उत्तर प्रदेश में जातिगत समीकरण ही लोकसभा और विधानसभा चुनाव में जीत-हार का अंतर तय करते आए हैं। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी इन्हीं जातियों को साध कर प्रदेश की सत्ता पर काबिज होने की कोशिशों में जुट गए हैं। यूपी में इस वक्त दलित मतदाता 25 फीसद, ब्राह्मण 10 प्रतिशत, क्षत्रिय 10 फीसद, अन्य अगड़ी जातियां पांच फीसद, पिछड़ी जातियां 35 फीसद हैं।
दो दशक से अधिक समय से उत्तर प्रदेश में जातियों को साध कर सियासत करने वाली बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के लिए आगामी विधानसभा चुनाव में अपने पारम्परिक मतदाता को बचाए रखना बड़ी चुनौती है। चार बार प्रदेश में सरकार बनाने वाली सपा और बसपा के हाथों से उनका पारम्परिक वोट बैंक छिटक चुका है।
इस बात का अहसास समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष रहे मुलायम सिंह यादव और बसपा प्रमुख मायावती को बहुत पहले ही हो चुका था कि उनका पारम्परिक मतदाता उनसे दूर जाने लगा है। इसलिए दोनों ही राजनीतिक दलों के आकाओं ने प्रदेश की 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का वादा किया था। लेकिन मुलायम सिंह यादव और मायावती इन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामल करा पाने में नाकाम रहे।
मुलायम सरकार ने 2005 में इन जातियों को अनुसूचित जातियों में शामिल करने का आदेश जारी किया था लेकिन उनके इस फैसले पर उच्च न्यायालय ने रोक लगा दी थी। इसके बाद इन जातियों को शामिल करने का प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा गया लेकिन उसके पहले ही प्रदेश में 2007 में सरकार बदल गई और मायावती की सरकार आते ही इस प्रस्ताव पर रोक लगा दी गई।
अखिलेश सरकार में भी इन 17 जातियों से किए गए वादे पूरे नहीं हुए। दिसंबर 2016 में अखिलेश सरकार ने इन जातियों को अनुसूचित जातियों में शामिल करने की कवायद की। लेकिन नाकाम रहे। जिससे 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव में ये जातियां भारतीय जनता पार्टी के पाले में जा खड़ी हुईं।
जिन 19 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के वादे क्षेत्रीय दलों ने किए थे उनमें कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिन्द, भर, राजभर, धीमर, बाथम, तुरहा, गोड़िया, मांझाी और मछुआरे शामिल हैं। इस 17 जातियों की प्रदेश में कुल आबादी 13 फीसद है। ये 13 फीसद वोट किसी भी राजनीतिक दल को बड़े अंतर से जीत दिला पाने की कुव्वत रखते हैं।
उत्तर प्रदेश में राजभर 1.32 फीसद, कुम्हार और प्रजापति 1.84 फीसद औैर गोंड 0.22 फीसद हैं। इनके अलावा बाकी की 13 जातियां निषाद समुदाय से आती हैं। इनमें निषाद, बिन्द, मल्लाह, केवट, कश्यप, भर, धीवर, बाथम, मछुआरा, कहार, धीमर, मांझी, और तुरहा जातियां मिला कर 10 फीसद हैं। इन 17 जातियों को योगी आदित्यनाथ की सरकार ने अनुसूचित जातियों में शामिल करने की सिफारिश की है।
उत्तर प्रदेश में 20.07 फीसद दलित आबादी है। जाटव, वाल्मीकि, धोबी, कोरी, पासी, चमार, धानुक समेत 66 उपजातियां हैं। इन्हें प्रदेश में 21 फीसद आरक्षण मिल रहा है। जबकि अन्य पिछड़ी जातियों को प्रदेश में 27 फीसद आरक्षण मिल रहा है। यदि मुस्लिम ओबीसी को भी शामिल कर लिया जाए तो प्रदेश में ओबीसी की आबादी 52 फीसद है। इन जातियों को साधने की कोशिश में लगे अखिलेश यादव ने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, महान दल और अपना दल कमेरावादी के साथ गठबंधन किया है, ताकि वे 17 जातियों से किए वादे को न निभा पाने की भरपार्ई कर सकें।