Lok Sabha Election 2019: कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह को भोपाल सीट पर उम्मीदवार बनाया है। पार्टी के इस कदम ने बीजेपी को अपनी रणनीति पर एक बार फिर काम करने के लिए मजबूर कर दिया है, जो कि मध्य प्रदेश में बीजेपी के लिए सबसे सुरक्षित सीट मानी जाती है। इस लोकसभा सीट पर कांग्रेस ने आखिरी बार 1984 में जीत दर्ज की थी। वहीं, 1991 के चुनाव में मशहूर क्रिकेटर मंसूर अली खान पटौदी और उनकी पत्नी शर्मिला टैगोर ने कांग्रेस के लिए कैंपेन किया था, लेकिन पार्टी को जीत नसीब नहीं हुई थी।

भोपाल को लेकर ज्यादा उत्सुक नहीं दिग्विजय : बता दें कि दिग्विजय सिंह 1993 से 2003 तक राज्य की राजधानी भोपाल में मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इसके बावजूद वे यहां से चुनाव लड़ने को लेकर ज्यादा उत्सुक नहीं थे, लेकिन वर्तमान मुख्यमंत्री कमलनाथ की सार्वजनिक चुनौती के बाद ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी ने दिग्विजय के नाम का आधिकारिक ऐलान कर दिया था।

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विधानसभा चुनाव से आया बदलाव : बीजेपी भले ही कह रही है कि दिग्विजय सिंह को हराना उनके लिए मुश्किल नहीं है, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में चीजें बदल चुकी हैं। उस वक्त कांग्रेस ने भोपाल की 8 विधानसभा सीटों में से 3 पर जीत दर्ज की। इन 3 सीटों में से 2 पर मुस्लिम उम्मीदवार विधायक बने। यह एक ऐसा समुदाय है, जिसकी भोपाल में काफी ज्यादा मौजूदगी है।

राजगढ़ में दिग्विजय का दबदबा : दिग्विजय सिंह इस वक्त राज्यसभा के सदस्य हैं। उन्होंने 2003 में आखिरी बार चुनाव लड़ा था, जिसमें पार्टी की करारी हार मिली थी। ऐसे में उन्होंने 10 साल तक कोई भी चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा कर दी थी, जिस पर वे कायम रहे। बता दें कि राज्यसभा में दिग्विजय का कार्यकाल 2020 में समाप्त हो रहा है। लेकिन उन्होंने अपने घरेलू मैदान राजगढ़ से चुनाव लड़ने की इच्छा जताई। वह राजगढ़ से 2 बार जीत हासिल कर चुके हैं। वहीं, राधोगढ़ विधानसभा सीट पर 3 बार जीते, जो राजगढ़ संसदीय क्षेत्र का ही हिस्सा है। जब उन्होंने 2003 में राधोगढ़ से तीसरी बार जीत दर्ज की थी, तब उन्होंने शिवराज सिंह चौहान को हराया था।

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कमलनाथ के अनुरोध पर हुआ बदलाव : बता दें कि जब दिग्विजय सिंह के चुनाव लड़ने की इच्छा सार्वजनिक हुई तो सीएम कमलनाथ ने उन्हें भोपाल, इंदौर या जबलपुर मुश्किल सीट चुनने का अनुरोध किया। ऐसे में कांग्रेस ने दिग्विजय के लिए भोपाल सीट चुनी, जिससे चुनाव लड़ने से उन्होंने इनकार भी नहीं किया।

छवि बदलने की कोशिश : गौरतलब है कि दिग्विजय सिंह 2017 के आखिर और 2018 की शुरुआत में 3300 किलोमीटर की नर्मदा यात्रा निकाल चुके हैं। कुछ लोगों ने इसे भाजपा द्वारा बनाई गई उनकी हिंदू विरोधी छवि को खत्म करने की कोशिश माना तो कई ने इसे उनके गृह राज्य की सक्रिय राजनीति में दोबारा लौटने की इच्छा के तौर पर देखा।

बीजेपी लगातार साध रही निशाना : साल 2008 और 2013 के विधानसभा चुनावों में उन्हें जानबूझकर मध्य प्रदेश से दूर रखा, क्योंकि बीजेपी ने उनके 10 साल के शासन की कमियों पर निशाना साधा था। जब दिग्विजय सिंह के भोपाल से चुनाव लड़ने का ऐलान हुआ तो शिवराज ने उन्हें ‘मिस्टर बंटाधार रिटर्न्स’ कह दिया। यह एक ऐसा तंज है, जो बीजेपी दिग्विजय के लिए काफी समय से इस्तेमाल कर रही है।शिवराज सिंह ने दिग्विजय के भोपाल से चुनाव लड़ने पर प्रतिक्रिया देते हुए ट्वीट किया था। उन्होंने लिखा था, ‘‘चाहे दिग्विजय भोपाल से चुनाव लड़े या कहीं और से, वे बीजेपी को नही हरा पाएंगे।’’

बीजेपी प्रत्याशी पर अभी फैसला नहीं : इस समय बीजेपी दिग्विजय के खिलाफ शिवराज सिंह चौहान को मैदान में उतारने पर विचार कर रही है। हालांकि, शिवराज पहले ही यह बात साफ कर चुके हैं कि वे आम चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं है। अगर बीजेपी इसके बाद भी शिवराज को मैदान में उतारती है तो यह लड़ाई काफी रोचक हो जाएगी, क्योंकि यहां 2 वरिष्ठ नेताओं को उनकी इच्छा के विपरीत जाकर चुनाव लड़ाया जा रहा है। आरएसएस और हिंदुत्व की राजनीति पर दिग्विजय सिंह के विचारों को देखते हुए माना जा रहा है कि यह चुनाव ध्रुवीकरण के मुद्दे पर लड़ा जा सकता है। उधर, सीएम कमलनाथ कह चुके हैं कि अगर शिवराज मैदान में उतरते हैं तो हम भोपाल में जीत जाएंगे। उन्होंने यह दावा ग्रामीण क्षेत्रों, विधानसभा में मुस्लिम आबादी और प्रदेश सरकार की कर्जमाफी योजना के आधार पर किया।

ये भी दावेदार : बता दें कि साध्वी प्रज्ञा सिंह खुद दिग्विजय सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर कर चुकी है। वे दिग्विजय को धर्म विरोधी और राष्ट्र विरोधी तक बता चुकी है। गौरतलब है कि साध्वी प्रज्ञा सिंह पर मालेगांव विस्फोट समेत कई आतंकी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लग चुका है। बता दें कि दिग्विजय सिंह के नाम की घोषणा होने से पहले बीजेपी सुरक्षित सीट होने के नाते भोपाल में किसी बाहरी प्रत्याशी को उतारने पर विचार कर रही थी। मुरैना सीट पर प्रत्याशी घोषित होने से पहले भोपाल के लिए केंद्रीय मंत्री नरेंद्र तोमर का नाम कई बार सामने भी आया।

यहां फंस सकता है पेच : गौरतलब है कि दिग्विजय सिंह ने अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान प्रमोशन में आरक्षण देने का वादा किया था, जो उन्होंने नहीं निभाया। इसके चलते भोपाल में ऐसे सरकारी कर्मचारियों की संख्या काफी ज्यादा है, जो उस वक्त दिग्विजय से नाराज हो गए थे। हालांकि, सरकारी नौकरियों में आरक्षण के पक्ष में टिप्पणी करना बीजेपी को भारी पड़ चुका है और पार्टी को पिछले विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था।