रविवार को आगरा में समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी एक साथ एक मंच पर दिखाई दिए। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा भी यहां मौजूद थीं। 7 साल पहले 2017 के विधानसभा चुनावों में भी अखिलेश-राहुल की जोड़ी यूपी में साथ दिखी थी लेकिन चुनावों में बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा था। तब इस जोड़ी को ‘यूपी के लड़के’ नाम दिया गया था।

2017 के विधानसभा चुनावों में सपा ने केवल 47 सीटें जीतीं थीं, जो 2012 में 224 सीटों की तुलना में बड़ी भारी गिरावट थी। जबकि कांग्रेस की सीटें 2012 में 28 से गिरकर सात हो गईं। गठबंधन में होने के बावजूद दोनों पार्टियों ने 22 सीटों पर एक-दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार उतारे थे। दोनों मामलों में गठबंधन की बातचीत चुनाव से बमुश्किल कुछ महीने पहले शुरू हुई थी और दोनों पार्टियों के वरिष्ठ नेताओं के हस्तक्षेप करने से पहले यह टूटने के कगार पर था।

2017 में सपा और कांग्रेस के बीच बेचैनी बनी रही थी। कांग्रेस ने 110 सीटों की मांग की थी, जबकि सपा ने 100 की पेशकश की थी। गठबंधन बाद में सोनिया गांधी और गुलाम नबी आजाद (वह तब पार्टी में थे) जैसे वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं के हस्तक्षेप के बाद ही बना। प्रियंका गांधी ने भी अखिलेश और वरिष्ठ सपा नेता आजम खान से मुलाकात की थी।

इस बार कांग्रेस की राष्ट्रीय गठबंधन समिति और सपा की समन्वय समिति के बीच जनवरी में बातचीत शुरू हुई। कांग्रेस ने शुरू में 28 लोकसभा सीटों की मांग की, जिसमें रामपुर और मुरादाबाद भी शामिल था। 2019 के चुनावों में ये सीटें सपा ने जीती थीं। सपा शुरू में 11 सीटें छोड़ने पर सहमत हुई थी लेकिन बाद में उसने 17 सीटें दी।

लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन की कोशिशें तब तेज हुई जब 31 सीटों के लिए पहले ही उम्मीदवारों की घोषणा कर चुके अखिलेश यादव ने सीट-बंटवारे को अंतिम रूप नहीं दिए जाने के कारण रायबरेली में भारत जोड़ो न्याय यात्रा में शामिल होने से इनकार कर दिया। 2017 की तरह गतिरोध को तोड़ने के लिए पिछले बुधवार को प्रियंका गांधी ने हस्तक्षेप किया और अखिलेश से फोन पर बात की। सपा ने कांग्रेस के लिए अमरोहा और वाराणसी सहित 17 सीटें छोड़ने पर सहमति व्यक्त की और कहा कि वह बचे 63 लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवारों और सहयोगियों सीटें देगी।