Lok Sabha Elections, Muslim Candidates, SP-BSP: लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। उत्तर प्रदेश की सभी 80 लोकसभा सीटों पर सात चरणों में लोकसभा चुनाव होंगे। ज्यादातर सीटों पर राजनीतिक दलों ने कैंडिडेट भी उतार दिए हैं। लेकिन इस बार एक अलग चीज देखने को मिली। भाजपा विपक्षी दलों पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाती रही है और उसका असर भी होता दिखाई दे रहा है।

उत्तर प्रदेश में ऐसी एक दर्जन से अधिक सीटें हैं जहां पर मुस्लिम समुदाय की आबादी 25 फीसदी से अधिक है। लेकिन वहां पर भी विपक्षी दलों ने हिंदू कैंडिडेट उतारा है। लेकिन 2019 से पहले विपक्षी दल उन सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारते थे लेकिन अब ट्रेंड में बदलाव देखा गया है। हालांकि बीजेपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में मुस्लिम उम्मीदवार नहीं दे रही है।

मेरठ से तीनों दलों ने उतारे हिंदू प्रत्याशी

2024 के लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने मेरठ लोकसभा सीट से अरुण गोविल, समाजवादी पार्टी ने भानु प्रताप सिंह और बीएसपी ने देववृत त्यागी को उम्मीदवार बनाया है। मेरठ लोकसभा सीट पर 30 फीसदी से अधिक मुस्लिम आबादी है जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा, बसपा का गठबंधन था। इसके तहत बीएसपी ने हाजी याकूब कुरैशी को उतारा था, जो करीब 5,000 वोटों से चुनाव हार गए थे। लेकिन उन्हें मुस्लिम वोट एकतरफा मिले थे।

वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव में जब बीएसपी और सपा अलग-अलग लड़ थे, उस दौरान बीएसपी ने मोहम्मद शाहिद को उम्मीदवार बनाया था तो वहीं शाहिद मंजूर को समाजवादी पार्टी ने उम्मीदवार बनाया था। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा दोनों दलों ने मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा है। जबकि मेरठ सीट पर मुस्लिम वोट निर्णायक है।

बिजनौर लोकसभा सीट

बिजनौर लोकसभा सीट पर 35 फीसदी से अधिक मुसलमान है। इस सीट से एनडीए की ओर से आरएलडी ने चंदन चौहान को उम्मीदवार बनाया है तो वहीं बीएसपी ने चौधरी विजेंद्र सिंह और समाजवादी पार्टी ने दीपक सैनी को उम्मीदवार बनाया है। यहां पर सपा और बसपा दोनों दलों ने मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन के तहत बीएसपी ने इस सीट से मलूक नागर को उतारा था तो वहीं कांग्रेस ने नसीमुद्दीन सिद्दीकी को उतारा था। जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी जो दूसरे नंबर पर रही थी, उसने शाहनवाज राणा को उम्मीदवार बनाया था, जो मुस्लिम समुदाय से आते हैं। उसके पहले 2009 का लोकसभा चुनाव हुआ था, जिसमें शाहिद सिद्दीकी को बीएसपी ने उम्मीदवार बनाया था जो दूसरे नंबर पर रहे थे।

2024 के लोकसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस का गठबंधन है और इस गठबंधन से हिंदू उम्मीदवार है। तो वहीं बीएसपी ने भी जाट को उम्मीदवार बनाया है। ऐसे में प्रमुख दलों ने यहां भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा है।

मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट

मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर 30 फीसदी से अधिक मुस्लिम आबादी है। 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए सपा, बसपा और भाजपा ने किसी मुस्लिम उम्मीदवार को नहीं उतारा है। समाजवादी पार्टी ने हरेंद्र मलिक को उम्मीदवार बनाया है तो वहीं बसपा ने दारा सिंह प्रजापति को मैदान में उतारा है। जबकि भाजपा ने अपने सांसद संजीव कुमार बाल्यान पर भरोसा जताया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट अपने कोटे से आरएलडी को दी थी तो यहां से पार्टी अध्यक्ष चौधरी अजीत सिंह ने खुद चुनाव लड़ा था। हालांकि वह चुनाव हार गए थे।

लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी ने यहां से मुस्लिम प्रत्याशी कादिर राणा को उम्मीदवार बनाया था जो दूसरे नंबर पर रहे थे। 2009 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी के कादिर राणा ने यहां से जीत दर्ज की थी। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में इस मुस्लिम बहुल सीट से प्रमुख दलों की ओर से कोई मुस्लिम प्रत्याशी नहीं होगा।

बागपत लोकसभा सीट

बागपत लोकसभा सीट उत्तर प्रदेश की चर्चित लोकसभा सीट है और यहां पर मुस्लिम आबादी 30 फीसदी से अधिक है। सपा और कांग्रेस गठबंधन के तहत इस सीट से सपा चुनाव लड़ रही है, जिसने मनोज चौधरी को प्रत्याशी बनाया है। तो वहीं एनडीए की ओर से इस सीट पर आरएलडी के राजकुमार सांगवान चुनाव लड़ रहे हैं। बीएसपी ने प्रवीण बंसल को उम्मीदवार बनाया है। यानी विपक्षी दलों ने यहां पर भी मुस्लिम बहुल सीट के बावजूद मुस्लिम प्रत्याशी नहीं उतारा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में यहां से बीजेपी के सत्यपाल सिंह के खिलाफ आरएलडी के जयंत चौधरी ने ताल ठोकी थी। जयंत चौधरी चुनाव हार गए थे जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में सपा ने यहां से गुलाम मोहम्मद को उम्मीदवार बनाया था, जो दूसरे नंबर पर रहे थे।

बागपत मुस्लिम बहुल सीट है लेकिन यहां से भी ना तो सपा और ना ही बीएसपी ने मुस्लिम उम्मीदवार पर भरोसा जताया है। जबकि पहले वह यहां से मुस्लिम उम्मीदवार उतार चुके हैं।

BJP का आरोप असरदार?

सपा और बसपा के कदमों से यही लग रहा है कि बीजेपी का तुष्टिकरण का आरोप असरदार साबित हो रहा है। बीजेपी अक्सर आरोप लगाती है कि जब सपा और बसपा की प्रदेश में सरकार थी, उस दौरान धर्म के आधार पर भेदभाव किया जाता था। चुनाव में भी इसका असर होता है और मुस्लिम बहुल इलाकों में हिंदू वोट एकजुट होता और बीजेपी को फायदा भी होता है।