Lok Sabha Election 2019: दूसरे चरण के तहत बिहार की जिन 5 सीटों पर 18 अप्रैल को मतदान होना है, उसका पिछला संसदीय अतीत एकतरफा है। वर्तमान में आगे निकलने की होड़ है और भविष्य के लिए कड़े संघर्ष के अलावा कोई रास्ता नहीं है। सीट बंटवारे के मसले पर महागठबंधन के घटक दलों में लंबे समय तक महाभारत से एनडीए की आस जरूर बंधी है, लेकिन दक्षिण पंथ की सियासत करने वालों के लिए मुस्लिम फील्ड में बैटिंग करना बहुत आसान भी नहीं है। किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, बांका और भागलपुर ने लोकसभा के पिछले चुनाव में प्रचंड मोदी लहर के बावजूद बीजेपी व उसके सहयोगी दलों को निराश ही किया था। एक पूर्णिया की सीट अपवाद थी, जिस पर बीजेपी से जुदा होकर लड़ रहे जेडीयू ने कब्जा जमाया था। बाकी चारों सीटों को आरजेडी, कांग्रेस और एनसीपी ने बांट लिया था।

बीजेपी ने जेडीयू की झोली में डालीं पांचों सीटें : इस बार फिर जेडीयू के साथ आने से बीजेपी निश्चित तौर पर थोड़े सुकून में नजर आ रही है। उसने अपनी ताकत और कमियों का बेहतर अंदाजा कर लिया है। ऐसे में अतीत के आईने में खुद का आकलन करके उसने पांचों सीटों को जेडीयू की झोली में डाल दिया। सामाजिक समीकरण के लिहाज से यह इलाका जेडीयू की सियासत के अनुकूल है। विधानसभा के पिछले चुनाव में उसका प्रदर्शन इस बात की तस्दीक भी करता है। हालांकि, महागठबंधन के घटक दलों के प्रयासों और संभावनाओं को भी खारिज नहीं किया जा सकता है। तारिक अनवर और उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह के कांग्रेस में आने से महागठबंधन के जीतने की उम्मीदें बढ़ी हैं। यही कारण है कि राहुल गांधी ने बिहार में पटना के बाद रैली के लिए पूर्णिया को ही पसंद किया।

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विधानसभा में उल्टी बाजी: पांचों संसदीय क्षेत्रों में विधायकों की कुल संख्या को अगर ताकत मापने का आधार बनाया जाए तो बीजेपी-जेडीयू का गठबंधन भारी दिखता है। पांचों संसदीय सीटों से 2015 के विधानसभा चुनाव में कुल 30 विधायक चुनकर आए, जिनमें सबसे ज्यादा 13 जेडीयू के हैं। वहीं, बीजेपी के 5, कांग्रेस के 8 और आरजेडी के तीन विधायक हैं। माले ने भी एक सीट निकाली थी। इस तरह एनडीए के पास अभी 30 में से 18 विधायकों की ताकत है। महागठबंधन के साथ 11 विधायक हैं, हालांकि 2015 के विधानसभा चुनाव में बाजी पलटने की कहानी दूसरी है। उस वक्त आरजेडी-जेडीयू और कांग्रेस ने गठबंधन बनाकर मुकाबला किया था। अबकी जेडीयू का संबल बीजेपी के साथ है।

यह है पूर्णिया का जातीय समीकरण : पूर्णिया का जातीय समीकरण समझने के बाद ही जीत-हार का आकलन किया जा सकता है। यहां 60 प्रतिशत हिंदू मतदाता हैं, जबकि मुस्लिम मतदाता 40 प्रतिशत हैं। हिंदुओं में अनुसूचित जाति-जनजाति के 5 लाख, पिछड़ा-अति पिछड़ा वर्ग के डेढ़ लाख, ब्राह्मण व राजपूत क्रमश: ढाई-ढाई लाख के अलावा करीब एक लाख वोटर्स दूसरी उप-जातियों के हैं। इलाके की दास्तान अजीब है। पिछली बार प्रचंड मोदी लहर में भी बीजेपी हार गई और लालू-राबड़ी के शासन के दौरान विरोधियों को मात देती रही। मुलायम सिंह की कृपा से 1996 में राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव उस वक्त यहां से सांसद बने, जब लालू की तूती बोलती थी। बहरहाल, पिछली बार के सियासी दुश्मनों में ही फिर मुकाबला है। जेडीयू के प्रत्याशी संतोष कुशवाहा के सामने दल और दिल बदलकर उदय सिंह फिर खड़े हो गए हैं। 2014 में वे बीजेपी के सिपाही थे। इस बार टिकट की गुंजाइश नहीं बन रही थी तो कांग्रेस के हो गए। 2004 से पहले भी उदय कांग्रेस में थे। 2004 में भाजपाई हुए और 2 बार सांसद रहे। हालांकि, पिछली बार संतोष ने उन्हें 1.20 लाख वोटों से हरा दिया था। इस बार फिर दोनों में कांटे की टक्कर है। संतोष का 5 साल का किया-धरा तराजू पर है और बार-बार दल बदलने के कारण पप्पू सिंह की निष्ठा भी सवालों के घेरे में रहेगी।

2014 लोकसभा चुनाव में ऐसा था समीकरण

लोकसभा सीटवर्तमान विजेता कुल मतदाता
भागलपुरआरजेडी18,11,980
बांकाआरजेडी16,87,940
कटिहारएनसीपी16,45,713
किशनगंजकांग्रेस16,52,940
पूर्णियाजेडीयू17,53,701

 

कटिहार में 22 साल से सिर्फ 2 पहलवानों में टक्कर : कटिहार का समीकरण तो बड़ा ही पेचीदा है। यादव और मुस्लिम मिलाकर आधे से अधिक मतदाता। यह आंकड़ा करीब 53 प्रतिशत पहुंचता है। वहीं, वैश्‍य 20 प्रतिशत हैं। 9 प्रतिशत कोईरी-कुर्मी और 18 प्रतिशत सवर्ण। यहां के अखाड़े में पिछले 22 वर्षों से 2 प्रमुख पहलवानों में ही कांटे की लड़ाई हो रही थी। एनसीपी से तारिक अनवर और बीजेपी से निखिल चौधरी। इस बार सीट जेडीयू के खाते में गई तो पहलवान बदल गया है। नीतीश कुमार ने अपने पूर्व मंत्री दुलालचंद गोस्वामी पर भरोसा किया है। दोनों जुझारू हैं। करीब 41 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता वाले इलाके पर पूरे देश की नजर रहेगी, क्योंकि अरसे बाद तारिक अनवर ने शरद पवार का साथ छोड़कर राहुल गांधी का हाथ पकड़ा है। महागठबंधन में पेच और आरजेडी की दावेदारी के कारण सीट पर भी संकट आ गया था। लालू इसे अपने लिए सर्वाधिक मुफीद मानते हैं। 1991 में एक बार युनूस सलीम को यहां से सांसद भी बनाया था। उसके बाद तारिक ने लालू की हसरत कभी पूरी नहीं होने दी।

विधानसभा 2015 का गणित

विधानसभा सीट जेडीयू बीजेपीकांग्रेसआरजेडीभाकपा माले
बांका41010
भागलपुर30210
पूर्णिया22200
कटिहार22101
किशनगंज20310
कुल 13 5 8 3 1

 

किशनगंज में सिर्फ एक बार जीता गैर-मुस्लिम प्रत्याशी : किशनगंज तो जैसे एक बिरादरी विशेष के लिए सुरक्षित क्षेत्र है। यहां 70 प्रतिशत मुस्लिम और 30 प्रतिशत हिंदू मतदाता हैं। इस तरह केवल हिंदू-मुस्लिम का समीकरण कारगर होता है। यहां धार्मिक आधार पर गोलबंदी का मतलब दूसरा होता है। इस संसदीय क्षेत्र के सभी 6 विधायक मुस्लिम हैं। ऐसे में सियासी मिजाज भी अलग है। किशनगंज में कांग्रेस ने डॉ. जावेद को मैदान में उतारा है। मुकाबले में जेडीयू की ओर से महमूद अशरफ हैं। इस बार असदुद्दीन ओवैसी ने भी अख्तरुल ईमान को अपना प्रत्याशी बनाया है। सियासी पार्टियां यहां के लोगों को वोट बैंक की तरह मानती हैं। आजादी से अब तक सिर्फ एक बार 1967 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर गैर मुस्लिम लखन लाल कपूर यहां से लोकसभा पहुंचने में कामयाब हो सके थे। उससे पहले और बाद में भी कोई हिंदू प्रत्याशी जीत नहीं पाया। शाहनवाज हुसैन ने 1999 में एक बार बीजेपी के लिए यह सीट जीती थी। इस सीट पर यह उनकी और बीजेपी की आखिरी जीत थी। उसके बाद चुनाव आरजेडी ने जीता। अब कांग्रेस के कब्जे में है।

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बांका में बना है ट्राएंगल : बांका की लड़ाई इस बार पिछली बार से भी कुछ ज्‍यादा घनी-तनी है। यहां यादव मतदाता 3 लाख के करीब हैं और 2 लाख मुस्लिम। 2 लाख वैश्‍य, डेढ़ लाख राजपूत, सवा लाख ब्राह्मण। एक लाख कुर्मी और 80 हजार कोईरी बिरादरी के मतदाता हैं। भूमिहार और कायस्‍थ क्रमश: 50-50 हजार, गंगोता 30 हजार और मारवाड़ी 20 हजार हैं। बांका की सियासत तो सीधी है, लेकिन इस बार की लड़ाई त्रिकोणीय हो रही है। यह लड़ाई पिछली बार भी त्रिकोणीय ही थी। अबकी महागठबंधन की ओर से आरजेडी ने मौजूदा सांसद जय प्रकाश नारायण यादव को प्रत्याशी बनाया है, जबकि जेडीयू ने विधायक गिरिधारी यादव को आगे किया गया है। बीजेपी की सीट छिनने से नाराज पुतुल कुमारी ने निर्दलीय ही ताल ठोंक दी है। प्रत्याशियों की कुल संख्या 19 है। 2 यादवों की लड़ाई में पूर्व सांसद पुतुल कुमारी तीसरा कोण बना रही हैं। वे पूर्व केंद्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह की पत्नी हैं। जय प्रकाश ने 2014 में पुतुल को हराया था। वोट का अंतर मात्र पांच हजार का था। गिरिधारी को भी इसी संसदीय क्षेत्र के बेलहर का विधायक होने का लाभ मिल सकता है। जाहिर है इस बार मुकाबला कड़ा और बड़ा होगा। पलड़ा किसी भी तरफ झुक सकता है।

भागलपुर में मंडल बनाम मंडल : भागलपुर में मंडल जाति के मतदाता अधिक हैं। उसके बाद यादव और मुस्लिम मतदाताओं की संख्‍या है। इनके अलावा भूमिहार, ब्राह्मण और अन्‍य पिछड़ी जाति के मतदाता हैं। बीजेपी के लिए उर्वर माने जा रहे भागलपुर संसदीय क्षेत्र का सामाजिक समीकरण इस बार सीधा है। दोनों गठबंधनों की तरफ से एक ही जाति के प्रत्याशी उतारे गए हैं। महागठबंधन ने आरजेडी के मौजूदा सांसद शैलेश कुमार उर्फ बुलो मंडल को ही दोबारा उतारा है, जबकि जेडीयू ने नाथनगर के विधायक अजय मंडल को प्रत्याशी बनाया है। पिछली बार बुलो मंडल से करीबी मुकाबले में हार चुके बीजेपी के शाहनवाज हुसैन अरसे बाद मैदान में नहीं होंगे। भागलपुर में कई खेमों में बंटी बीजेपी ने यह सीट इस बार जेडीयू की झोली में डाल दी। माय (मुस्लिम-यादव) समीकरण का भी अच्छा प्रभाव है। शायद इसके चलते भी भागलपुर को आरजेडी के लिए भी मुफीद माना जाता है। बुलो मंडल को आगे करके आरजेडी ने बीजेपी के प्रभाव को बहुत हद तक कम कर दिया है।

(बिहार से राजन की रिपोर्ट)