पिछले 24 सालों पहले सेंट्रल रेलवे सबअर्बन नेटवर्क के लिए टाइम टेबल बनाने वाले बी सेबेस्टियन अब रिटायर हो रहे हैं। यह शख्स कई सारी ट्रेनों का टाइम एक ही सांस में बता सकता है। सेंट्रल रेलवे सबअर्बन ट्रेन नेटवर्क के चीफ कंट्रोलर सेबेस्टियन की सेवा अवधि इस महीने के अंत तक खत्म होने वाली है। अपने सहकर्मियों और दोस्तों के बीच सेबी के नाम से लोकप्रिय सेबेस्टियन ने जब 1987 में सेवा शुरू की थी तब ट्रैफिक अप्रेंटिस थे। 1995 में वे चीफ कंट्रोलर बन गए।
ट्रेन का डिजिटल पैनल उनकी नजरों में रहता है और ट्रैक स्विचिंग पॉइंट पीछे। वे कहते हैं, ‘यह काम मेरे लिए हॉबी की तरह बन गया है। मुझे इससे कभी परेशानी नहीं हुई।’ वो यह भी कहते हैं कि कभी बहुत ज्यादा जरूरत पड़ने पर ही उन्होंने काम से छुट्टी ली है। सेबेस्टियन और उनकी टीम रोजाना करीब 75 हजार किमी के ट्रैक पर चलने वाली ट्रेनों का टाइम टेबल तय करते हैं, ऐसे में काम के दबाव को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। एक छोटी-सी गलती दिनभर के काम को बिगाड़ सकती है। इन सबके बीच नई ट्रेनों, स्टॉपेज और रूट की मांग भी जारी रहती है।
सेबेस्टियन कहते हैं कि उनकी पहली प्राथमिकता यही रहती है कि यातायात सामान्य तरीके से चलता रहे और कोई समस्या आए तो जल्द से जल्द उसका हल ढूंढा जाए। जुलाई 2005 में आई समस्या को वे अपने कार्यकाल की सबसे मुश्किल चुनौती मानते हैं। उस दौरान उनकी टीम ने चार दिनों तक लगातार 24 घंटों तक काम किया था।
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सेबी कहते हैं, ‘कोई भी समय सारणी बनाने से पहले वो कई यात्री संगठनों से सुझाव भी लेते थे। कई बार एक सिंगल रूट तय करने में भी कई घंटे लग जाते हैं। 1987 से अब तक काफी कुछ बदल गया है। 88 रैक्स पर 1063 सेवाओं से लेकर 134 ट्रेनों के 1774 ट्रिप्स और लगातार नए कॉरिडोर्स की शुरुआत के बावजूद मकसद वही है- यात्रियों का अधिकतम लाभ। तमाम चुनौतियों के बावजूद सेंट्रल रेलवे समय का काफी पाबंद रहा है। यहां औसतन 8 से 9 फीसदी ट्रेनें लेट होती हैं। सेंट्रल रेलवे में वेस्टर्न रेलवे (1367 ट्रेनें रोजाना) के मुकाबले काफी ज्यादा दबाव होता है।
सेबेस्टियन कहते हैं, ‘डेडिकेटेड सबअर्बन कॉरिडोर (जिसमें बाहर के स्टेशन न जुड़े हों) से टाइम टेबल सुधारने में मदद मिलेगी। इससे नई ट्रेनों को लॉन्च करने में भी मदद मिलेगी। सीएसटी-कल्याण और करजत वाली मुख्य लाइनों की क्षमता का पूरा इस्तेमाल हो चुका है।’