बिहार में चाचा-भतीजे के लिए हाजीपुर सीट ही प्रतिष्ठा का विषय नहीं है, बल्कि छह लोकसभा सीट हासिल कर लेना भी एक बड़ी उपलब्धि होगी। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि चाचा पशुपति पारस और भतीजे चिराग पासवान में बिल्कुल नहीं बनती है। इसका फायदा उठाने की कोशिश में इंडिया गठबंधन लगा है।
बिहार में आठ और उत्तरप्रदेश में दो लोकसभा सीटें चिराग गुट को देने की पहल की है। उधर, राजग यदि छह सीटें देगी भी तो उसका बंटवारा पारस गुट के साथ करना पड़ेगा, जबकि दो गुटों में बंटे लोजपा में चिराग इकलौते सांसद हैं। बाकी सांसद पारस के साथ चले गए है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल में हुई बिहार में रैली में ये दोनों (चाचा-भतीजा) दूर रहे और मौन भी। इस रहस्यमयी चुप्पी से लोग कई अर्थ लगा रहे हैं।
चर्चा है कि राजग पारस गुट को करारा झटका भी दे सकता है। उनकी सीटें कम भी हो सकती हैं। वर्ष 2019 चुनाव में लोजपा ने छह सीटें जीती थीं। 2021 में हुए पार्टी के विभाजन के बाद पांच पारस के साथ चले गए। चिराग अकेले रह गए। अब पारस गुट के साथ गए सांसदों को भविष्य अंधकार में लटका नजर आने लगा है। वे नए रास्ते की तलाश में बताए जा रहे हैं।
वहीं नरेंद्र मोदी का हनुमान बताने वाले चिराग खुद संकट में फंसे हैं। यह बात तो तय मानी जा रही है कि उन्हें बिहार की अब छह सीटें मिलने से रहीं। खुद भाजपा लोजपा की जीती सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर चुकी है। चिराग फिलहाल जमुई से दोबारा सांसद हैं, लेकिन वे अपने पिता रामविलास पासवान की सीट हाजीपुर चाहते हैं। वहीं रामविलास के भाई पशुपति पारस भी हाजीपुर के लिए अड़े हैं। इन दोनों को यह सीट जीत के लिए सबसे सुरक्षित लग रही है। दोनों प्रबल दावेदारी कर रहे हैं। इतना ही नहीं चिराग और पारस खुद बोल रहे हैं कि हाजीपुर से उन्हें कोई अलग नहीं कर सकता।
पारस को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चिराग को बड़ा झटका दिया। इसके बाद रामविलास को दिया बंगला भी उनकी मृत्यु के बाद चिराग से खाली करवा लिया। फिर भी वे हनुमान बने रहे। अब अंतिम अग्नि परीक्षा है। हनुमान के श्रीराम की भूमिका क्या होती है, यह देखना है। इसी आस में चिराग और पारस रहस्यमयी चुप्पी साधे हैं।