उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर, प्रचार अभियान से बसपा प्रमुख मायावती के ‘गायब’ रहने को लेकर गृह मंत्री अमित शाह ने उनपर तंज कसा था। इस पर मायावती ने कहा था कि उनके पास रैली करने के पैसे नहीं हैं। हालांकि, पार्टी नेताओं का कहना है कि बसपा प्रमुख को अभी मैदान में उतरने की कोई जल्दी नहीं है।
सूबे में होने वाले विधानसभा चुनावों के पहले, भाजपा, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने जनसभाएं, रोड शो, यात्राएं और मैराथन आयोजित की हैं। हालांकि कोविड के कारण अब इनमें कटौती हो सकती है। वहीं, मायावती अब भी इस दौरान रैलियों से नदारद रही हैं। वहीं, पार्टी के नेता इस बात पर जोर देते हैं कि इसका मतलब यह नहीं है कि वह (मायावती) सक्रिय नहीं है। वह लखनऊ में डेरा डाले हुए हैं और रोजाना पार्टी कैडर्स से फीडबैक ले रही हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट्स के मुताबिक, बसपा सूत्रों का कहना है कि मायावती पार्टी नेताओं, घोषित उम्मीदवारों और मौजूदा विधायकों, जिला और जोनल समन्वयकों, राज्य पदाधिकारियों और उन भाईचारा समितियों के प्रमुखों से मिल रही हैं जिनका गठन मुस्लिम, ब्राह्मण, पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित वर्गों समेत विभिन्न वर्गों तक पहुंच बनाने के लिए किया गया है।
बसपा सुप्रीमो मायावती आमतौर पर पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों को अपने कार्यालय बुलाती हैं और वहां वे जिला स्तर के पदाधिकारियों के साथ वर्चुअल मीटिंग करती हैं। सूत्रों ने बताया कि पार्टी नहीं चाहती थी कि चुनाव के इतना नजदीक होने पर जमीनी स्तर पर अभियान में जुड़े कार्यकर्ता लखनऊ आने और वापस जाने में समय बर्बाद करें। इसलिए जोनल कोऑर्डिनेटर और राज्य स्तर के पदाधिकारी बूथ अध्यक्षों और भाईचारा समितियों के साथ बैठक करते हैं, और जमीनी रिपोर्ट आलाकमान तक पहुंचाते हैं।
बसपा के सूत्रों ने बताया कि मायावती पार्टी की चुनावी रणनीति को कैसे लागू किया जा रहा है, कितने नए सदस्य पार्टी में शामिल हुए हैं, जैसे मामलों पर नजदीकी नजर रखती हैं। इसके पहले, गृह मंत्री अमित शाह के तंज पर मायावती ने पलटवार करते हुए कहा था कि चुनाव से पहले जो भाजपा की जनसभाएं की जा रही हैं, वह जनता के पैसे और सरकारी कर्मचारियों की भीड़ के बूते की जा रही हैं।
यह पूछे जाने पर कि मायावती कब से चुनाव प्रचार शुरू करेंगी, बसपा के प्रवक्ता फैजान खान ने कहा: “अन्य राजनीतिक दल चुनावों के करीब ही संगठनात्मक गतिविधियां शुरू करते हैं, बसपा पूरे पांच साल तक जमीन पर काम करती रहती है। फिलहाल, पार्टी पिछले कार्यों की समीक्षा कर रही है। बसपा सुप्रीमो रोजाना संगठनात्मक गतिविधियों को मॉनिटर कर रही हैं।”