यूपी से अमेठी और रायबरेली के अलावा फूलपुर एक ऐसा संसदीय क्षेत्र है, जहां से नेहरू गांधी परिवार का भावनात्मक रिश्ता रहा है। खुद पंडित जवाहर लाल नेहरू यहां से सांसद हुआ करते थे। देश को आजादी मिलने के बाद उन्होंने इसे अपनी कर्मभूमि बनाई। उन्होंने यहां से 1952, 1957 और 1962 में जीत दर्ज की। उनके बाद उनकी बहन विजय लक्ष्मी पंडित 1964 और 1967 में यहां से लोकसभा पहुंची थीं। लेकिन कई दशक से फूलपुर से कांग्रेस पार्टी को जीत नहीं मिल रही है। 1971 में विश्वनाथ प्रताप सिंह के बाद अंतिम बार 1984 में रामपूजन पटेल यहां से कांग्रेस के टिकट पर सांसद बने थे।
हाईकोर्ट, केंद्रीय विश्वविद्यालय, नेहरू का पैतृक आवास यहीं है
फूलपुर ‘बुद्धिजीवियों का क्षेत्र’ कहा जाता है। इलाहाबाद हाईकोर्ट, ट्रिपलआईटी, रेलवे का नार्थ सेंट्रल जोन (NCR), इलाहाबाद विश्वविद्यालय, यूपी लोकसेवा आयोग (UP Public Service Commission), इलाहाबाद का मेडिकल कॉलेज, मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (NIT), पॉलिटेक्निक, कई बड़ी कोचिंग संस्थाएं यहीं हैं। चंद्रशेखर आजाद का शहीद स्थल अल्फ्रेड पार्क जिसे कंपनी बाग भी कहते हैं, और पुरानी विधानसभा, इलाहाबाद संग्रहालय, शहर का कमिश्नरी, पुलिस कमिश्नर समेत तमाम प्रशासनिक कार्यालय इसी क्षेत्र में है। इसलिए इसे ‘बुद्धिजीवियों का क्षेत्र’ कहा जाता है। सबसे बड़ी बात यह है कि नेहरू-गांधी परिवार का पैतृक आवास आनंद भवन, कांग्रेस का पुराना राष्ट्रीय कार्यालय स्वराज भवन भी फूलपुर संसदीय क्षेत्र में पड़ता है। बुद्धिजीवी वर्ग आजादी के आंदोलन के समय से ही कांग्रेस का पक्का समर्थक माना जाता था, लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निधन के बाद से फिर कभी कांग्रेस यहां के मतदाताओं का दिल नहीं जीत सकी।
लोहिया, कांशीराम, जनेश्वर मिश्र जैस दिग्गज यहां से हार चुके हैं
तब से अब तक इस संसदीय क्षेत्र से पार्टी का कोई उम्मीदवार जीत नहीं हासिल कर सका। नेहरू की विरासत वाली इस सीट पर कांग्रेस का कभी ऐसा रुतबा था कि दिग्गज समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया, बीएसपी संस्थापक कांशीराम और पूर्व केंद्रीय मंत्री जनेश्वर मिश्र जैसे लोकप्रिय और जनाधार वाले नेताओं को हार का सामना करना पड़ा था। इसके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा की पत्नी कमला बहुगुणा, अपना दल नेता अनुप्रिया पटेल के पिता और पार्टी के संस्थापक सोनेलाल पटेल, बाहुबली नेता और माफिया अतीक अहमद भी यहां से चुनाव हार चुके हैं।
40 साल से कांग्रेस का कोई उम्मीदवार यहां से जीत नहीं सका है
1984 के बाद से 40 साल हो गये, लेकिन कांग्रेस को यहां से सफलता नहीं मिल रही है। हालांकि हर बार कांग्रेस यहां से जोर लगाती है, लेकिन वह जीत तो दूर, दूसरे नंबर पर भी नहीं रहती है। कांग्रेस के लिए यह बेहद कठिन स्थिति है।
मोदी लहर में बीजेपी के केशव प्रसाद मौर्य ने दर्ज की थी बड़ी जीत
2014 की मोदी लहर में यूपी के मौजूदा डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को बीजेपी ने मैदान में उतारा और वह शानदार जीत हासिल किए थे। उन्होंने बीएसपी के तत्कालीन सांसद कपिलमुनि करवरिया, सपा के धर्मराज पटेल और कांग्रेस के क्रिकेटर मोहम्मद कैफ़ को हराकर तीन लाख से ज़्यादा वोटों से जीत दर्ज की थी। हालांकि उसके कुछ समय बाद जब विधानसभा चुनाव हुए और यूपी में बीजेपी की सरकार बनी तो केशव मौर्य को योगी आदित्यनाथ की सरकार में डिप्टी सीएम बना दिया गया। इससे उन्हें फूलपुर सीट से इस्तीफा देना पड़ा।
2018 के उपचुनाव में बीजेपी को भी नुकसान उठाना पड़ा था
ऐसे में 2018 में वहां उपचुनाव हुआ तो समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार नागेंद्र सिंह पटेल ने जीत हासिल की। लेकिन यह जीत उनकी अकेली नहीं थी। उप चुनाव में बीएसपी ने सपा की मदद की थी। नागेंद्र ने बीएसपी के सहयोग से 60 हजार वोट से जीत हासिल की थी।
फूलपुर संसदीय क्षेत्र में प्रयागराज जिले की पांच विधानसभा सीटें (शहर उत्तरी, शहर पश्चिमी, फूलपुर, फाफामऊ और सोरांव) आती हैं। ये सभी संपन्न और उर्वर क्षेत्र है। आजादी के आंदोलन के समय से ही यह क्षेत्र काफी सक्रिय रहा है। कई बड़े नेता यहां से निकले हैं।
यह पूरा क्षेत्र शिक्षित वोटरों का है, यानी शिक्षाविद्, प्रोफेसर, अधिवक्ता, साहित्यकार, पत्रकार और बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारी यहां रहते हैं, लेकिन यहां मतदान प्रतिशत भी काफी कम रहता है। यह भी एक बड़ा मुद्दा है। शहरी इलाके में तो 35 फीसदी लोग ही वोट डालने जाते हैं।