अजय श्रीवास्तव
साल 2015, संघ मुख्यालय नागपुर में यूपी चुनाव को लेकर एक महत्त्वपूर्ण बैठक आहूत की जाती है। इसमें यह महत्त्वपूर्ण फैसला लिया जाता है कि हर हाल में गैर जाटव और गैर यादव के बीच पैठ बनानी है। इसी फार्मूले के जरिए सत्ता हासिल की जा सकती है। ओबीसी वोटरों को अपने पाले में करने के लिए संघ के कर्मठ स्वंयसेवक दिन रात एक कर देते हैं। गैर यादव जातियों के छोटे-बडे नेताओं को संगठन में शामिल किया जाता है और उन्हें उचित सम्मान देकर यह विश्वास दिलाया जाता है कि उनका हित भाजपा में हीं सुरक्षित है। कुर्मी, कोयरी, वैश्य, रूहेला, बगवां, दोहर, भाट आदि जातियों के प्रतिनिधियों को समय-समय पर संगठन में सम्मानित किया जाता है और उन्हें आगे बढ़ाया जाता है।
कोइरी समाज के छोटे-बडे नेता और कार्यकर्ता जो थोड़े ही दिनों पहले बसपा के कार्यकर्ता थे, भाजपा के साथ जुड जाते हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य जो बसपा के बहुत बडे नेता थे और बसपा में कोइरी समाज का प्रतिनिधित्व करते थे। भाजपा के साथ चले आते हैं। अपना दल के माध्यम से कुर्मी समाज जिसकी आबादी ओबीसी में तकरीबन 12% है, भाजपा के साथ गठबंधन कर लेती है। अपना दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल को उचित सम्मान देकर केंद्र में मंत्री बनाया जाता है।
कहा जाता है कि केंद्र में काबिज होने का रास्ता उत्तर प्रदेश (लोकसभा की 80 सीटें) से होकर जाता है, ठीक उसी तरह यूपी की सत्ता(विधानसभा की 403 सीटें)में काबिज होने का रास्ता ओबीसी वोटबैंक पर निर्भर करता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस फार्मूले को अच्छी तरह समझ गया था और उसने अपने एजेंडे को लागू करना शुरू कर दिया। उन दिनों सपा नेता अखिलेश यादव अपने परिवार में वर्चस्व की जंग लड रहे थे तो बसपा सुप्रीमो मायावती इस गुमान में बैठीं थीं कि उनका वोटबैंक सुरक्षित है और कोई उसमें सेंधमारी नहीं कर सकता।
2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 312 सीटों पर फतह कर सपा-बसपा को मरणासन्न अवस्था में पहुंचा दिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का ओबीसी आपरेशन कामयाब रहा और 2017 के विधानसभा में भाजपा की तरफ से 101 ओबीसी विधायक चुनकर आए, जबकि 2012 में यह संख्या 13 और 2007 में 10 थी। भाजपा की सरकार बनते हीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को यह आदेश दिया गया कि वे तुरंत एक सामाजिक न्याय समिति का गठन करें जो प्रदेश मे और ऐसी जातियों की पहचान करे जिन्हें ओबीसी रिजर्वेशन का पूरा फायदा नहीं मिल रहा है। समिति ने काफी मेहनत कर अपनी रिपोर्ट उत्तर प्रदेश सरकार को सौंपी। इस महत्वपूर्ण रिपोर्ट को अभी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। कारण जो भी हो इसे लागू करने से जो अन्य पिछडी जातियां पीछे हैं, उन्हें भी समान अवसर मिलेगा।
हिंदी पट्टी के चुनाव में सबसे महत्त्वपूर्ण मुद्दा जाति है और सभी राजनीतिक दल इसको ध्यान में हीं रखकर उम्मीदवार खडा करते हैं। सीएसडीएस व राष्ट्रीय जनगणना के मुताबिक यूपी्र में अनुसूचित जाति 21.1%, अनुसूचित जनजाति 0.1%, हिंदू ओबीसी 41.47%, मुसलिम ओबीसी 12.58%, मुसलिम सामान्य वर्ग 05.73%, हिंदू सामान्य वर्ग 18.92%, ईसाई 0.1% और सिख 0.32% हैं। मोटेतौर पर कहा जाए तो दलित 25%, ब्राह्मण 8%, राजपूत 5%,और अन्य अगड़ी जाति 3% हैं। यादव 13%, कुर्मी 12%, अन्य पिछड़ी जातियां 10% है। प्रदेश में मुसलमान 18% हैं।
सभी दल राजनीतिक समीकरण बैठाने में लग गए हैं। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की चुनावी सभा में भीड़ देखकर भाजपा ने अपनी पूरी ताकत यूपी में झोंक दी है। सारे केन्द्रीय मंत्रियों, भाजपा शासित मुख्यमंत्रियों को कहा गया है कि वे अपनी सुविधानुसार यूपी का दौरा करें और प्रचार-प्रसार में समय लगाएं। प्रदेश के युवाओं में बेरोजगारी को लेकर काफी रोष देखा जा रहा है।
किसान आंदोलन के बाद भाजपा के लिए पश्चिम यूपी में हालत ठीक नहीं है। पिछले विधानसभा चुनाव में जाटों का एकमुश्त वोट भाजपा को गया था क्योंकि जाट मुसलमानों से मुजफ्फरनगर दंगों की वजह से नाराज थे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी हालत देखकर भाजपा थिंकटैंक ने अपना पूरा ध्यान पूर्वांचल की तरफ लगा दिया है।
प्रदेश के 8% ब्राह्मण मतदाताओं में सुगबुगाहट है कि योगी आदित्यनाथ ब्राह्मण विरोधी हैं और वे उन्हें लक्ष्य कर रहे हैं। इस मसले पर काफी बहस भी हो चुकी है। ब्राह्मणों को अपने पाले में करने के लिए सभी दल प्रयासरत है।