विश्व की सबसे ऊंची मूर्ति ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ पर पनपे विवाद के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिंदू महाराजा बीर बिक्रम किशोर माणिक्य बहादुर की प्रतिमा का अनावरण किया। शनिवार (नौ फरवरी, 2019) को पीएम ने उत्तर पूर्वी राज्य त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में इसके अलावा गार्जी-बेलोनिया रेलवे लाइन का उद्घाटन किया। कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब भी उपस्थित रहे। बता दें कि यह कार्यक्रम ऐसे समय हुआ है, जब सुप्रीम कोर्ट से बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीम मायावती को अपनी पार्टी के चुनाव चिह्न हाथी की विशाल प्रतिमाएं बनवाने को लेकर तगड़ा झटका लगा था।
कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा था कि मायावती ने जनता का जितना पैसा नोएडा और लखनऊ में प्रतिमाएं बनवाने पर बहाया, उसे वापस किया जाना चाहिए। कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद पीएम मोदी और बीजेपी को उनके आलोचकों में एक धड़े ने निशाने पर लिया था। कई लोगों ने मांग की थी कि मायावती देंगी, तब पीएम को भी गुजरात में लगभग 3000 करोड़ रुपए से तैयार कराई गई सरदार पटेल की मूर्ति में लगी जनता की रकम लौटानी होगी।
कौन थे बीर बिक्रम किशोर माणिक्य?: भारत की आजादी के समय ज्यादातर राजाओं और राजकुमारों ने देश को अपना हर संभव योगदान दिया, जिससे उसे आधुनिक बनने में मदद मिली। उन्होंने तब आधारभूत ढांचे, इमारतों और संस्थाओं के निर्माण से लेकर सामाजिक सुधार तक किए। यही वजह है कि उन्हें युगों-युगों तक भुलाया नहीं जा सकेगा। ऐसे ही राजाओं में महाराजा कर्नल बीर बिक्रम किशोर मानिक्य (1923-1947) थे। वह माणिक्य वंश से ताल्लुक रखते थे और त्रिपुरा के पहले राजा थे। राजधानी अगरतला को बसाने का श्रेय उन्हें ही जाता है।
ये सब कराने का श्रेय भी हिंदू राजा कोः सूबे की राजधानी अगरतला को बसाने का श्रेय उन्हें ही जाता है। महाराजा बीर बिक्रम किशोर को इसके अलावा भूमि संबंधी सुधारों के लिए भी याद किया जाता है। वह बीर बिक्रम ही थे, जिन्होंने त्रिपुरा में पहला एयरपोर्ट बनवाया था। वह तब अगरतला में बनवाया गया था। इतना ही नहीं, उन्होंने देश की पहली नगर पालिका की स्थापना की थी। विकास के क्रम में हिंदू राजा ने स्कूल और कॉलेज बनवाए और त्रिपुरा की पहली यूनिवर्सिटी शुरू कराई।
दान में दे दी थी 25 एकड़ जमीनः महाराजा बीर बिक्रम के बेटे किरित बिक्रम किशोर माणिक्य ने 1959 में 25 एकड़ जमीन अगरतला में अस्पताल के निर्माण के लिए दान में दे दी थी। बंगाल में सूखा पड़ने के दौरान त्रिपुरा के इसी शाही परिवार ने अपने घर से खाने-पीने और अनाज का सामान बंगालवासियों की मदद के लिए भेजा था। बीर बिक्रम और उनके बेटे ने विभाजन के वक्त पूर्वी बंगाल से भाग कर आए हिंदू बंगालियों को शरण मुहैया कराने में खासा योगदान दिया था।