उपेंद्र दत्त शुक्ला ने आरएसएस की छात्र इकाई एबीवीपी के साथ अपनी राजनीति की शुरुआत की। इसके बाद वे 40 से अधिक वर्षों तक भाजपा में रहे, वे गोरखपुर क्षेत्र के पार्टी प्रभारी रहे, फिर उत्तर प्रदेश के उपाध्यक्ष बने। उन्होंने योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद गोरखपुर से लोकसभा का चुनाव भी लड़ा।
अगर यह सब नहीं तो साल 2020 में उपेंद्र शुक्ला की मृत्यु के बाद उन्हें टिकट के लिए और क्या क्या बनाया जाए, यह सवाल उनका परिवार पूछ रहा है। टिकट से इनकार किए जाने के बाद उनका परिवार समाजवादी पार्टी में चला गया। गोरखपुर में भाजपा के सबसे पुराने चेहरों में से एक उपेंद्र शुक्ला की पत्नी सुभावती शुक्ला गोरखपुर शहरी विधानसभा सीट से योगी आदित्यनाथ के खिलाफ चुनाव लड़ रही हैं।
शुक्ला परिवार ने सबसे पहले छोटे बेटे अमित के लिए पार्टी में पद की मांग की और हाल ही में सुभावती शुक्ला के लिए टिकट की मांग की। हालांकि परिवार के लोग कहते हैं कि राज्य भाजपा इकाई ने यह कहते हुए उनकी मांग को अनसुना कर दिया कि पार्टी के पास मृतक आश्रित के लिए कोई पॉलिसी नहीं है।
गुरुवार को सुभावती शुक्ला द्वारा नामांकन दाखिल करने से ठीक एक दिन पहले बड़े बेटे अरविंद ने सभी औपचारिकताएं पूरी कीं, यहां तक कि अमित भी समाजवादी पार्टी कार्यालय से प्रतीक पत्र लेने के लिए लखनऊ पहुंचे। सुभावती शुक्ला ने स्वीकार किया कि चुनावी राजनीति एक ऐसी दुनिया है जो जिससे वह अब तक दूर रही।
सुभावती शुक्ला कहती हैं कि वह उपेंद्र शुक्ला को भाजपा, उसकी विचारधाराओं और नीतियों के बारे में बात करते हुए सुनती थीं और वे गोरखपुर क्षेत्र में चुनाव में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को जानती थीं, जिसमें करीब 62 विधानसभा सीटें हैं। हालांकि वह खुद राजनीति में कभी दिलचस्पी नहीं रखती थीं और न ही इसमें शामिल होने की कोई योजना थी। पिछले एक साल से उनकी मृत्यु के बाद से वह मुश्किल से घर से बाहर निकली हैं।
हालांकि बीते बुधवार को वह योगी आदित्यनाथ के प्रभाव वाले गोरखनाथ मंदिर से लगभग 7 किमी दूर के इलाकों में प्रचार कर रही थीं। वह कहती हैं कि वह मतदाताओं से अपने पति का सम्मान करने के लिए कह रही हैं, जिनका भाजपा द्वारा अपमान किया गया।
सुभावती शुक्ला के बेटे अरविंद शुक्ला जो पहले एक निजी फर्म में काम करते थे, वे कहते हैं कि पार्टी ने उनके पिता की स्मृति और योगदान को उनके निधन के बाद से लगातार कम किया है। मुख्यमंत्री ने इस दौरान सैकड़ों बार गोरखपुर का दौरा किया, लेकिन वह कभी भी हमारे यहां संवेदना व्यक्त करने तक नहीं आए। उन्होंने हमसे सिर्फ एक बार फोन पर बात की। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह हमारे पिता की मृत्यु के छह महीने बाद आए थे। अरविंद कहते हैं कि अमित और उन्होंने पिता की मृत्यु के बाद समर्पित सिपाहियों की तरह भाजपा के लिए काम करना जारी रखा। लेकिन उनसे मन तब हट गया जब उन्होंने कहा कि ये मृतक आश्रितों की पार्टी नहीं है।
अरविंद ने कहा कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने हमसे मुलाकात की और मेरे पिता एवं माता दोनों को सम्मान दिया। अरविंद यह भी कहते हैं कि जब हम 18 जनवरी को लखनऊ में अखिलेश से मिलकर गोरखपुर वापस लौटे, तो स्थानीय एसपी यूनिट हमारा स्वागत करने के लिए आई और उन्होंने एक अभिभावक की तरह हमारी चिंता की।
अरविंद अपनी मां की ओर से सवाल उठाते हुए कहते हैं कि सुभावती शुक्ला एक सामाजिक कार्यकर्ता की पत्नी से स्वयं एक सामाजिक कार्यकर्ता बनने के लिए तैयार हैं। वह भाजपा की नीतियों के खिलाफ पूरे विधानसभा क्षेत्र में प्रचार करेंगी। संकरी सड़कें और उचित जल निकासी व्यवस्था की कमी प्रमुख मुद्दे हैं जिन्हें हम उठाएंगे।
हालांकि वह इस बात से आशंकित नहीं हैं कि लोग शुक्ला परिवार के भाजपा से सपा में जाने को स्वीकार नहीं कर रहे हैं। वे कहते हैं कि विचारधाराएं बैनर और झंडे तक सीमित नहीं हैं, बल्कि दिल में समाई हुई है। हम जीवन भर समाजवादी पार्टी के लिए काम करेंगे। अपनी जीत की संभावनाओं के बारे में अरविंद कहते हैं कि चूंकि भाजपा के उम्मीदवार सीएम योगी हैं लेकिन हम यहां सिस्टम के खिलाफ लड़ रहे हैं। 2017 में जब सपा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था, तो उनके उम्मीदवार को 28.21% वोट मिले थे और बीजेपी को करीब 56% वोट मिले थे।