”प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकसभा सीट काशी में एक म्युनिसिपल रोड के उद्घाटन को हिंदू धर्म के प्रति समर्पित मेगा शो में बदल दिया गया। ठीक उसी प्रकार से जैसे- अयोध्या, बद्रीनाथ, केदारनाथ और अन्य धार्मिक स्थलों के प्रोजेक्ट्स के उद्घाटन कार्यक्रमों को राजनीतिक रंग दिया गया। नरेंद्र मोदी हिंदू सेंटीमेंट्स के दम पर राजनीति करते हैं और इससे उन्होंने कई चुनाव भी जीते हैं, लेकिन यह संविधान की भावनाओं के खिलाफ है।” पीएम नरेंद्र मोदी पर यह आरोप लगाया है एनडीए सरकार के पूर्व केंद्रीय मंत्री और मौजूदा समय में तृणमूल कांग्रेस के उपाध्यक्ष यशवंत सिन्हा ने।
इंडियन एक्सप्रेस अखबार में लिखे लेख में यशवंत सिन्हा ने कहा, ”प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए जिस प्रकार से नरेंद्र मोदी ने हिंदू धर्म को ग्लोरिफाई किया है, उसे सही नहीं कहा जा सकता है। मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि अटल बिहारी वाजपेयी ऐसे सैकड़ों काम नहीं करते जो नरेंद्र मोदी ने पीएम पद पर रहते हुए किए हैं। इन कामों से नरेंद्र मोदी ने संविधान की मूल भावना को चोट पहुंचाकर “राजधर्म” को कूड़ेदान में डाल दिया है।”
यशवंत सिन्हा आगे लिखते हैं, ”धर्म, जाति और भाषा को हथियार बनाकर निजी और राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल करना यूं तो भारतीय राजनीति में कोई नई बात नहीं है। लेकिन जितने खुले तौर पर और बेशर्मी के साथ ये आज हो रहा है, वैसे पहले कभी नहीं हुआ।”
उन्होंने लिखा, ”हमारे देश में प्रधानमंत्री या किसी महत्वपूर्ण पद पर बैठे व्यक्ति के लिए धर्म बेहद निजी मामला होना चाहिए। तो मोदी क्यों इसे मेगा शो के तौर पर पेश कर रहे हैं? इसका जवाब बेहद आसान है, क्योंकि यूपी इलेक्शन आ रहा है। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ का प्रदर्शन बेहद खराब रहा है तो बीजेपी के पास अब सांप्रदायिकता के अलावा दूसरा कोई हथियार बचा नहीं है। कम्युनल एजेंडा ही बीजेपी का यूपी फॉर्मूला है और यही 2024 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी का हथियार होगा।
यशवंत सिन्हा ने लिखा, ”गुजरात में हुए भीषण दंगों के बाद मोदी फंडामेंटलिस्ट हिंदुओं के फेवरेट बन गए। वह हिंदू सेंटीमेंट्स के दम पर एक के बाद एक चुनाव जीतते चले गए। जब-जब हिंदू एजेंडा से बात बनती नहीं दिखी तब-तब वे मियां मुशर्रफ को ले आए। मैं बस ये उम्मीद कर सकता हूं कि ये कम्युनल वायरस जो फैलाया जा रहा है, वह स्थिति को नियंत्रण से बाहर न कर दे।”
यशवंत सिन्हा ने बीजेपी के विरोधियों को चेतावनी दी है कि वे उनके एजेंडा में न फंसें। बीजेपी विरोधियों का एजेंडा सेक्युलरिज्म है। जैसे- बेरोजगारी, महंगाई, खराब गवर्नेंस, कोविड, महिलाओं की सुरक्षा…. ये विपक्ष के मुद्दे होने चाहिए। विपक्ष को चाहिए कि वह इन मुद्दों पर बीजेपी से जवाब मांगे और उसे मजबूर करे कि वह इन सवालों के जवाब दे। विपक्ष अपनी आधी हार उसी वक्त तय कर लेता है जब वह बीजेपी के एजेंडा पर रेस्पॉन्ड करता है। क्या विपक्ष यूपी इलेक्शन को जिन्ना, पाकिस्तान, अब्बाजान और औरंगजेब जैसे मुद्दों के आधार पर लड़ना चाहेगा? बीजेपी यही चाहती है। बीजेपी मोदीराज को मुस्लिम आक्रमणकारियों के अत्याचारों के खिलाफ एक बदले के रूप में पेश कर रही है और देश के बहुसंख्यक लोग इसे स्वीकार कर रहे हैं। जहां तक मैं समझता हूं भारत अब भी एक सेक्युलर देश है। इसका मतलब यह हुआ कि सरकार का कोई धर्म नहीं होता। संविधान हर धर्म के मानने वालों को समान नजर से देखता है।
यशवंत सिन्हा खुद अपना उदाहरण देते हुए लिखते हैं, ”मैं धर्म से हिंदू हूं और मैंने नंगे पैर देवघर की यात्रा की है। मैं कांवड़ यात्रा में भी गया हूं और कांवड़ यात्रियों की सुविधा के लिए बहुत काम भी किया, लेकिन हमने उसे कभी मेगा शो के तौर पर पेश नहीं किया, क्योंकि धर्म मेरे लिए निजी मामला है और मैं नैचुरली सेक्युलर हूं।”