कांग्रेस नेता राहुल गांधी पहली बार रायबरेली सीट से चुनाव लड़ने जा रहे हैं। इससे पहले तक यूपी की अमेठी सीट से राहुल लड़ रहे थे, तीन बार जीते भी। लेकिन 2024 के रण में एक बड़ा परिवर्तन हुआ है, अमेठी से गांधी परिवार आउट है और रायबरेली से प्रियंका की सबसे ज्यादा चर्चा के बीच राहुल गांधी को चुनावी मैदान में उतारा गया है। ये कहना गलत नहीं होगा कि राहुल के लिए इस समय रायबरेली किसी सुरक्षा कवच से कम नहीं है। कहना तो ये भी चाहिए कि 20 साल बाद इतिहास ने खुद को दोहराया है।

जब अमेठी में मां सोनिया ने राहुल को किया लॉन्च

आज से 20 साल पहले यानी कि 2004 में मां सोनिया गांधी ने एक बड़ा फैसला लिया था। उन्होंने उस लोकसभा चुनाव में अमेठी सीट छोड़ने का ऐलान किया था। हर कांग्रेस कार्यकर्ता हैरान था, थोड़ा नाराज भी था, लेकिन मां सोनिया के मन में कुछ और चल रहा था। वे अपने बेटे राहुल गांधी को राजनीति में लॉन्च करना चाहती थीं। बेटी प्रियंका भी सज थी, लेकिन राहुल को लेकर ज्यादा माहौल था। ऐसे में सोनिया ने 20 साल पहले उस लोकसभा चुनाव में अमेठी सीट राहुल के लिए कुर्बान कर दी थी। कहना चाहिए अपनी सुरक्षित सीट अपने ही बेटे को सौंप दी थी। नतीजा ये रहा कि राहुल गांधी का सियासी डेब्यू जीत के साथ शुरू हुआ।

रायबरेली और गांधी परिवार वाला कनेक्शन

अब राहुल की अमेठी से हुई पहली जीत एक तरह से सोनिया गांधी की कई सालों की मेहनत का परिणाम था। जनता तो तब सोनिया पर भरोसा करती थीं, लोकप्रियता उनकी थी, लेकिन उस लोकप्रियता को उन्होंने राहुल को आगे करने में इस्तेमाल किया। अब इतिहास फिर उसी मोड़ पर आ गया है, 20 साल बाद सोनिया ने रायबरेली सीट छोड़ दी है, फिर राहुल को वहां से आगे किया है। लोकप्रिय सोनिया ही हैं, लेकिन सीधी मदद राहुल की होने वाली है। अमेठी में तो स्मृति ईरानी ने अपनी नींव काफी मजबूत कर ली है, लेकिन रायबरेली में अभी भी एक बड़ा वर्ग गांधी परिवार के साथ मजबूती से खड़ा है।

जमीन पर जाकर भी ये पता चल ता था कि अगर प्रियंका की जगह राहुल को भी रायबरेली से उतारा जाएगा, उनकी जीत सुनिश्चित है। ऐसे में कांग्रेस भी राहुल के लिए रायबरेली को एक सुरक्षित सीट मान रही थी। ऐसी सीट जहां पर बीजेपी चाहकर भी ज्यादा बड़ा खेल नहीं कर पाएगी। इसी रणनीति के तहत प्रियंका को ना उतारकर राहुल को सोनिया की लैगेसी आगे बढ़ाने का मौका दिया गया है। वैसे रायबरेली में मुस्लिम वर्ग पूरी तरह कांग्रेस के साथ खड़ा है, एक हिंदू वर्ग भी गांधी परिवार की वजह से राहुल को वोट दे सकता है। ये समीकरण ही कांग्रेस को अब रायबरेली में बीजेपी के सामने मजबूत बना रहे हैं।

अमेठी में राहुल के लिए क्या चुनौती थी?

अगर अमेठी की बात करें तो पता चल रहा था कि राहुल की राह उतनी आसान नहीं रहने वाली। इसका एक कारण ये था कि राहुल ने एक हार के बाद अमेठी से दूरी बना ली थी। उनका वहां ज्यादा ना जाना अमेठी की जनता को भी अखर रहा था। जब अमेठीवासियों से इसे लेकर बातचीत हुई, दर्द साफ दिख रहा था, राहुल के प्रति एक नाराजगी भी थी। जामो इलाके में तो स्मृति ईरानी के विकास कार्य जनता के मन में छाए हुए थे। ऐसे में कांग्रेस को पता था कि अमेठी इस बार राहुल गांधी के लिए उतनी सुरक्षित नहीं।

रायबरेली में राहुल परिवर्तन रोकेंगे?

वहीं दूसरी तरफ रायबरेली अभी भी कांग्रेस के लिए उतनी सुरक्षित बनी हुई है, कारण है सोनिया गांधी का वहां से लगाव, वहां की जनता का उनको अपार समर्थन। अब उसी समर्थन के दम पर राहुल भी अपनी सियासी पिच मजबूत करने वाले हैं। मां सोनिया का सुरक्षा कवच राहुल को रायबरेली में तो किसी बड़े खेल से बचा सकता है। अगर गांधी परिवार से इतर कोई दूसरा यहां से खड़ा होता तो जरूर परिवर्तन की संभावना ज्यादा थी, लेकिन अब सोनिया गांधी के इस दांव ने कांग्रेस की उम्मीदें रायबरेली में ज्यादा बढ़ा दी हैं। रायरबेली में एक वर्ग चाहता था कि प्रत्याशी गांधी परिवार से होना चाहिए, तो उस डिमांड को पूरा कर दिया गया है।

रायबरेली में कांग्रेस की सबसे बड़ी मुश्किल?

वैसे राहुल गांधी के सामने एक बड़ी चुनौती भी है। वे कहने को सुरक्षित सीट से उतारे गए हैं, लेकिन बीजेपी पिछले कुछ सालों में थोड़ी मजबूत जरूर हुई है। पिछले चुनाव में सोनिया का जीत का अंतर था, उसने सारी कहानी बयां कर दी थी। 2009 में जब यूपीए की दूसरी बार सरकार बनी थी, तब रायबरेली में सोनिया गांधी को 72.20% वोट मिले थे, उस समय भाजपा का वोट शेयर मात्र 3.80 प्रतिशत था। लेकिन 5 साल बाद यानी कि 2014 में जब मोदी लहर ने सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए, रायबरेली में भी उसका कुछ असर देखने को मिला।

कांग्रेस का वोट शेयर 72.20 प्रतिशत से गिरकर 63.80% पर आ गया, वहीं बीजेपी को 21.10 वोट मिल गए। 2019 के लोकसभा चुनाव आते-आते कांग्रेस की स्थिति रायबरेली में और ज्यादा कमजोर हो गई, सोनिया गांधी ने कहने के लिए अपनी वो सीट बचा ली, लेकिन वहां पर उनका वोट शेयर सिर्फ 55.80 फीसदी रह गया, बीजेपी का वोट प्रतिशत 38.40 तक पहुंच गया। दूसरे शब्दों में बोले तो 10 साल के अंदर में रायबरेली में कांग्रेस के वोट शेयर में 16 परसेंट की बड़ी गिरावट देखने को मिली है, वही बीजेपी ने 35% की बंपर बढ़त हासिल की है।