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उत्तर प्रदेश का वो पश्चिमी इलाका जो सर्वाधिक समृद्ध है, प्रदेश की सियासत में नई तदबीर गढ़ने जा रहा है। इस इलाके की सियासत जाट और मुसलमान मतदाताओं के इर्द-गिर्द घूम रही है। जाट और मुसलमानों को अपने पक्ष में करने के लिए भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और राष्टÑीय लोक दल ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।
खुद गृहमंत्री अमित शाह इस इलाके में सघन जनसम्पर्क अभियान पर निकले हैं। जबकि अखिलेश और जयंत जाट और मुसलमान मतदाताओं को अपने गठबंधन के साथ ला कर प्रदेश की भाजपा सरकार को हराने का सब्जबाग पाले हैं। लेकिन इस इलाके की सियासी तसवीर कुछ और ही कहानी कह रही है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 26 जिलों की 136 विधानसभा सीटों पर इस वक्त सब की नजर है। पहले और दूसरे चरण में इन सीटों मतदान होना है। इस इलाके में जाट मतदाता हार-जीत का फासला तय करता आया है। कुल मतदाताओं का 17 फीसद जाट मुजफ्फरनगर, कैराना और कांठ कांड के बाद से भारतीय जनता पार्टी के पाले में आ खड़ा हुआ। इसी का नतीजा है कि 2014 के लोगसभा चुनाव से लेकर 2017 के विधानसभा चुनाव और फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में इस इलाके के जाटों ने भारतीय जनता पार्टी को अपना अलम्बरदार चुना।
भारतीय जनता पार्टी के पाले में 2014 से आ खड़े हुए जाट मतदाता को अपने पाले में लाने के लिए समाजवादी पार्टी और राष्टÑीय लोक दल ने पूरी ताकत झोंक दी है।पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 27 फीसद मुसलिम आबादी को ध्यान में रख कर बहुजन समाज पार्टी ने इस इलाके में मुसलमानों को काफी टिकट बांटे हैं। भाजपा ने अब तक जिन 204 प्रत्याशियों की सूची जारी की है उनमें किसी एक मुसलमान को टिकट नहीं दिया है।
उधर भारतीय जनता पार्टी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह घर-घर जा कर जनसंपर्क कर रहे हैं। जबकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी पश्चिम में लगातार दौरे कर लोगों के बीच भाजपा सरकार के काम और पिछली सरकार की कमियों को गिनाने से गुरेज नहीं कर रहे हैं। इसके जवाब में अखिलेश यादव और जयंत चौधरी ने प्रेस कांफ्रेंस करके अपने कार्यकर्ताओं में जोश भरा। वहां उन्होंने अन्न संकल्प भी लिया और कहा इसकी लाल पोटली और लाल टोपी के गहरे मायने हैं।
भाजपा दफन मुद्दों को उभारने की कोशिश कर रही है और किसी तरह की विकास की राजनीति पर बात नहीं कर रही है।वहीं क्षेत्र में गन्ना किसानों के बकाये का भुगतान भी एक बड़ा मुद्दा है।योगी लगातार किसानों को बताने की कोशिश में हैं कि उनकी सरकार ने पांच सालों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों का बकाया भुगतान किया। व ये भी याद दिलाने की कोशिश करते हैं कि अखिलेश सरकार में किस तरह इलाके के गन्ना किसानों की उपेक्षा हुई और बसपा सरकार में विदेश से मंगाई गई पीली चीनी का किस तरह किसानों ने विरोध किया। उधर सपा रालोद किसानों की उपेक्षा का मुद्दा उठा रहे हैं।
फिलहाल उत्तर प्रदेश में हो रहे विधानसभा चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश का मतदाता किस राजनीतिक दल की तरफ जाएगा यह तो 10 मार्च को आने वाले विधानसभा चुनाव परिणाम तय करेंगे। लेकिन इतना तय है कि इस बार इस इलाके में भाजपा, सपा, बसपा, कांग्रेस और रालोद ने इलाके की 136 सीटों के लिए अपनी ताकत झोंक रखी है। जिसने मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है।