राम मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम संपन्न हो गया है। 500 साल के संघर्ष के बाद वो दिन आया है जब अयोध्या में धूम-धाम के साथ भगवान राम का फिर स्वागत किया गया है। उन्हें टेंट से मुक्ति देकर गर्भगृह में विराजित किया गया है। अब करोड़ों भारतीयों के लिए ये आस्था का विषय है, उनकी धार्मिक जीत है। लेकिन सियासी पार्टियों के लिए यहां धर्म-आस्था से बढ़कर एक और चीज है- वोट।

हिंदी भाषी…फिर हिंदू और अब राष्ट्रवाद, बीजेपी का सफर

बीजेपी इस समय जरूर राम मंदिर मुद्दे को राजनीति से परे बता रही है, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में इसका असर पड़न लाजिमी है। बीजेपी का एक पार्टी के रूप में जो सफर रहा है वहां उसने कई उतार चढ़ाव देखे हैं। पहले उसने सिर्फ हिंदुओं की राजनीति की, फिर उसकी राजनीति में सवर्ण आए, फिर धीरे-धीरे दलित समाज को साधने की रणनीति बनी और अब वर्तमान में पीएम नरेंद्र मोदी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को धार देने का काम कर रहे हैं।

चार मंदिर गए पीएम मोदी, दक्षिण पर नजर

पिछले कुछ दिनों के पीएम मोदी के कार्यक्रम पर नजर डालें तो उन्होंने चार राज्यों के 6 मंदिर कवर करने का काम किया है। ये सबकुछ सिर्फ 10 दिनों के अंदर में हुआ है। सबसे पहले 12 जनवरी को वे महाराष्ट्र के पंचवटी में कालाराम मंदिर गए। 16 जनवरी को वे आंध्र प्रदेश के लेपाक्षी में वीरभद्र मंदिर पहुंचे, फिर 17 तारीख को उन्होंने केरल के श्रीरामस्वामी मंदिर में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। इसके बाद 20 जनवरी को पहले उन्होंने तमिलनाडु के रंगनाथ स्वामी मंदिर का दौरा किया, वहीं उसके बाद रामेश्वरम में रामनाथस्वामी मंदिर के भी दर्शन किए। प्राण प्रतिष्ठा से सिर्फ एक दिन पहले यानी कि कल रविवार को उन्होंने कोदंडरामस्वामी मंदिर में भी दस्तक दी।

अब पीएम मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं, उनका कही भी जाना मायने रखता है। उनके जाने से उस जगह की लोकप्रियता का बढ़ना तो एक गारंटी रहता है। हाल ही में जब पीएम लक्षद्वीप पहुंचे, वहां के पर्यटन को जबरदस्त उछाल देखने को मिला। हर तरफ सिर्फ लक्षद्वीप की चर्चा होने लगी। इसी तरह पीएम जब अलग-अलग राज्यों में मंदिर दर्शन कर रहे हैं, इससे हिंदुओं का एक वर्ग प्रभावित हो रहा है। जानकार मान रहे हैं कि धीरे-धीरे ये बीजेपी का एक अलग वोटबैंक बन जाएगा और पूरी तरह धार्मिक आधार पर देश की सबसे बड़ी पार्टी को अपना वोट देगा।

मंदिर जाने वाला हिंदू अलग वोटबैंक

अब अगर ऐसा कहा जा रहा है, इसको साबित करने के लिए कुछ आंकड़े भी हैं। असल में सर्वे करने वाली एजेंसी CSDS ने समय-समय पर कई रिसर्च की हैं। ऐसी ही एक रिसर्च उसकी हिंदुओं के वोटिंग पैटर्न को लेकर भी रही है। सीएसडीएस की रिपोर्ट से पता चलता है कि हिंदुओं को भी दो भागों में बांटा जा सकता है, एक वो जो कम धार्मिक है और दूसरा वो ज्यादा धार्मिक रहता है। अब बीजेपी की नजर ज्यादा धार्मिक और मंदिर जाने वाले हिंदुओं पर है। पार्टी मानकर चल रही है कि ये वोटर आगे चलकर गेमचेंजर साबित होने वाला है।

सीएसडीएस के ही आंकड़े के मुताबिक 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मंदिर जाने वाले हिंदुओं का सिर्फ 28 फीसदी वोट मिला था। ये वो वक्त था जब नरेंद्र मोदी सिर्फ गुजरात की राजनीति तक सीमित चल रहे थे, बीजेपी के असल चेहरा लाल कृष्ण आडवाणी थे। लेकिन 2014 के बाद स्थिति बदलनी शुरू हुई, मंदिर जाने वाले हिंदुओं के बीच में बीजेपी का रुझान तेजी से बढ़ा। 2014 के लोकसभा चुनाव में जब मोदी लहर तमाम फैक्टर्स पर हावी चल रही थी, तब बीजेपी को मंदिर जाने वाले हिंदुओं का 45 फीसदी वोट मिला, यानी कि 2009 की तुलना 17 प्रतिशत ज्यादा।

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को बढ़ावा, क्या करना चाहती बीजेपी?

सरकार बनाने के बाद से पीएम मोदी का मंदिर निर्माण पर खास फोकस रहा है, इसका फायदा भी बीजेपी को 2019 के लोकसभा चुनाव में होता दिखा। पिछले चुनाव में पार्टी ने पहली बार 50 फीसदी से ज्यादा मंदिर जाने वाले हिंदुओं का वोट हासिल किया। ये ट्रेंड साफ बताता है कि देश का मिजाज बदल रहा है, धर्म की राजनीति से अगर बचने वाले लोग मौजूद हैं, तो इसे शिद्दत से मानने वालों की भी कमी नहीं है। बीजेपी ने इसी जनता की नब्ज को पकड़ लिया, इसी वजह से सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर लगातार जोर दिया जा रहा है।

बीजेपी और संघ के लिए सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की एक अलग परिभाषा है। असल में इस देश में एक मिथक ये बना हुआ है कि भगवान राम उत्तर के हैं, लेकिन बीजेपी हर मायने में इसी को तोड़ना चाहती है। वो राम को देश की एकता का आधार दिखाना चाहती है, इसी वजह से कभी काशी-तमिल संगमम आयोजित किया जाता है तो कभी सौराष्ट्र-तमिल संगमम कर लिया जाता है। इसके ऊपर पिछले कुछ सालों में पीएम मोदी ने आगे बढ़कर कई मंदिरों, कई दूसरे धार्मिक विकास को बढ़ावा देने का काम किया है।

मोदी सरकार और धार्मिक विकास

उदाहरण के लिए मोदी सरकार ने केदारनाथ मंदिर के रेनोवेशन का काम किया था। जब 2013 में प्राकृतिक त्रासदी ने केदारनाथ को तबाह कर दिया था, तब पीएम बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने इसके रेनोवेशन का जिम्मा उठाया था। उनकी सरकार की तरफ से तेजी से मंदिर कॉम्प्लेक्स का काम किया गया, इसके साथ-साथ सौंदर्यीकरण के काम को भी तेज किया गया। इसके बाद साल 2016 में पीएम मोदी ने चार धाम सड़क बनाने का ऐलान किया, एक ऐसी सड़क जो हर मौसम में जाने के लिए मुफीद रहे। इसके अलावा भी कई धार्मिक विकास कार्य इस सरकार ने किए, रणनीति एक ही-धर्म के जरिए एक बड़े वोटबैंक को अपने पाले में करने की कवायद।

जहां दिख रहा अवसर, वहीं सबसे बड़ी चुनौती

बीजेपी के सामने इस समय चुनौती ये है कि उसकी मंदिर पॉलिटिक्स उसे दक्षिण में ज्यादा फायदा नहीं दे रही है। वहां पर भी धर्म को मानने वाले, हिंदुत्व को समझने वाले बड़ी संख्या में मौजूद हैं। लेकिन क्योंकि बीजेपी एक हिंदी भाषी पार्टी के रूप में ज्यादा जानी जाती है, उस वजह से उसकी स्वीकार्यता भी दक्षिण में कम होती चली जाती है। लिंगायत पॉलिटिक्स के जरिए कर्नाटक में जरूर उसने अपना जनाधार बनाया है, लेकिन बाकी राज्यों में अभी भी विकल्प बनना भी मुश्किल साबित हो रहा है। इसी वजह से पीएम मोदी ने पिछले 10 दिनों में रामायण से जुड़े जिन भी मंदिरों का दौरा किया, वो सभी दक्षिण भारत में स्थित है। बीजेपी की पूरी कोशिश है कि इस बार मंदिर लहर का फायदा सिर्फ हिंदी पट्टी राज्यों तक सीमित ना रह जाए।

बीजेपी ऐसा इसलिए भी चाहती है क्योंकि हिंदी भाषी राज्यों में पार्टी ने पहले ही अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर लिया है। पहले 2014 और उसके बाद 2019 के चुनाव में क्लीन स्वीप करने का काम किया गया। ऐसे में राम मंदिर के जरिए वो इस बड़ी बेल्ट और क्या हासिल कर लेगी, इसका जवाब देना मुश्किल है। इसी वजह से बीजेपी को दक्षिण के हिंदुओं का साथ चाहिए, वहां भी मंदिर जाने वाली जनता का ज्यादा आशीर्वाद चाहिए। अगर पार्टी ऐसा करने में कामयाब हो गई तो सही मायनों में पीएम मोदी की सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की पहल सफल हो जाएगी।