देश-विदेश में ‘सिटी ब्यूटीफुल’ के नाम से मशहूर शहर चंडीगढ़ की पहचान उसके उम्मीदवार बन रहे हैं। और ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। 1967 में पहले लोकसभा चुनाव के समय से ही अपने पढ़े-लिखे योग्य उम्मीदवारों के कारण चंडीगढ़ सीट की अलग पहचान रही है। इस बार भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की ओर से दो पूर्व केंद्रीय मंत्री और एक छोटे-बड़े परदे का पहचाना नाम मैदान में हैं। भाजपा की किरण खेर, कांग्रेस के पवन कुमार बंसल और आम आदमी पार्टी के हरमोहन धवन की उम्मीदवारी ही बता देती है कि इस सीट को विशिष्ट क्यों कहा जाता है।
चंडीगढ़ के मतदाता इस बात पर गर्व कर सकते हैं कि उनका प्रतिनिधि कोई आतंकवाद के आरोपी, या कोई बाबा, साधु या किसी तरह का बाहुबली नहीं होता। सबसे पहले बात करते हैं पिछले लोकसभा चुनाव 2014 की। 2014 में भाजपा ने किरण खेर को टिकट दिया था जो पंजाब विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में स्नातक होने के साथ अदाकारी के मंच पर भी मकबूल हैं। वहीं कांग्रेस ने पवन बंसल को टिकट दिया था जो कि कद्दावर वकील और केंद्रीय मंत्री रहे। राजनीति के मैदान में नई-नवेली आम आदमी पार्टी ने गुल पनाग को टिकट दिया था जो पंजाब विश्वविद्यालय से गणित में स्नातक होने के साथ मिस इंडिया का ताज भी पहन चुकी थीं और विश्व सुंदरी के मंच पर भारत की सम्मानजनक अगुआई की थी।
शिवालिक की पहाड़ियों के बीच बसा चंडीगढ़ भारत के आधुनिक शहरों में होने के कारण नियोजित शहर भी कहा जाता है। इस सीट पर पहली बार 1967 में हुए चुनाव में भारतीय जनसंघ के चांद गोयल ने जीत दर्ज की थी जो स्नातक और कानून की डिग्री वाले थे। 1971 में कांग्रेस के अमर नाथ विद्यालंकर ने आर्य समाज के गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय से कई विषयों में पढ़ाई की थी। 1977 में जनता पार्टी के कृष्णकांत, 1980-1984 में कांग्रेस के जगन्नाथ कौशल ने चंडीगढ़ की अगुआई की। 1989 में जनता दल के हरमोहन धवन एमएसी आॅनर्स के साथ विज्ञान के शोधार्थी थे। 1996-98 में भाजपा के सत्यपाल जैन ने जीत दर्ज की जो एमए और एलएलबी थे। 2004-2009 में कांग्रेस के पवन कुमार बंसल और 2014-2019 में भाजपा की किरण खेर ने जीत दर्ज की।
गौरतलब है कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय से एमएससी करने वाले कृष्ण कांत ने दिल्ली स्थित औद्योगिक व अनुसंधान परिषद के साथ वैज्ञानिक के रूप में भी कार्य किया था। चंडीगढ़ के सांसद कृष्ण कांत भारत के उपराष्टÑपति भी बने। जगन्नाथ कौशल ने 1936 में लाहौर स्थित पंजाब विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री ली थे। कौशल 1982 से 1985 तक कानून मंत्री रहे। उन्हें इंदिरा गांधी के करीबी और काबिल मंत्रियों में गिना जाता था। चंडीगढ़ के गवर्नमेंट कॉलेज से बीएसएसी की डिग्री लेने वाले पवन कुमार बंसल ने पंजाब विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री ली।
यूपीए सरकार की कैबिनेट में पवन बंसल ने जल संसाधन मंत्री से लेकर कानून मंत्री तक का पद संभाला। हरमोहन धवन ने 1984 में जनता दल के टिकट से चुनाव जीता था और केंद्रीय उड्डयन मंत्री का पद संभाला था। चंडीगढ़ लोकसभा सीट पर भाजपा और कांग्रेस का मिलाजुला असर रहा है। यहां की जनता जितने प्यार से भाजपा के उम्मीदवार को जिताती है तो बिना हंगामा खड़ा किए कांग्रेस की वापसी भी करवा देती है। पिछला लोकसभा चुनाव भाजपा ने जीता था उसके बाद हुए निकाय चुनाव में भाजपा का ही दबदबा रहा।
हरियाणा और पंजाब की साझा राजधानी चंडीगढ़ के प्रशासक वहां के राज्यपाल होते हैं। बीपी सिंह बिदनौर यहां के राज्यपाल हैं। फ्रांसीसी वास्तुकार ली कार्बूजियर ने इस शहर को बेहतरीन रूप दिया तो आज भी यह भारत के अमीर शहरों का अगुआ बना हुआ है। शॉपिंग मॉल्स, चौड़ी सड़कों पर दौड़तीं आधुनिक लग्जरी गाड़ियां इस शहर के मिजाज का संकेत दे देती हैं। उम्मीदवारों की शैक्षणिक योग्यता से लेकर सामाजिक हैसियत में भी ज्यादा फर्क नहीं होता, इसलिए भाजपा को चुना है या कांग्रेस को इसमें ज्यादा संघर्ष भी नहीं होता। मामला एक विशिष्ट से दूसरे विशिष्ट को चुनने को होता है, जो इस शहर की अलग चुनावी पहचान बनाता है।

