अभिनव राजपूत

यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के मद्देनजर AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी भी मुस्लिम वोटरों को अपने पाले में करने के लिए खूब जोर आजमाइश कर रहे हैं। वहीं दलित वोटरों पर अपनी धाक जमाने के लिए भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आजाद भी जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं। इस बीच सवाल यह भी है कि देवबंद के मुस्लिम और सहारनपुर के दलित वोट किसके साथ जाएंगे?

देवबंद के मुस्लिम मतदाताओं और सहारनपुर के दलित वोटरों में इस बार क्या माहौल है, इसकी पड़ताल द इंडियन एक्सप्रेस ने की। देवबंद के यूसुफ ने कहा, “समाजवादी पार्टी (सपा) भाजपा को चुनौती देती दिख रही है। हम 2017 के विधानसभा चुनावों को दोहराना नहीं चाहते हैं। उस दौरान भाजपा मुस्लिम वोटों के बंटने से जीती थी।”

बता दें कि देवबंद निर्वाचन क्षेत्र में मुसलमानों का वोट 90,000 है। इसके बाद 57000 मतदाताओं के साथ राजपूत हैं। वहीं गुर्जर, ब्राह्मण और दलित इनके बाद आते हैं। इन समीकरणों को देखते हुए सपा ने यहां एक राजपूत और बसपा ने एक गुर्जर को मैदान में उतारा है। 2017 के चुनावों में, बृजेश सिंह को बसपा के माजिद अली के 32 प्रतिशत और सपा के माविया अली के 23 प्रतिशत की तुलना में 43 फीसदी वोट मिला था।

इस बार फिर से भाजपा ने बृजेश सिंह को टिकट दिया है। वहीं सपा ने कार्तिकेय राणा को, बसपा ने चौधरी राजेंद्र सिंह और कांग्रेस ने राहत खलील को अपना उम्मीदवार बनाया है। इन सबके बीच असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम ने भी उमर मसूदी को मैदान में उतारा है। मसूदी देवबंद के प्रमुख मसूदी परिवार से ताल्लुक रखते हैं।

इस पूरे समीकरण में सपा और बसपा ने मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में नहीं उतारा है। लेकिन इसके साथ ही वे यह भी नहीं चाहते कि एआईएमआईएम और कांग्रेस के उम्मीदवार मुस्लिम वोटों को बांटे। जिसकी वजह से भाजपा को जीत मिले।

दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र उस्मानी के पिता दारुल उलूम में शिक्षक हैं। मौजूदा सरकार पर उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि वे हमें कुचलना चाहते हैं, कभी वे कहते हैं कि हमारी लाइब्रेरी अवैध है, कभी वे जगह का नाम बदलना चाहते हैं। लेकिन हम इस तरह की नफरत की राजनीति के आगे नहीं झुकेंगे।

वहीं स्थानीय मौजूदा भाजपा विधायक बृजेश सिंह का कहना है कि राज्य में हमारी सरकार की वापसी पर पश्चिम यूपी के सहारनपुर जिले के देवबंद शहर का नाम बदलकर “देव वृन्द” कर दिया जाएगा।

प्रिटिंग की दुकान चलाने वाले मोहम्मद तलहा ने कहा, “ओवैसी जी एकमात्र नेता हैं जो बिना किसी डर के मुस्लिम समुदाय के लिए बोलते हैं। लेकिन इस बार समाजवादी पार्टी लीड कर रही है क्योंकि एआईएमआईएम मुस्लिम वोटों को बांटने का काम करेगी।”

वहीं AIMIM प्रत्याशी उमैर मसूदी का कहना है, ‘यह हमारे खिलाफ बनाई गई झूठी कहानी है। हम 2014 या 2017 में भी चुनाव नहीं लड़े थे लेकिन उसके बाद भी बाकी राजनीतिक पार्टियां बीजेपी को नहीं रोक सकीं थीं।

सहारनपुर में दलित वोटरों में भीम आर्मी की जगह बसपा प्रमुख मायावती अधिक प्रभावी दिख रही हैं। सहारनपुर के बधेरी घोघु गांव चौक में एक दलित सब्जी विक्रेता जगपाल सिंह ने कहा, “यहां सब बहनजी को पसंद करते हैं। उन्होंने कहा कि अगर हम बसपा प्रमुख का समर्थन नहीं करते हैं तो कौन करेगा?”

इसके अलावा एक अन्य दलित सुनील कुमार ने कहा, “आजाद पार्टी भी अच्छी है, लेकिन हम मायावती को एक बार फिर देखना चाहते हैं।” उन्होंने कहा, “हाथी पे चढ़े बिना सरकार नहीं बनेगी।”

सुनील ने कहा कि हमारे गांव में कई युवा ऐसे भी हैं जो चंद्रशेखर की तरह मूंछ रखे हुए हैं। कुछ उनकी पार्टी को वोट भी दे सकते हैं, लेकिन हमारे बड़े पैमाने पर लोग मायावती के साथ हैं। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा उम्मीदवार भी हमारी जाति से है, और उन्होंने लोगों के लिए घर बनाए हैं।

ऑटो स्पेयर पार्ट्स की दुकान चलाने वाले सोनू खालसा ने कहा, “जिन लोगों ने सहारनपुर दंगों को अंजाम दिया, वे सपा कैंप में शामिल हो गए। उन्हें पुराने घावों को नहीं खोलना चाहिए। योगी शासन में सुरक्षा की भावना है, हम व्यवसायी कभी भी कहीं भी यात्रा कर सकते हैं।