पहला सवाल, क्या मुफ्त की चीजों से उत्तर प्रदेश की जनता के जीवन स्तर में कोई सुधार आएगा? दूसरा सवाल यह कि, क्या बिजली, पानी, सड़क, विकास, किसानों की दशा में सुधार, बेरोजगारों को रोजगार, गरीबी हटाने सरीखे मसलों पर मुफ्त में मिलने वाली चीजें अधिक असरदार साबित होंगी? इस बार उत्तर प्रदेश में जो विधानसभा चुनाव हो रहा है, उसमें मतदाताओं को मुफ्त में मिलने वाली चीजों की भरमार है। एक लीटर पेट्रोल तक जब जनता को देने का वादा कर लिया जाए तो प्रदेश की सियासी फिजा की तासीर को समझना मुश्किल नहीं है।
पहले बात, समाजवादी पार्टी के घोषणा पत्र की, जिसे अखिलेश यादव ने वचन पत्र कहा है। इस वचन पत्र में मुफ्त में मिलने वाली चीजों की बात की जाए। इस बार के अपने वचन पत्र में अखिलेश यादव ने मुफ्त में मिलने वाली जिन नई चीजों को जोड़ा है, उनमें 300 यूनिट बिजली मुफ्त, दुपहिया चालकों को एक लीटर पेट्रोल मुफ्त, आटो चालकों को तीन लीटर पेट्रोल मुफ्त का वादा है। इतना ही नहीं, छह किलो सीएनजी भी जनता को देने का वादा है। इसके अलावा अयोध्या में पुराने मंदिरों के जीर्णोद्धार के साथ ही साधु-संतों की मदद की बात भी वचन पत्र में है।
उधर, भारतीय जनता पार्टी ने भी अमित शाह की मौजूदगी में अपना जो संकल्प पत्र जारी किया है, उसमें कई घोषणाएं हैं। मसलन, प्रत्येक परिवार में कम से कम एक रोजगार देने का वादा। ऐसा इसलिए किया गया है क्योंकि भारतीय जनता पार्टी इस सच से बखूबी वाकिफ है कि उत्तर प्रदेश में 53 फीसद युवा मतदाता हैं। वहीं पार्टी लव जिहाद में एक लाख रुपये जुर्माना और दस बरस कारावास की बात भी कर रही है। वह पांच साल की सरकार में पांच लाख सरकारी नौकरियां, एक भी दंगा नहीं, पांच एक्सप्रेस-वे, एक जिला-एक उत्पाद योजना में करोड़ों रोजगार देने और लाखों कुटीर उद्योगों को जीवनदान देने की बात भी कह रही है।
वहीं, कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में किसानों की कर्ज माफी, गेहूं और धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 25 हजार करने, 20 लाख लोगों को सरकारी नौकरी देने, आवारा पशुओं के पीड़ितों को प्रति एकड़ तीन हजार रुपये मुआवजा देने की बात कही है। इतना ही नहीं, दसवीं और 12वीं की छात्राओं को स्मार्टफोन और स्कूटी देने का वादा भी प्रियंका गांधी ने प्रदेश की जनता से किया है। इस बार के विधानसभा चुनाव में परख सिर्फ एक बात की होगी। प्रदेश की जनता की हकीकत जीतती है या वे वादे जो अभी फिलहाल वादे ही हैं। इसके पहले भी ऐसे तमाम वादोें को कर सरकार बनाने वाले राजनीतिक दलों ने बिसरा दिया है।