बेदिल

अब तो लगने लगा है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सीटों के नतीजों का पहले से ही अंदाजा हो गया है, तभी तो पहले से ही उन्होंने कांग्रेस को जी भर कर कोसना शुरू कर दिया है। अब तो लोगों का यह भी कहना है कि केजरीवाल कभी भी मन से चाहते ही नहीं थे कि उनकी पार्टी-आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस में गठबंधन हो। उन्होंने महीनों पहले ही सीटों के प्रभारी घोषित करके चुनाव अभियान शुरू कर दिया था, फिर बिना दूसरे दलों के उम्मीदवार घोषित हुए अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए।

एक तरफ वे कांग्रेस से गठबंधन की कोशिश करते दिखते थे, तो दूसरी तरफ भाजपा से अधिक कांग्रेस पर आरोप लगाते थे। कहा यह भी जाता है कि वे या तो गठबंधन चाहते ही नहीं थे या चाहते भी तो अपनी शर्तों पर दिल्ली के साथ कई राज्यों में। हालात ऐसे बन गए कि कांग्रेस में ही गठबंधन के मुद्दे पर विवाद शुरू हो गया और इसके चलते ही कांग्रेस आखिर २क्षण में उम्मीदवार घोषित कर पाई। सही हालाता का अंदाजा तो 23 मई को नतीजे घोषित होने के दिन लगेगा, लेकिन अभी तो यही लग रहा है कि अगर कुछ समय पहले कांग्रेस ने उम्मीदवार घोषित कर दिए होते, तो उसे ज्यादा सफलता मिलती। अगर कांग्रेस ‘आप’ से आगे निकल गई तो ‘आप’ के लिए दस महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में मुसीबत बन जाएगी। इसीलिए केजरीवाल अभी से पराजय का ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ने का बहाना खोज रहे हैं।

आत्मविश्वास की दाद
दिल्ली भाजपा अध्यक्ष और भाजपा के उत्तर पूर्व सीट के उम्मीदवार मनोज तिवारी के आत्मविश्वास की दाद देनी होगी, अपनी सीट पर कड़ा मुकाबला होने के बावजूद उन्होंने देशभर में भाजपा के लिए चुनाव प्रचार करना नहीं छोड़ा। भोजपुरी कलाकार के नाते उनकी लोकप्रियता देशभर में है और हर जगह से भाजपा के उम्मीदवार उन्हें बुलाने का आग्रह करते रहे। दिल्ली का चुनाव इस बार ज्यादा कठिन होने पर भी उन्होंने दूसरे स्थानों पर जाकर चुनावी सभाएं कीं। अलबत्ता उनके प्रचार में भी लोकप्रिय कलाकार सपना चौधरी समेत अनेक गायक-अभिनेता आए। तिवारी का राजनीतिक जीवन काफी छोटा है। वे पहला चुनाव सपा के टिकट पर गोरखपुर से लड़कर पराजित हुए फिर दिल्ली में 2014 में लोकसभा चुनाव जीतकर प्रदेश अध्यक्ष बने और इस चुनाव में दिल्ली में दूसरी सीटों पर प्रचार करने के अलावा अपनी सीट का भी प्रचार करते रहे। उनके सामने दिल्ली का 15 साल मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित कांग्रेस के टिकट पर औक ‘आप’ के दिल्ली के संयोजक रहे दिलीप पांडेय ‘आप’ के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।

दल-बदलु नेता
कुछ नेता शायद बने ही इसलिए होते हैं कि चुनावी मौसम में दल-बदल कर चुनावी हवा को बदलने वाले सियासी सूरमा करार दिए जाएं। ऐसे नेता हर दल में होते हैं। दिलचस्प यह भी है कि ऐसे तमाम नेता यह कह कर दल बदलते हैं कि उन्होंने बगैर किसी शर्त के एक पार्टी छोड़ी है और दूसरी से जुड़े हैं, लेकिन कुछ दिनों बाद उनकी शर्त सामने आ जाती है और वे एक बार फिर से दल बदलने को तैयार हो जाते हैं। लोकसभा के इस चुनाव में भी दल बदलने वालों का बोलबाला रहा। भाजपा सांसद उदितराज ने टिकट कटने से नाराज होकर भाजपा छोड़ दी और कांग्रेस का दामन थाम लिया। दूसरी ओर कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुई पूर्व केंद्रीय मंत्री कृष्णा तीरथ एक बार फिर से भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हो गर्इं। इनके अलावा आम आदमी पार्टी (आप) के दो विधायकों अनिल वाजपेयी और देवेंद्र सहरावत ने पार्टी छोड़ी और भाजपा का दामन थाम लिया। दोनों ने ऐन चुनाव के मौके पर पाला बदलकर अपने नेता रहे मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर जमकर निशाने भी साधे। इन बड़े नेताओं के अलावा ऐसे दर्जनों अन्य नेता हैं जिन्होंने कांग्रेस, भाजपा या ‘आप’ के उम्मीदवारों के समर्थन में नई पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली।