राजस्थान में विधानसभा चुनाव एक महीने दूर है लेकिन वहां के कॉटन बेल्ट में किसानों की अपनी बड़ी चिंताएं हैं। यहां पर किसान कपास की खेती करते हैं और उन्हें बड़ा नुकसान हुआ है। कई किसानों को 20 बीघे की फसल में केवल 35 किलो नरमा (बिना पिसा हुआ कच्चा कपास) मिला। अब किसानों पूछ रहे हैं कि उनके नुकसान की भरपाई कौन करेगा?

उत्तरी राजस्थान के श्री गंगानगर तहसील के 2 सी गांव के 47 वर्षीय व्यक्ति खुबी राम ने 20 बीघे में फसल बोई थी लेकिन उन्हें केवल 35 किलो नरमा (बिना पिसा हुआ कच्चा कपास) मिला। उन्होंने द इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा, “बचे 19 बीघे में अभी भी कटाई चल रही है, लेकिन वहां भी पैदावार कमोबेश वही 35 किलोग्राम ही रहेगी। सामान्य परिस्थितियों में मुझे प्रति बीघा लगभग 7 क्विंटल (700 किलोग्राम) उपज मिलती है,लेकिन इस बार प्रोडक्शन काफी कम हुआ। इसी कारण मंडियां भी खाली पड़ी हैं।”

राजस्थान के श्री गंगानगर और हनुमानगढ़ में सबसे अधिक कपास का उत्पादन होता है और यह दो प्रमुख कपास उत्पादक जिले हैं। यहां पर गुलाबी सुंडी की वजह से कपास की फसल नष्ट हुई। खूबी राम ने 20 बीघा में बुवाई की थी जिसमें से सात बीघा उनकी अपनी जमीन थी, जबकि 13 बीघे उन्होंने 22,000 रुपए प्रति बीघे के वार्षिक पट्टे पर किराए पर लिया था।

खूबी राम ने बताया कि एक बीघे की बुवाई में करीब 15 से 16 हजार रुपये लागत आती है, जबकि लीज की राशि अलग है। वहीं 35 किलोग्राम की कीमत केवल 2275 हो रही है, क्योंकि बाजार में 6500 प्रति कुंटल के दर पर कपास बिक रहा है।

खूबी राम ने पूछा, “क्या राज्य में पार्टी (कांग्रेस) या केंद्र में (भाजपा) मेरी फसल के नुकसान की भरपाई करेगी? अगर मैं अपना गुस्सा (विधानसभा) चुनाव के दिन भी निकालूं तो क्या इससे कोई मदद मिलेगी?” राजस्थान में 8.25 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में कपास की बुआई हुई है। इस ख़रीफ़ सीज़न में पिछले कुछ वर्षों में यह 6 लाख से 7.5 लाख हेक्टेयर के बीच था लेकिन इस बार सबसे अधिक है।

इंडियन एक्सप्रेस ने श्री गंगानगर और हनुमानगढ़ के अधिकांश किसानों से बातचीत में पाया कि नरमा की पैदावार 1.5-2 क्विंटल प्रति बीघा है – जो सामान्य औसत 6-7 क्विंटल से एक तिहाई से भी कम है। गुलाबी सुंडी की गई तबाही के कारण ऐसा हुआ है। यहां कहा जाता है कि गुलाबी कीट ने सचमुच सफेद सोने की चमक छीन ली है।

दोनों जिलों में 11 विधानसभा क्षेत्र हैं (गंगनार में छह, जिनमें दो आरक्षित हैं, और हनुमानगढ़ में पांच, जिनमें एक आरक्षित है)। दोनों जिलों के अधिकारियों ने कहा कि प्रत्येक जिले में लगभग तीन लाख परिवार कृषि गतिविधियों में शामिल हैं। जबकि इन जिलों में लगभग हर किसान कपास उगाता है, खेती का क्षेत्रफल एक बीघे से लेकर 200 बीघे तक हो सकता है।

बीकानेर के साथ ये दोनों जिले ऊपरी राजस्थान के क्षेत्र हैं जहां कपास की खेती का क्षेत्रफल 24 प्रतिशत बढ़कर 5.25 लाख हेक्टेयर हो गया है, लेकिन बॉलवर्म (सुंडी) से सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। निचले राजस्थान के जिले भीलवाड़ा, नागौर और मेड़ता (लगभग 3.10 लाख हेक्टेयर) में भी कपास की खेती होती है और उनकी फसल सुरक्षित रही है।

गुलाबी बॉलवर्म के लार्वा मूल रूप से कपास के पौधे के बॉल्स या फलों में घुस जाते हैं जिनमें सफेद लिंट फाइबर और बीज उगते हैं। 170-180 दिनों की फसल की अवधि के 40-45 दिनों में ही संक्रमण शुरू हो जाता है। कीट का 25-35 दिनों का छोटा जीवन चक्र एक ही मौसम में कम से कम 3-4 पीढ़ियों को पूरा करने में सक्षम बनाता है, जिससे फसल बेकार हो जाती है।

राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने चुनाव आयोग (EC) द्वारा चुनाव की तारीखों की घोषणा किए जाने से कुछ दिन पहले कपास उत्पादकों के लिए 1,125 करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की थी।