टिकट भी सपा लारा उनके शिवपाल कनेक्शन के कारण काटे जाने से मुसलिम समाज का रोष नई प्रत्याशी बनीं सपा जिलाध्यक्ष व पूर्व सांसद देवेन्द्र यादव की पुत्री तथा आईजी अंशुमान यादव की पत्नी किरण यादव का कितना हित-अहित करेगा समय ही बताएगा। किन्तु भाजपा की ओर से लोधी-शाक्य मतों की बहुलता के कारण अमापुर विधायक ममतेश शाक्य को यहां से उतारे जाने तथा बसपा की ओर से पूर्व मंत्री राजेन्द्रसिंह चौहान के पुत्र धीरेन्द्र चौहान को उतारे जाने ने मुकाबले को बहुत ही कड़ा बना दिया है।इस सियासी संग्राम में ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो समय ही बताएगा किन्तु दोनों ही जिलों में पूर्व राज्यमंत्री अवधपाल, दो सगे भाई जुगेन्द्र व रामेश्वर, पुत्र के कारण वरिष्ठ नेता रामजीलाल सुमन, विपिन वर्मा के परिवार तथा अपने खासों को टिकट दिलाने के कारण राजस्थान राज्यपाल कल्याणसिंह की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई है।
