उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव के दूसरे चरण का मतदान कल यानी कि 11 मई को होने जा रहा है। 13 मई को कर्नाटक के साथ ही यूपी के इस सेमीफाइनल के नतीजे भी आ जाएंगे। कहने को निकाय चुनाव है, स्थानीय मुद्दों का बोलबाला है, लेकिन इसकी अहमियत बीजेपी से लेकर सपा तक, सब समझ रहे हैं। इसे ऐसे ही लोकसभा चुनाव का ट्रेलर नहीं माना जा रहा है। निकाय चुनाव के नतीजे बताने के लिए काफी रहेंगे कि यूपी की सियासी जमीन पर कौन कितना मजबूत चल रहा है।

इस चुनाव में बीजेपी ने पहली बार बड़ी तादाद में मुस्लिम उम्मीदवारों पर दांव चला है, समाजवादी पार्टी शहरी वोटरों पर अपनी नजर बनाए हुए है और मायावती फिर परंपरागट वोटबैंक दलित-जाटव को एकजुट करने में जुटी हैं। यानी कि कोई पार्टी नई रणनीति के साथ दूसरों के वोटबैंक में सेंधमारी की तैयारी कर रही है तो कोई अपने पुराने वोटबैंक को फिर साथ लाने की कवायद में लगी है। एक-एक कर समझते हैं कि निकाय चुनाव में बीजेपी-सपा और बसपा ने क्या एक्सपेरिमेंट किया है और लोकसभा के लिहाज से इनका क्या असर रह सकता है।

बीजेपी का पसमांदा मुस्लिमों पर दांव

यूपी निकाय चुनाव में पहली बार बीजेपी की तरफ से कुल 395 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया गया है, वहां भी 90 फीसदी से अधिक पसमांदा मुस्लिम बताए जा रहे हैं। लंबे समय से उत्तर प्रदेश के एक बड़े और निर्णायक वोटर पर बीजेपी की नजर रही है। असल में अगले साल होने जा रहे लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने यूपी की सभी 80 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। ये लक्ष्य तब तक पूरा नहीं हो सकता, जब तक मुस्लिमों को साथ ना लाया जाए। यूपी की सियासत में 20 प्रतिशत मुसलमान हैं, वहां भी 85 फीसदी से ज्यादा तो पसमांदा मुस्लिम हैं। ये वहीं वर्ग है जिसे मुस्लिम समाज का ‘पिछड़ा’ माना जाता है। ये सुविधाओं से वंचित है और तमाम राजनीतिक पार्टियों की उदासीनता से परेशान है।

बीजेपी ने ऐसे में निकाय चुनाव में इन्हीं पसमांदा मुस्लिमों की एक फौज खड़ी कर दी है। मुस्लिमों का दिल जीतने के लिए पसमांदा सम्मेलन तो पिछले साल से ही शुरू कर दिए गए थे, अब चुनावी मैदान में उन्हें उतार पार्टी ने बड़ा दांव चल दिया है। पार्टी ने इस बार प्रयागराज, वाराणसी, गोरखपुर, लखनऊ, झांसी जैसे कई नगर निगमों में मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारा है। यहां ये समझना जरूरी है कि पीएम मोदी ने हैदराबाद से कई महीने पहले ही पसमांदा मुस्लिमों का दिल जीतने का मंत्र बीजेपी को दे दिया था, ऐसे में अब निकाय चुनाव में उस रणनीति की झलक दिख गई है।

सपा की सोशल इंजीनियरिंग और शहरी वोटर

समाजवादी पार्टी ने इस बार निकाय चुनाव के लिए अलग ही स्तर की रणनीति पर काम किया है। एक ऐसा पैटर्न दिखाई दे रहा है जहां पर निगम के जातीय समीकरण को देखते हुए किसी भी उम्मीदवार को उतारा गया है। जिस पार्टी के लिए कहा जाता है कि उसका सारा फोकस मुस्लिम-यादव समीकरण पर रहता है, लेकिन इस बार उस स्पेस से बाहर ओबीसी-सवर्णों पर भी जोर दिया गया है। इसी वजह से शहरी इलाकों में इस बार सपा ने ज्यादातर निगमों में सवर्ण जाति वाले किसी उम्मीदवार को मौका दिया है। ये परंपरागत रूप से बीजेपी के साथ जुड़े रहे हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले सपा इन्हें अपनी झोली में लाना चाहती है। सपा ने इस बार निषाद, गुर्जर और कुर्मी जैसी जातियों पर भी खास ध्यान दिया है।

उदाहरण के लिए सपा ने गोरखपुर से अभिनेत्री काजल निषाद को उम्मीदवार बनाया गया है। इसका कारण ये है कि यहां पर निर्षाद वोटर हार-जीत तय कर जाता है। इसी तरह मेरठ से गुर्जर उम्मीदवार को मौका दिया गया है। हॉट सीट लखनऊ से पार्टी ने इस बार वंदना मिश्रा को उतारा है जो अगर जीतती हैं तो कई दूसरी शहरी सीटों पर इसका असर पड़ सकता है।

मायावती का दलित और मुस्लिमों पर दांव

बहुजन समाज पार्टी यूपी की सियासत में अपनी जमीन तलाशने की कोशिश पिछले कुछ सालों से कर रही है। कभी सपा के बाद दूसरी सबसे मजबूत विकल्प के तौर पर सामने आने वाली पार्टी अभी अपने वजूद को बचाने की कोशिश में लगी है। पिछले विधानसभा चुनाव में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद से तो पार्टी की चुनौतियां और ज्यादा बढ़ चुकी हैं। ऐसे में इस बार बसपा ने निकाय चुनाव में ब्राह्मणों से ज्यादा दलित और मुस्लिम समीकरण पर जोर दिया है। पार्टी ने 11 सीटों पर मेयर उम्मीदवार के तौर पर किसी मुस्लिम प्रत्याशी को मौका दिया है।

बसपा का ये मुस्लिम दांव ही इस समय सपा के लिए चिंता का विषय है क्योंकि वोटों का बंटवारा होता है, उस स्थिति में पार्टी के लिए कई सीटें निकालना मुश्किल हो जाएगा। सपा के पक्ष में ये बात जा सकती है कि खुद मायावती सक्रिय रूप से निकाय चुनाव में प्रचार नहीं कर रही हैं, वे सिर्फ सोशल मीडिया पर बयान देने तक सीमित चल रही हैं। लेकिन पार्टी ने ‘गांव चलो अभियान’ शुरू किया, जिस तरह से मुस्लिमों को फिर पार्टी के साथ जोड़ने की कवायद हुई, उसका असर इस बार निकाय चुनाव में दिख सकता है। पार्टी की रणनीति स्पष्ट है, जनता को संदेश दिया जाए कि बीजेपी को हराने के लिए दोनों मुस्लिम और दलितों का साथ आना जरूरी है। ऐसे में इसी फॉर्मूले को निकाय चुनाव में उतारने की कोशिश में बसपा लगी हुई है।

नगर निकाय चुनाव की पूरी जानकारी

जानकारी के लिए बता दें कि यूपी निकाय चुनाव में 17 नगर निगम, 544 नगर पंचायत और 198 नगर पालिकाओं में वोटिंग होनी है। पहले चरण का मतदान तो हो चुका है, दूसरे चरण का कल होने जा रहा है। पिछली बार निकाय चुनाव में बीजेपी ने 17 में से 16 नगर निगमों में जीत का परचम लहराया था, लेकिन इस बार सपा ने जिस तरह से सर्वणों के बीच सेंधमारी की कोशिश की है, जिस तरह से बसपा फिर मुस्लिम-दलित गठजोड़ को मजबूत करना चाहती है, बीजेपी के लिए भी ये चुनाव किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं रहने वाला है।