Neerja Chowdhury
लोकसभा चुनाव 2024 से पहले जातीय जनगणना की मांग तेज हो गई है। वहीं कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Congress leader Rahul Gandhi) ने भी कर्नाटक चुनाव में जातीय जनगणना का मुद्दा उठाया है। राहुल गांधी ने एक जनसभा में कहा कि जिसकी जितनी आबादी, उतना उसका हक़। इसके अलावा राहुल गांधी ने आरक्षण के लिए न्यायालय द्वारा निर्धारित सीमा को 50% से बढ़ाकर 75% करने का भी आह्वान किया।
राहुल गांधी के परदादा जवाहरलाल नेहरू ने 1951 में जाति जनगणना का विरोध किया। वहीं उनकी दादी इंदिरा गांधी ने भी (1977 में सत्ता में आई जनता पार्टी सरकार द्वारा आदेश दिए गए) मंडल आयोग (Mandal Commission) की रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। लेकिन 1980 में उसे फिर से पेश किया, जब वह प्रधान मंत्री के रूप में फिर से सत्ता में वापस आई थीं।
जब वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने और 1990 में अपनी संकटग्रस्त सरकार को बचाने के लिए इसे बाहर निकाला, तो राजीव गांधी ने संसद के पटल पर इस फैसले की धज्जियां उड़ा दीं। मंडल आयोग ने सामाजिक न्याय प्राप्त करने के तरीके के रूप में अन्य पिछड़े वर्गों (OBC) के लिए नौकरियों में 27% आरक्षण की सिफारिश की थी।
मंडल के फैसले ने देश को भड़काया और वीपी सिंह सरकार गिर गई। इसके अलावा उत्तर भारत के राजनीतिक परिदृश्य को हमेशा के लिए बदल दिया। मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद, नीतीश कुमार, अखिलेश यादव, अशोक गहलोत, उमा भारती और शिवराज चौहान जैसे ओबीसी नेताओं को आगे बढ़ाया, जो अपने राज्यों के सीएम बने। 1960 और 1970 के दशक में तत्कालीन कांग्रेस को चुनौती ओबीसी से मिली थी, जिन्होंने विपक्ष को समर्थन दिया और 1967 में 9 उत्तर भारतीय राज्यों में कांग्रेस सरकारों को हार का सामना करना पड़ा। साथ ही 1977 में जनता पार्टी सत्ता में आई और इंदिरा को हार का सामना करना पड़ा।
आज भाजपा द्वारा हिंदू एकता की चुनौती का मुकाबला करने के लिए विपक्षी दल फिर से ‘सोशल जस्टिस’ पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। इसे लोकप्रिय रूप से “सामाजिक न्याय” की राजनीति कहा जाता है। इस महीने की शुरुआत में चेन्नई में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन (Tamil Nadu Chief Minister M K Stalin) ने एक महत्वपूर्ण बैठक की, जिसमे सभी प्रमुख विपक्षी दलों ने हिस्सा लिया। इसमें सभी ने जातीय जनगणना पर राय रखी।
हालांकि इसमें कोई आश्चर्य नहीं है क्योंकि इन समूहों में DMK, RJD, JD(U), समाजवादी पार्टी जैसे मंडलीय दल शामिल थे। लेकिन कहानी का आश्चर्यजनक हिस्सा यह है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की राजनीति का मुकाबला करने के लिए जातिगत जनगणना और ओबीसी सशक्तिकरण के पीछे भागने का फैसला किया है। यह स्पष्ट है कि राहुल ने अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान इसका संकेत देना शुरू कर दिया था।
हाल ही में जब यूपीए सरकार के नेतृत्व में कांग्रेस सत्ता में थी, तब उसने 2011 में एक सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) की थी। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी 2014 में सत्ता में आई और SECC का निष्कर्ष अभी भी नहीं निकला है। बिहार में जद(यू)-राजद-कांग्रेस महागठबंधन सत्ता में वापस आ गया है। गठबंधन ने 2015 में भी भाजपा को सत्ता से बाहर किया था। जातिगत जनगणना की मांग को लेकर केंद्र के अड़ंगा लगाने के साथ ही नीतीश कुमार की सरकार बिहार में पहले से ही इसे आगे बढ़ा रही है।
चुनावों की ओर अग्रसर कर्नाटक भी मंडल राजनीति के अखाड़े के रूप में उभर रहा है। कांग्रेस नेता सिद्धारमैया ने ओबीसी कोटा बढ़ाने की पैरवी की है। भाजपा ने मंडल और कमंडल दोनों को मिला दिया है क्योंकि इसने लिंगायत और वोक्कालिगा दोनों को अतिरिक्त 2% आरक्षण देने के लिए मुसलमानों से आरक्षण छीन लिया है। ये दोनों शक्तिशाली समुदाय है जिनके समर्थन पर बीजेपी की नज़र है। मामला सुप्रीम कोर्ट में है और 10 मई को कर्नाटक चुनाव से एक दिन पहले सुनवाई होगी।