विनय ओसवाल

उत्तर प्रदेश में 1996 से अब तक हुए पांच सामान्य चुनावों में भाजपा को धूल चटाने और हर बार बसपा की जड़ों को सींचते रहने वाले रामवीर उपाध्याय को पार्टी ने दो वर्ष पूर्व निलंबित कर दिया था। उन्हें इसी वर्ष भाजपा ने अपने कुनबे में शामिल कर सादाबाद सीट से टिकट भी थमा दिया है। रामवीर ने वर्ष 2017 में बसपा उम्मीदवार के रूप में सादाबाद से चुनाव लड़ा था और भाजपा प्रत्याशी को तीसरे स्थान पर धकेल दिया था। रामवीर की पत्नी, बेटे, तीनों भाई और उनकी पत्नियों सहित पूरे खानदान को पिछले वर्ष हुए पंचायत चुनावों से पूर्व, भाजपा सदस्यता से नवाजा जा चुका है। उनकी पत्नी सीमा उपाध्याय वर्तमान में हाथरस जिला पंचायत अध्यक्ष हैं।

भाजपा अब एक भारी-भरकम ब्राह्मण परिवार को पार्टी में शामिल करने का श्रेय लें रही है और अपने इस कदम को एक बड़ी सफलता के तौर पर परोस भी रही है। रामवीर गंभीर रूप से बीमार हैं। उन्होंने अपना नामांकन भी आनलाइन किया है। उनकी तरफ से सभी अपेक्षित दस्तावेज उनकी पत्नी द्वारा जमा कराए गए हैं। भाजपा की तरह सपा और बसपा भी जिताऊ कार्यकर्ताओं की कमी की समस्या से जूझ रहे हैं। दलबदलुओं को मैदान में उतरना सभी की मजबूरी बनचुकी है। जिले में शेष दोनों दल बसपा, सपा भी दलबदलु प्रत्याशियों और आसमान से उतरे नए चेहरों के भरोसे चुनावी मैदान में हैं। 18 लाख की आबादी और 11 लाख 65 हजार 345 मतदाताओं वाले हाथरस जिले में कुल तीन सिकंदराराऊ, हाथरस सदर, और सादाबाद विधानसभा क्षेत्र है।

सिकंदराराऊ में गैर यादव पिछड़ी जातियों के मतदाताओं ने एसपी बघेल के सपा से भाजपा में जाने के बाद से विशेष रूप से बघेल समाज के एक हिस्से का झुकाव भाजपा की तरफ हो गया है। वैसे उनकी पत्नी मधु बघेल वर्ष 2007 में खुद सपा प्रत्याशी थीं और भाजापा के यशपाल सिंह चौहान के हांथों पराजित हो चुकी हैं। परंतु सपा ने इस बार बघेल समाज के युवा डा ललित बघेल को मैदान में उतार कर जातीय समीकरण में सेंधमारी करदी है।

निजी कारणों से भाजपा से रूठे ठाकुर अवधेश सिंह स्थानीय गांव बनावारीपुर के निवासी हैं। बसपा ने उन्हें प्रत्याशी बनाकर अपने परंपरागत जाटव वोटों के अतिरिक्त ठाकुर वोटों में बड़ी सेंध मारी की है। अवधेश सिंह के समर्थक मानते हैं कि उन्हें ठाकुरों के अतिरिक्त क्षेत्र के अति पिछड़ा समाज का भारी समर्थन भी मिल रहा है। भाजपा ने अपने निवर्तमान विधायक बीरेंद्र सिंह राणा पर दोबारा भरोसा किया है। स्थानीय मतदाता उनके व्यवहार से खुश नहीं हैं, वे उन्हें अहंकारी और बाद-जुबान बताते है। उनमें राणा के प्रति भारी नाराजगी है। प्रचार के दौरान उन्हें जगह-जगह इसका सामना भी करना पड़ रहा है। भाजपा को क्षेत्र के ठाकुरों पर पूरा भरोसा है। यहां 90 हजार ठाकुर मतदाता है। वर्ष 1996, 2007, और 2017 में भाजपा के ठाकुर प्रत्याशी जीतते रहे हैं।

सिकंदराराऊ में सपा ने बघेल समाज का प्रत्याशी उतार कर संघर्ष को त्रिकोणीय बना दिया है। हाथरस सदर सीट पर कुल 4 लाख 15 हजार के लगभग मतदाता हैं। जातिगत समीकरण भाजपा के पक्ष में झुका नजर आता है। भाजपा ने इस सीट से निवर्तमान विधायक और पूर्व में सासनी से तीन बार 1991, 93, 96 में लगातार पार्टी को जीत दिलाते रहे हरिशंकर माहौर का टिकट काट दिया है।

माहौर की टिकट कटने के पीछे क्षेत्र के कुछ वरिष्ठ पार्टीजन पिछले वर्ष हुए पंचायत चुनावों में सासनी ब्लाक प्रमुख को लेकर हाथरस के सांसद राजवीर दिलेर और हरिशंकर माहौर के बीच हुई रस्सा-कसी को मानते हैं। दिलेर अपनी बेटी तो माहौर अपनी पुत्रवधु को पार्टी प्रत्याशी बनाना चाहते थे। इस रस्सा-कसी में दिलेर को मुहकी खानी पड़ी थी। माहौर की पुत्रवधू वर्तमान में सासनी ब्लाक प्रमुख हैं। सादाबाद की जाट बाहुल्य सीट सपा/आरएलडी गठबंधन में आरएलडी के कोटे में गई है। सादाबाद में कुल तीन लाख 73 हजार के लगभग मतदाता हैं। सादाबाद सीट पर आरएलडी ने सोंची-समझी रणनीति के तहत नए चेहरे प्रदीप सिंह उर्फ गुड्डू चौधरी को प्रत्याशी बनाया है।